रतलाम। जिला मुख्यालय से 10 किमी दूर स्थित रूपाखेड़ा गांव महिलाओं को सुरक्षा देने के मामले में देश-दुनिया के सामने एक आदर्श उदाहरण है। यहां आज तक महिलाओं पर अत्याचार संबंधी कोई अपराध नहीं हुआ। गांव में दरवाजों पर ताला लगाने का रिवाज तक नहीं है।
एक हजार की आबादी वाला यह गांव 100 साल पहले बसा था। पहले इसमें आदिवासी और जाट परिवार के 20 घर थे। 98 साल पहले पाटीदार समाज के लोग बस गए। वर्तमान में जनसंख्या करीब 1000 है। आधी आबादी को वह सुरक्षा मुहैया है, जिसके लिए दुनिया भर में चिंतन और बहस चल रही है। बात चाहे बालिकाओं को शिक्षा देने की हो या उन्हें अपराध और प्रताड़ना से बचाने की।
हर दृष्टि से यह गांव अपने आप में आदर्श है। यह सिर्फ जुबानी कहानी नहीं, बल्कि थाने का रिकार्ड भी कह रहा है। यहां से आज तक कभी भी लड़कियों और महिलाओं के खिलाफ अत्याचार होने का मामला सामने नहीं आया है।
85 साल में कभी नहीं सुना झगड़ा
करीब 100 वर्षीय गंगाबाई पाटीदार ने बताया 15 साल की उम्र में बहू बनकर आईं थीं। तब से उन्होंने कभी नहीं सुना कि किसी महिला को यहां सताया गया। हल्की-फुल्की नोकझोंक पर बड़े-बूढ़ों की समझाइश पर मामला शांत हो जाता है। दहेज आदि के लिए कोई परिवार कभी टूटते नहीं देखा। महिलाएं पुरुषों का बराबर सम्मान करती हैं और पुरुष भी अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं। 30 वर्षीय सीताबाई पाटीदार का मायका और ससुराल रूपाखेड़ा में ही है। उन्होंने भी महिलाओं पर अत्याचार का कोई मामला नहीं सुना।
आदिवासी भी सुरक्षित
गांव में आदिवासी महिलाएं भी सुरक्षा महसूस करती हैं। अमूमन देखने में आता है इस वर्ग की महिलाएं अपनों और असरदारों द्वारा सताई जाती हैं। 90 वर्षीय पूंजीबाई कटारिया ने बताया कभी भी ग्रामीणों और हमारे बीच टकराहट की स्थिति नहीं बनी। मैंने कभी नहीं देखा कि आदिवासी महिलाओं को कमजोर समझकर परेशान किया हो। चारों तरफ महिलाओं से दुष्कर्म, छेड़छाड़, मारपीट, हत्या और जाने किस-किस तरह के अपराध सुनने को मिलते हैं, लेकिन हमारा गांव इन मामलों में अलग है।
नहीं लगता ताला
गांव में महाराष्ट्र के शनि शिगणापुर की झलक देखने को मिलती है। लोग घरों में ताले नहीं लगाते। घरों के बाहर बरामदों में उपयोगी सामान पड़ा रहता है। कभी सुनने में नहीं आता कोई सामान चोरी गया या किसी ने नुकसान पहुंचाया। मथुरालाल पाटीदार ने बताया घरों पर ताला लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। अगर कोई किसी काम से बाहर जाता है तो पड़ोसी को बताकर बेफ्रिक हो जाता है। खेतों से कभी चोरी संबंधी बात सामने नहीं आई।
विनोबा भावे का असर
गांव में आचार्य विनोबा भावे के समाज सुधार का गहरा असर है। महात्मा गांधी और जयप्रकाश नारायण जैसे महान लोगों की विचारधारा यहां लोगों के हृदय में है। 76 वर्षीय गेंदालाल पाटीदार ने बताया 1955 में विनोबा भावे के शिष्यों ने यहां एक माह का शिविर लगाया था। हम लोग उनके विचारों से काफी प्रभावित हुए। तब से अभी तक रोज राम मंदिर पर सर्वधर्म प्रार्थना होती है। इन सबका असर ही गांव की शांति का कारण है।
ये भी विशेषताएं
कोई भी व्यक्ति शराब नहीं पीता।
अधिकांश लोग तंबाकू और बीड़ी से भी दूर।
जुआ और सट्टा से दूरी।
मारपीट, गाली-गलौज और झगड़ों से दूरी।
पंचायत के चुनाव भी अधिकांश निर्विरोध होते हैं।
आदर्श गांव
रुपाखेड़ा गांव आदर्श गांव है। यहां से रिपाेर्ट और शिकायतें नहीं आती। महिलाओं के खिलाफ यहां से कोई प्रकरण अभी तक सामने नहीं आया।
यूएससोनी, टीआई बिलपांक थाना
अनोखा है हमारा गांव
गांव में महिलाओं को बराबर का सम्मान मिला हुआ है। महिलाओं के खिलाफ कोई अपराध सामने नहीं आते। हमारे गांव में विनोबा और गांधी के विचारों का भारत बसता है।
ललिताबाई पाटीदार, सरपंच, ग्राम पंचायत अालनियां रुपाखेड़ा।