हैदराबाद। विरासत की कई किस्से-कहानियां समेटे हुए है पुराना हैदराबाद शहर। इसी पुराने शहर की एक गली में इस्लामिक अध्ययन का बेहद पुराना संस्थान स्थित है जामिया निजामिया। यहां फारसी में अनुदित महाभारत तो है ही और कई दुर्लभ इस्लामिक पांडुलिपियां भी हैं। शिब्ली गंज स्थित यह संस्थान हैदराबाद के ऐतिहासिक चारमीनार से कोई तीन किलोमीटर दूर है।
144 वर्ष पुराने इस इस्लामिक विश्वविद्यालय को अपने शैक्षणिक मानक के कारण काहिरा के अल अजहर विश्वविद्यालय के बराबर ही माना जाता है। जामिया निजामिया में करीब 3000 पांडुलिपियां ऐसी हैं जिनमें 400 वर्ष पुराना अनुदित महाभारत है और भारतीय व अरबी इस्लामी अध्येताओं की लिखी किताबें हैं।
मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक अबुल फजल द्वारा अनुदित महाभारत की यह पांडुलीपि 5012 पृष्ठों में है। यह मौलाना मोहम्मद अनवारुल्ला फारुकी के व्यक्तिगत संग्रह में से एक है। मौलाना जामिया के संस्थापक थे और यह संस्थान दक्षिण भारत की सबसे बड़ी सेमिनरी है। शैकुल जामिया या विश्वविद्यालय के प्रमुख मुफ्ती खलील अहम ने आईएएनएस से कहा, 'उन्होंने महसूस किया कि पुस्तकालय में सभी प्रकार की किताबें होनी चाहिए और छात्रों को दूसरे धर्मों के बारे में अध्ययन करना चाहिए।'
महाभारत दो हिंदू महाकाव्यों में से एक है। यह सबसे लंबा महाकाव्य है जिसमें कुल 18 लाख शब्द प्रयुक्त हैं। इसका आकार 'इलिआद' और 'ओडिसी' से अनुमानत: 10 गुना बड़ा है। धर्म का तुलनात्मक अध्ययन के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से आए छात्र और दूसरे देश से आए छात्र एवं अध्येता जामिया निजामिया के पुस्तकालय में फारसी में अनुदित महाभारत को पढ़ने आते हैं और इसके अलावा फारसी, अरबी एवं उर्दू में दुर्लभ पांडुलिपियां और किताबें पढ़ते हैं।
पुस्तकालय के प्रमुख फैसुद्दीन निजामी ने कहा यहां आने वाले अध्येताओं में चीन और जापान से आने वालों ने हाल ही में जामिया का दौरा किया था। उन्होंने कहा, 'यह लाइब्रेरी जामिया की हृदयस्थली में है और ये पांडुलिपियां इस लाइब्रेरी का दिल हैं।' उनका इशारा पवित्र कुरान की 400 वर्ष पुरानी पांडुलिपि की तरफ था। इसके पहले दो पन्ने स्वर्ण मंडित हैं।
सबसे पुरानी पांडुलिपि 'किताब-उल-तबसेरा फिल किरातिल अशरा' है जिसके लेखक मशहूर इस्लामिक अध्येता अबू मोहम्मद मक्की बिन तालिब थे। 750 वर्ष पुरानी किताब कुरान के बारे में जो 'तजवीद' कला के साथ है। दुनिया में इस मास्टरपीस की केवल दो प्रतियां ही हैं जिसमें से एक तुर्की के खलीफा पुस्तकालय में है।