राकेश दुबे@प्रतिदिन। सच में दिल्ली के चुनावी नतीजे छप्परफाडू रहे| यूँ तो छप्पर फटना एक मुहावरा है, विभिन्न सन्दर्भों अलग-अलग तरह से प्रयोग होता है दिल्ली में यह भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और उनके कारण आप पार्टी के लिए यह मिसाल के रुप में एक अलग अर्थ में कायम हो गया| सबसे ज्यादा जिस एक शब्द के आगे पीछे यह पूरा चुनाव रहा वह है “अहं”| सबके अपने अपने अहं और वहम थे| कोई अपने को अपराजेय मन बैठा था तो किसी को बेवजह के मुगालते थे| जैसे श्रीमती किरन बेदी – पता नहीं किसने उनको कह दिया कि सारी दिल्ली उनकी है और भाजपा जैसी अनुभवी पार्टी ने मान लिया कि किरन बेदी के नेतृत्व का विकल्प उनके पास मौजूदा नहीं है| नतीजा सीमेंट कंक्रीट का मजबूत छप्पर धराशायी हो गया|
भारतीय जनता पार्टी जिस कांग्रेस के विकल्प के रूप में उभरी थी, उससे बेहतर वह सिर्फ भाषणों में ही साबित हुई| जनता कि उम्मीदें [जैसे खातों में धन], बकौल अमित शाह वो तो चुनावी वादे थे ने एक आन्दोलन को स्थापित राजनीतिक दल बनने में मदद की “आप” को शाह का आभार मानना चाहिए| भारतीय जनता पार्टी जब जब व्यक्तिपरक हुई है उसकी संख्या इकाई में सिमट गई है| अनेक उदाहरण हैं| भारतीय जनता पार्टी को अपने वचन पर कायम रहना चाहिए ,जो नहीं होता है| भारतीय जनता पार्टी को और विशेष कर नरेंद्र मोदी को अरविन्द केजरीवाल को धन्यवाद देना चाहिए की उन्होंने कांग्रेस मुक्त भारत के नारे में अपना योगदान दिया है|
बात छप्पर से शुरू हुई थी| कांग्रेस में तो छ्प्पर ही छप्पर दिखता है| कभी कभार कोई स्तम्भ बनने कि कोशिश करता है तो दरबारी 10, जनपथ पर “तुमसे अच्छा कौन है ?” गाना गाने लगते हैं| छप्पर में गेड़ी बनकर लगने का मंसूबा अजीत माकन ने भी बांधा था| पर अब दिल्ली उन सहित बहुत लोगों के लिए बहुत दूर हो गई है|
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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