उपदेश अवस्थी/लावारिस शहर। सुल्तानिया अस्पताल के निलंबित अधीक्षक को बहाल कराने के लिए डॉक्टरों की हड़ताल लगातार जारी है। बार बार मरीजों को बिना इलाज के भगाया जा रहा है। शुक्रवार को भी ऐसा ही किया गया। ये मरीजों के 'इलाज के अधिकार' का उल्लंघन है। मरीजों को इस तरह परेशान नहीं किया जा सकता। डॉक्टरों को समस्या आला अफसरों से है लेकिन परेशान मरीजों को किया जा रहा है।
समझ तो यह भी नहीं आ रहा कि इस मामले में शिवराज सरकार चुप क्यों है। क्यों मरीजों को तड़पने और मरने के लिए लावारिस छोड़ रही है। हड़ताली डॉक्टरों ने 10 फरवरी से 24 घंटे तक कामबंद हड़ताल का ऐलान किया है। एक बार फिर मरीजों को परेशानी भोगनी होगी। इस तरह की हड़ताली राजनीति कहां तक उचित है जो आम आदमी के लिए परेशानी का सबब बन जाए।
यदि डॉक्टरों को अधीक्षक के निलंबन पर आपत्ति है तो निलंबित करने वाले अधिकारी का घेराव करे, उसे उसी के आफिस में बंधक बना ले, प्रमुख सचिव का घेराव करे, मुख्य सचिव को उन्हीं के घर में कैद कर दें। सीएम हाउस के सामने प्रदर्शन करें। जो मर्जी आए करें, लेकिन मरीजों का इलाज तो करें। जिन्होंने आपका बिगाड़ा है आप उनका बिगाड़ दो। न्याय व्यवस्था पर भरोसा हो तो हाईकोर्ट चले जाओ, लेकिन मरीजों की जान से खिलवाड़ तो कतई उचित नहीं है। यह तो गंभीर अपराध है, जघन्य पाप है।
समझ में यह भी नहीं आ रहा कि क्यों सरकार बैठे बैठे मरीजों को मरते हुए देख रही है। डॉक्टर दादगिरी दिखा रहे हैं और सरकार चुपचाप देख रही है। क्या कमजोरी है, क्या सचमुच गलती हो गई है जो दुबक कर बैठी हुई है सरकार। एस्मा क्यों नहीं लगा देती। हड़ताल करें जो जेल में डाल दो। हड़ताल यदि उनका लोकतांत्रिक अधिकार है तो जेल में डालना सरकार का प्रशासनिक हक। मरीजों की जान से खिलवाड़ किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं होना चाहिए।
हो सकता है ये हड़ताली अपनी योग्यता के आधार पर डॉक्टर बन गए हों परंतु इनकी पढ़ाई पर लाखों रुपए सरकारी खर्च हुए हैं। यह पैसा हमारी जेब से टैक्स के रूप में गया है। इलाज करके ये एहसान नहीं करते। इलाज करना इनकी जिम्मेदारी है और नागरिकों का अधिकार। जनता ने कोई गुनाह नहीं किया, फिर सजा मरीजों को क्यों। सावधान! यदि जनता भड़क गई तो हड़तालियों को डॉक्टर की जरूरत पड़ जाएगी। जरा सोचिए, तब भी यदि डॉक्टरों ने हड़ताल कर दी तो...।