देश का बजट: सब कुछ बेहतर नहीं

Bhopal Samachar
राकेश दुबे@प्रतिदिन। बजट 2015 का वित्तीय गणित बहुत उलझा हुआ है। देश के सालाना बजट में सबसे बड़ी समस्या राजस्व के लक्ष्य को लेकर रहती है। हर बजट में तय हो जाता है कि इस बार इतना राजस्व संग्रह किया जाएगा,  लेकिन हकीकत में उतना राजस्व आ नहीं पाता। जिसका नतीजा यह होता है कि एक तो सरकार पर खर्च घटाने का दबाव बनता है और दूसरे वित्तीय घाटा बढ़ने का खतरा भी पैदा होता है। 

इसलिए यह जरूरी है कि सरकार अपने आंकड़ों को यथार्थवादी बनाए। राजस्व बढ़ाना हमारी सबसे बड़ी जरूरत है, लेकिन उसके पहले यह भी जरूरी है कि बजट के आंकड़ों को विश्वसनीय बनाया जाए। वित्त मंत्री अरुण जेटली जिस समय अपना बजट पेश करने जा रहे हैं,  देश के आर्थिक माहौल में कई अच्छी चीजें नजर आ रही हैं। सबसे पहली बात यह है कि विकास दर ने बढ़ना शुरू किया है और आगे के आसार भी बहुत अच्छे हैं। 

दूसरा यह भी है कि महंगाई नियंत्रण में आती दिख रही है। मुद्रा-स्फीति रिजर्व बैंक द्वारा तय किए गए लक्ष्य के करीब आ गई है। विदेश व्यापार के मोर्चे से भी अच्छी खबरें आ रही हैं। खासकर पेट्रोलियम की कीमतें नीचे आने से काफी फायदा मिला है। लेकिन सब कुछ बेहतर हो गया हो,  ऐसा भी नहीं है। सबसे बड़ी समस्या निवेश को लेकर है। निवेश बढ़ नहीं रहा,  निवेश का जो लक्ष्य तय हुआ था, वह पूरा नहीं हुआ है। 

निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने अभी तक जो कदम उठाए हैं, उसका ज्यादा असर नहीं दिख रहा। निजी क्षेत्र अब भी नए निवेश के लिए आगे नहीं आ रहा है। ऐसे में,  सरकार को बजट में यह बताना होगा कि वह और क्या कर सकती है। सरकार खुद जिन क्षेत्रों में निवेश कर सकती है, उसके लिए उसे योजना पेश करनी चाहिए। खासकर इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में। सरकार सड़क, रेल, बंदरगाह परियोजनाओं में निवेश बढ़ा सकती है। इनमें सड़क और रेलवे सबसे महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा सरकार नए शहर बनाने और बसाने का काम भी कर सकती है। लेकिन सरकार इस तरह का निवेश एक सीमा से ज्यादा नहीं कर सकती। 

उसे वित्तीय घाटे की सीमा को भी ध्यान में रखना होगा। पिछले बजट में सरकार ने यह तय किया था कि अगले वित्त वर्ष में वित्तीय घाटा जीडीपी के 3.6 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए। अब देखना यह है कि सरकार इस सीमा को तोड़ती है या इसी के भीतर काम करती है। वित्तीय घाटे को बढ़ने से रोकने के दो ही तरीके होते हैं- या तो सरकार अपनी आमदनी बढ़ाए या फिर वह अपना खर्च कम करे। तरह-तरह के करों के जरिये होने वाली सरकार की आमदनी को बढ़ाने की एक सीमा है।

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!