भोपाल। मुख्यमंत्री, मंत्रियों सहित अन्य प्रभावशाली लोगों के खिलाफ कोर्ट में याचिका या मुकदमा दायर करना आसान नहीं होगा। इसके लिए महाधिवक्ता की अनापत्ति और फिर कोर्ट की अनुमति जरूरी होगी। यदि महाधिवक्ता इसे 'परेशान करने या तंग करने की भावना' से प्रेरित ठहराते हैं तो याचिका नहीं लग सकेगी।
मप्र विधि विभाग द्वारा तैयार नया कानून 'मप्र तंग करने वाली मुकदमेबाजी (निवारण) विधेयक 2015' का मसौदा कैबिनेट के लिए मुख्य सचिव अंटोनी जेसी डिसा को भेजा गया है। इसे कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद विधानसभा से भी पास होना है।
क्या है कारण
मप्र हाईकोर्ट जबलपुर के रजिस्ट्रार जनरल ने 12 अगस्त 2014 को पत्र के माध्यम से प्रदेश सरकार को कहा था कि व्यर्थ की मुकदमेबाजी से न्यायालय पर बेवजह का बोझ बढ़ने के साथ उसका कीमती समय भी व्यर्थ हो रहा है। इसके चलते कई महत्वपूर्ण प्रकरणों की समय पर सुनवाई न होने से याचिकाकर्ताओं और पक्षकारों को समय पर न्याय नहीं मिल पा रहा है। इसलिए इनसे बचने के लिए नया कानून बनाएं। पत्र के साथ कई याचिकाओं और रिट की प्रति भी संलग्न थी।
क्या है प्रस्ताव में
किसी याचिका या मुकदमे को अधिवक्ता 'तंग या परेशान करने वाला" बताते हैं तो हाईकोर्ट संबंधित पक्षकार की सुनवाई के बाद आदेश जारी कर देगी कि उस याचिका को किसी भी कोर्ट में सिविल या अपराधिक कोई भी प्रकरण दायर न किया जाए।
-यदि उसने पहले से केस दायर कर रखा है तो उसे वह तत्काल वापस ले।
-ऐसे केस हाईकोर्ट में हाईकोर्ट की अनुमति और राज्य के अन्य जिला और सेशन जज की अनुमति के बगैर दायर नहीं हो सकेंगे।
-न्यायालय प्रक्रिया का दुरूपयोग होने की आशंका जब तक कोर्ट या जज द्वारा दूर नहीं कर ली जाती, केस दायर करने की अनुमति नहीं मिलेगी।
अपील का भी अधिकार नहीं
प्रस्तावित नए कानून मसौदे के अनुसार हाईकोर्ट द्वारा संबंधित याचिका या मुकदमे को तंग या परेशान करने वाला मानने के बाद निरस्त किए जाने पर इस मामले की सुनवाई या अपील कहीं नहीं की जा सकेगी। यह हाईकोर्ट का अंतिम फैसला माना जाएगा। न्यायालय में मामला दायर करने के लिए पक्षकार को यह साबित करना अनिवार्य होगा कि उसने यह प्रकरण तंग या परेशान करने की भावना से नहीं लगाया है। वहीं उसके पास इस मामले से संबंधित पुख्ता दस्तावेज मौजूद हैं।