'घर वापसी' के बाद हिंदू आरक्षण का हकदार: सुप्रीम कोर्ट

shailendra gupta
नई दिल्ली। देश भर में 'घर वापसी' के मुद्दे पर जारी विवाद के बीच गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि ईसाई से हिंदू धर्म में वापसी करने वाला व्यक्ति आरक्षण के लाभ का हकदार होगा। अगर अनुसूचित जाति में उसके समुदाय के लोग उसे अपनाने के लिए स्वीकार हो जाते हैं तो उसे जातिगत कोटे का लाभ मिलना चाहिए।

संविधान के ऑर्टिकल और मंडल तथा चिनप्पा कमिशन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा, '' इस बारे में विस्तृत अध्यन हुआ है कि किसी आशा या प्रभाव में ईसाई धर्म को अपना लेने वाले सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों का संबंध हिंदू धर्म के अनुसूचित जाति से है।'' दीपक मिश्रा और वी गोपाल गोवडा की बेंच ने कहा कि हिंदू धर्म में वापसी करने वाले एक व्यक्ति को उसके आरक्षण के अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकेगा। पिछली संवैधानिक बेंच के फैसले पर प्रकाश डालते हुए बेंच ने कहा कि संवैधानिक (अनुसूचित जनजाति) 1950 के आदेश में जातियों को आरक्षण संबंधी लाभ के बारे में कहा गया है, उसे केवल यहां तक सीमित नहीं रखा जा सकता कि जिनके माता-पिता पिछली जाति से हैं उन्हें ही कोटा का लाभ मिलेगा। कोर्ट ने कहा, ''यदि कोई ईसाई परिवार में पैदा हुआ है जिन्होंने हिंदू, अनुसूचित जनजाति से ईसाई धर्म को अपनाया था, वह व्यक्ति दोबारा हिंदू धर्म अपनाने के बाद कास्ट सर्टिफिकेट के साथ आरक्षण की सुविधा पाने का हकदार है। यहां यह तर्क नहीं दिया जा सकता कि उसके माता-पिता इस जाति से नहीं आते तो उसे आरक्षण नहीं मिलेगा।'' बेंच ने कहा कि इस प्रकार का आरक्षण पाने के लिए व्यक्ति को तीन आवश्यक शर्तें पूरी करनी होती है। उसे साबित करना होगा कि उसके संबंध केवल उसी जाति से जिसकी पहचान अनुसूचित जनजाति से है और उसके माता-पिता या उसके पूर्वज इसी जाति से संबंध रखते थे। और उसका समुदाय उसे स्वीकार करने के लिए तैयार है।

साथ ही बेंच ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि किसी ईसाई से शादी करने पर व्यक्ति इससे अयोग्य नहीं हो सकता। बेंच ने कहा, '' जहां तक शादी का सवाल है, हमारा विचार है कि इस बारे केंद्रीय और मौलिक पहलू के चलते सुविधा से इनकार नहीं किया जा सकता। जब समुदाय ने उसे स्वीकार कर लिया है, शादी के बाद भी उसका बहिष्कार नहीं किया गया तो उसे अयोग्य नहीं समझा जा सकता। ''

केरल में रद्द कर दिया गया था कास्ट सर्टिफिकेट
2006 में कास्ट सर्टिफिकेट रद्द किए जाने के बाद एक व्यक्ति द्वारा इस संबंध में कोर्ट में अपील की गई थी। केरल (जाति अनुसूचित और अनुसूचित जनजातियों) रेग्युलेशन के तहत जांच समिति ने सर्टिफिकेट रद्द कर दिया था। कहा गया था कि व्यक्ति के माता-पिता ईसाई हैं और वह समुदाय की परंपरा का पालन नहीं करता। केपी मानू के पूर्वज हिंदू समुदाय से संबंध रखने वाले थे और उनके दादा ने ईसाई धर्म अपनाया था। मानू के माता-पिता भी ईसाई धर्म का पालन करते हैं हालांकि 24 साल की उम्र में मानू ने हिंदू धर्म अपना लिया और उसे अखिल भारत अय्यपा सेवा संग्राम से कास्ट सर्टिफिकेट भी मिल गया था।

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