राकेश दुबे@प्रतिदिन। दिल्ली में कें कि साँस नहीं ली जा सकती| जी हाँ ! यह मुहावरा नहीं है हकीकत है| आम नागरिक कि न तो आप पार्टी सुनती है और न केंद्र सरकार| हर आदमी अमेरिका का राष्ट्रपति बराक ओबामा तो है नहीं कि उसके लिए एयर प्यूरिफायर्स का इंतजाम हो जाये| दिल्ली की खराब हवा को देखते हुए अमेरिका, जापान और जर्मनी अपने दूतावास के कर्मचारियों की पोस्टिंग को तीन साल से घटाकर दो साल करने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। भारत सरकार ऐसी स्थिति में मुसीबत झेलना होगी जब वह अपने को विश्व शक्ति के रूप में विश्व को दिखने पर आमदा है| पिछले कुछ समय से विदेशी प्रतिनिधिमंडलों के बीच दिल्ली की खराब हवा को लेकर बातचीत होती रही है।
अगर ये तीनों देश अपने दूतावास के कर्मचारियों की भारत में पोस्टिंग का समय कम करते हैं तो अन्य यूरोपीय देश भी ऐसा कदम उठा सकते हैं। दिल्ली में पीएम 2.5 का स्तर दुनिया में सबसे अधिक है। पर्यावरण में इस तरह के प्रदूषणकारी तत्वों की वजह से सांस लेने में तकलीफ, लंग कैंसर और हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। सरकार के आंकड़ों के हवाले से पिछले साल मई में विश्व स्वास्थ्य सन्गठन ने दिल्ली के एनवॉयरमेंट में प्रति घन मीटर हवा में 153 माइक्रोग्राम्स पार्टिकल होने का दावा किया था। यह दुनिया के औसत के मुकाबले 15 गुना अधिक है। अवमानक हवा के मामले में दुनिया के 20 बदतर शहरों में भारत के 11 शहर आते हैं।
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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