पढ़िए क्या होता है 'राइट टू रिकॉल'

Bhopal Samachar
भोपाल। शहर के 8 लाख 86 हजार मतदाताओं ने विकास की बागडोर 85 उम्मीदवारों को सौंपी है। उन्हें अपना मत देकर पार्षद बनाया है। ये पार्षद यदि आपकी उम्मीदों पर खरे न उतरें, क्षेत्र का विकास न करें या फिर भ्रष्टाचार करें तो आप इन्हें वापस भी बुला सकते हैं। आपके पास 'राइट टू रिकॉल' है, जिसके तहत आप न सिर्फ पार्षदों को वापस बुला सकते हैं, बल्कि महापौर और सभापति पर भी कार्रवाई हो सकती है।

ऐसे होगा रिकॉल
नगर पालिक निगम विधि संहिता में पार्षद और महापौर के दायित्व और अधिकारों का उल्लेख है। मतदाताओं की कसौटी पर खरे नहीं उतरने पर उन्हें वापस बुलाने का भी जिक्र है। पार्षदों के काम नहीं करने या भ्रष्टाचार करने की शिकायत सबूतों के साथ संभागायुक्त को की जा सकती है। शिकायत सही पाए जाने पर संभागायुक्त पार्षद को हटा भी सकते हैं।

परिषद भी हटा सकती है पार्षद को
शिकायत मिले कि पार्षद गलत तरीके से निर्वाचित हुए हैं या उनके आचरण को लेकर गंभीर आरोप हैं तो निगम परिषद भी पार्षद को हटाने का निर्णय ले सकती है। इसके लिए कम से कम दो तिहाई बहुमत से परिषद में निर्णय पारित होना चाहिए।

महापौर को बुलाना कठिन
महापौर को भी पद से हटाया जा सकता है। इसके लिए परिषद में पार्षदों की कुल संख्या के कम से कम तीन चौथाई पार्षदों के समर्थन से प्रस्ताव पास होना चाहिए। परिषद द्वारा महापौर को हटाने का प्रस्ताव स्वीकृत करने के बाद राज्य शासन को भेजा जाता है। राज्य शासन इसे निर्वाचन आयोग को भेजता है। जनमत संग्रह को लेकर निर्वाचन आयोग अंतिम निर्णय लेता है। आयोग के निर्णय के बाद मतदान कराया जाता है। प्रस्ताव आगे बढ़ने के लिए कम के कम 50 प्रतिशत मतदान होना अनिवार्य है। महापौर को हटाने के पक्ष में कम के कम 75 प्रतिशत मतदाता होने की स्थिति में ही महापौर को हटाया जा सकता है।

इस तरह समझें प्रक्रिया
शहर में 15 लाख वोटर और 85 पार्षद हैं। महापौर के खिलाफ प्रस्ताव पास करने के लिए कम से कम 64 पार्षदों का समर्थन जरूरी है। निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव कराने की स्थिति में मतदान तभी वैध माना जाएगा, जब मतदान कम से कम 50 प्रतिशत हो। महापौर को उसी स्थिति में वापस बुलाया जाएगा जब इन मतों में से 75 प्रतिशत वोटर महापौर को हटाने के पक्ष में मत करें। इस तरह चुनने से अधिक मुश्किल है महापौर को रिकॉल करना।

पार्षदों के कर्तव्य और अधिकार
पार्षदों को निगम सम्मेलन में शामिल होने, परिषद के एजेंडे पर बहस में भाग लेने और स्वविवेक से मत देने का अधिकार होता है। पार्षद वॉक आउट नहीं कर सकते, प्रस्ताव पर मत व्यक्त करना उनका कर्तव्य है।

-पार्षदों का कर्तव्य है कि ऐसा कोई भी कृत्य जिससे निगम की हानि हो, के बारे में निगमायुक्त और संबंधित विभाग को तुरंत सूचित करें। इन कृत्यों में अवैध निर्माण और अवैध गतिविधियां भी शामिल हैं।

-पार्षदों को हर महीने 6 हजार रुपए वेतन के रूप में मिलते हैं। इसके अलावा 250 रुपए टेलीफोन भत्ता और 225 रुपए बैठक भत्ता के रूप में भी मिलते हैं।

महापौर के अधिकार
महापौर को बगैर परिषद से स्वीकृति लिए 25 लाख रुपए तक के प्रस्ताव पास करने के अधिकार हैं।
महापौर मेयर इन काउंसिल (एमआईसी) का गठन कर सकते हैं। इसमें शामिल सदस्यों को बगैर कारण बताए हटा भी सकते हैं।
महापौर को 14 हजार रुपए मासिक वेतन के रूप में मिलते हैं। इसके अलावा 2500 हजार रुपए सत्कार भत्ते के मिलते हैं।

हरदा में कांग्रेस की नपाध्यक्ष को जनता ने वापस बुलाया
हरदा नगरपालिका अध्यक्ष को हटाने के लिए हुए खाली कुर्सी और भरी कुर्सी के चुनाव में खाली कुर्सी की जीत हुई है। अब यहां नगर पालिका अध्यक्ष के लिए चुनाव कराए जाएंगे। कांग्रेस की नपा अध्यक्ष संगीता बंसल के खिलाफ पिछले दिनों अविश्वास प्रस्ताव पारित होने के बाद खाली कुर्सी और भरी कुर्सी के लिए 31 जनवरी को मतदान हुआ था। इसमें खाली कुर्सी को 13,0 44 मत मिले, जबकि भरी कुर्सी को 9,302 वोट ही मिल सके। इस तरह 3542 वोटों से खाली कुर्सी की जीत हुई है।

इनका कहना है
री-कॉल का प्रावधान है। अगर इस तरह की कोई शिकायत आती है, तो उसकी विधिवत तरीके से जांच होती है, उसके बाद निर्णय लिया जाता है।
एसबी सिंह, संभाग आयुक्त

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