रतलाम। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पहचान रही है कि वो कभी आंदोलन जैसी गतिविधियों को आयोजित नहीं करता परंतु अब देश में मोदी सरकार है, कुछ भी हो सकता है। रतलाम की सड़कों पर कुछ ऐसा ही देखने को मिला।
2 यातायात पुलिसकर्मियों पर मारपीट का आरोप लगाते हुए संघ ने अधिकृत रूप से घोषित करते हुए प्रदर्शन किया और रास्ता जाम कर दिया। उनके साथ विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और भाजपा सहित तमाम सहयोगी संगठनों के कार्यकर्ता भी थे।
आरोप लगाया गया है कि ट्रेफिक पुलिस के 2 सिपाहियों ने संघ के खंड कार्यवाह विनोद पाटीदार व तहसील शारीरिक प्रमुख संतोष पाटीदार के साथ इसलिए मारपीट की क्योंकि उनके पास वाहन के असली कागज नहीं थे। इधर पुलिसकर्मियों का कहना है कि संघ के स्वयंसेवक दादगिरी दिखा रहे थे, इसलिए उन्हें पकड़कर टीआई के सामने ले गए थे। मारपीट नहीं की गई। टीआई के सामने भी उन्होंने अभद्रता की अत: टीआई ने भी उन्हें डांटा था।
मामला जो भी हो, लेकिन इस तरह का प्रदर्शन संघ के संस्कार नहीं हो सकते। इस घटना के तत्काल बाद संघ के लोग एकजुट होना शुरू हो गए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वीरेंद्र वायगांवकर, रत्नदीप निगम, विहिप के भगवानदास त्रिलोकचंदानी, राजेश कटारिया, डॉ. उदय यार्दे, भाजपा नेता शंकरलाल पाटीदार, निर्मल कटारिया, बलवंतसिंह भाटी सहित सैंकड़ों लोग मौके पर ऐसे पंहुचे जैसे कोई गंभीरतम् अपराध हो गया हो।
नारेबाजी की, जाम लगाया, सरकारी संपत्ति को नुक्सान भी पहुंचाया। एसपी को चुनाव ड्यूटी छोड़कर सामने उपस्थित होने के आदेश भी दिए। आंदोलन तब तक चलता रहा जब तक कि दोनों पुलिसकर्मियों को सस्पेंड नहीं कर दिया गया।
क्या होना चाहिए था
प्रथम तो यह कि यह संघ के संस्कार नहीं हो सकते। संघ कभी इस तरह की गुंडागर्दी का समर्थन नहीं करता। यदि संघ के पदाधिकारी आहत हो भी गए थे तो इसके लिए पर्याप्त और उचित मार्ग उपलब्ध था। प्रदेश में भाजपा की सरकार है। सीएम शिवराज सिंह चौहान संघ के हर आदेश को शिरोधार्य करते हैं। वरिष्ठ स्तर पर बातचीत करते, पीएचक्यू से आदेश जारी करा देते। इस तरह सड़कों पर उतरने की कतई जरूरत नहीं थी। लोकतांत्रिक मूल्य तो यह कहते हैं कि किसी भी कार्रवाई से पहले आरोपी सिपाहियों को भी तो अपनी बात कहने का मौका देते। यदि ऐसे ही दादगिरी दिखानी है तो फिर कांग्रेस क्या बुरी थी।