ये कैसी शिक्षा प्रणाली, शिक्षा के बजाय जानकारियों में उलझे शिक्षक

Bhopal Samachar
डॉ. ए.के. मिश्रा। शिक्षक वर्तमान समय में अपना मूल काम छोडकर वह कर रहे है जो उन्है नही करना चाहिए,या यू कह लो कि उनसे वह काम करवाया जा रहा है जिसमें जिसमें केवल भ्रष्टाचार का बढवा मिलता है।

शिक्षक आजकल छात्रों को पढ़ाने की बजाय अन्य कार्यों मे व्यस्त हैं यह सत्य, किन्तु विचित्र है कि आजकल जो नई-नई नीतियां शिक्षा के क्षेत्र मे लागू की जा रही हैं उससे आय तो हो रही है और व्यय भी दोगुना हो रहा है और इसी अधिक आय की चाहत में जुड़े अधिकारी, नेता, मंत्री, कर्मचारी आदि ज्यादा ध्यान दे रहे हैं।

जिससे कार्यरत शिक्षक छात्र, छात्राओं को पढ़ाने की बजाय जानकारियां देने पर जुटे हैं और छात्रों का भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है अगर किसी स्कूल में 50 विद्यार्थी से कम सं या है तो इस आधार पर एक या दो अध्यापक ही रहेंगे चाहे विद्यार्थी अलग-अलग क्लास के क्यों न हो।

ऐसी स्थिति में अलग-अलग क्लासों में एक शिक्षक कैसे शिक्षा देता होगा ये सोचने की बात है इसके बाद उन्हें मध्यान्ह भोजन व्यवस्था भी देखना रहता है और साथ में कार्यालयीन कार्य भी देखने होते है।

अक्सर देखा गया है कि  कई जगहों पर एक ही अध्यापक है जिनका समय सब्जी की व्यवस्था करना, भोजन तैयार करने में निकल जाता है ऐसे में क्या पढ़ाते होंगे ये विचार करने का प्रश्न है ये कैसी शिक्षा प्रदान करते होंगे।

आपस में ये छुट्टियां बनाते है समय पर स्कूल नहीं जाते, भ्रश्टाचार जब तक ठीक नहीं होगा तब तक खेल चलता रहेगा, क्योंकि विदेषों कि ये प्रणालियां अभी यहां लागू करने में बहुत विसंगतियां हैं और विदेषियों ने सोचा कि ये

वर्तमान समय जो शिक्षा प्रणाली है वह हमारी स यता सस्कृति से मिलो दूर है और इस शिक्षा प्रणाली को अंग्रेजो ने हमे इस कारण दी, कि हिन्दुस्तानी की शिक्षा भारत की आत्मा इनकी संस्कृति से है और यह विश्व की सभी शिक्षा पदत्तियों से श्रेष्ठ और उच्च है, हमारे गुरूकुलो में शिक्षा के साथ बालको को इस तरह से तैयार किया जाता था कि वह अपने परिवार और राष्ट्रवाद की भावना से ओतप्रोत हो। इन्हें उलझाओ इस कारण यह शिक्षा प्रणाली हमें अग्रेंज दे गए कि हमारे जाने के बाद भी भारत शारिरिक नही मानसिक गुलाम तो रहेगा।

और इन अंग्रेजो से आगें निकली ये सत्ताए इन्होने आजकल शिक्षा के स्तर को नही सुधारा बल्कि शिक्षा के मंदिरो को भ्रष्टाचार की शाला बना दिया है वह योजना लागू की गई जिससे नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार को बढवा मिले।

नई नीतियां, मध्यान्ह भोजन के साथ अनेकों जानकारियों में अध्यापकों को उलझा दिया है  इस पर सुप्रीम कोर्ट ने चिन्ता भी जताई है कि अध्यापक क्यों नहीं पढ़ाते, सही बात तो यह है जब तक कलेक्टर, एस.पी, डी.ई.ओ, एस.डी.एम, नेता, मंत्री व अन्य रसूखदार व स्वयं अध्यापकों के बच्चे इन सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ेंगे तब तक शायद ही इसका स्तर सुधर सके।

यह विचार हो सके कि सरकारी स्कूलों में भी जो गरीब बच्चे हैं वो उन मां-बाप के सपने है जो धन के अभाव में अच्छे स्कूलों में नहीं पढ़ा सकते, क्यों अगर इनके साथ आई.ए.एस, आई.पी.एस, नेता, मंत्रियों व अन्य स्थानीय अधिकारियों के बच्चे पढ़ेंगे तो मास्टर साहब समय-समय पर आयेंगे और भय के कारण अच्छा ध्यान देंगेे।

जिससे उनके बच्चों के साथ गरीब बच्चों का भविष्य भी बनेगा और शासकीय मेडिकल कॉलेजों की तरह शासकीय स्कूलों की दशा में सुधार होगा और मॉडल बनेगा, नहीं तो नई शिक्षा नीति केवल जानकारी का केन्द्र बिन्दु बनकर ही रहेगा।

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