जगदीश शुक्ला/मुरैना। चुनावों में शांति व्यवस्था बनाने के नाम पर प्रशासन द्वारा चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों से कैश बॉण्ड जमा कराने का प्रशासनिक प्रयोग भले ही निर्वाचन प्रक्रिया में शांति व्यवस्था कायम रखने में कामयाब रहा लेकिन इसके दुष्परिणामों के रूप में चुनाव लड़ रहे कई प्रत्याशियों को अपने आपको चुनाव मैदान से हटने के लिये मजबूर होने के भी कई मामले सामने आये हैं।
जिससे हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं पर अमीर पोषक होने का सवालिया निशान लगने लगा है। प्रशासनिक एवं निर्वाचन अधिकारियों द्वारा लागू किये गये इस स्वायंभू कानून से समाज में आर्थिक रूप से सम्पन्न होना निर्वाचन की अनिवार्य योग्यता समझा जाने लगा है।
उल्लेखनीय है कि जिले में निर्वाचन एवं प्रशासनिक अधिकारियों ने नगरीय निकाय एवं पंचायती चुनावों में प्रत्याशियों सहित उनके समर्थकों से चुनावों में शांति व्यवस्था कायम रखने के बंधपत्र के साथ हजारों रूपये की राशि नगद जमा कराने के फरमान अघोषित रूप से जारी किये थे। इस क्रम में जिले के नगरीय निकाय एवं पंचायत चुनावों के अपवादों को छोड़कर शत प्रतिशत रूप से कैश बाण्ड जमा कराये गये थे।
जानकार बताते हैं कि पंचायत निर्वाचन में भाग लेने बाले अभ्यर्थियों से संबंधित अनुविभागीय अधिकारी द्वारा अपने अधिकारों का दुरूपयोग करते हुए सरपंच पद के प्रत्याशी से पच्चीस हजार एवं उसके पांच समर्थकों से प्रत्येक से पांच-पांच हजार रूपये जमा कराये गये। इसी प्रकार पंच पद के प्रत्याशी से पांच हजार रूपये एवं उसके समर्थकों से भी इतनी ही राशि जमा कराई गई। इस प्रकार सरपंच पद के प्रत्याशी से कम से कम पचास हजार एवं पंच पद के प्रत्याशी से दस से बीस हजार रूपये तक जमा कराये गये थे।
जिला एवं जनपद सदस्य पद के चुनाव लडऩे बाले अभ्यर्थियों के लिये तो यह राशि लाखों में है। जिले में प्रशासनिक एवं निर्वाचन अधिकारियों के इस तुगलकी फरमान से निर्वाचन में शांति ब्यवस्था कायम रखने में कितनी मदद मिली यह तो वही जाने लेकिन हाल ही में त्रिस्तरीय पंचायती चुनावों में आदिवासी अंचल पहाडग़ढ़ में कई प्रत्याशियों को चुनाव मैदान से हटने के लिये मजबूर होना पड़ा है। गरीब तबके से ताल्लुक रखने बाले कई प्रत्याशियों ने गरीबी के कारण कैश बाण्ड जमा नहीं करने का कारण स्पष्ट करते हुए इस आशय का शपथपत्र भी दिया है कि वे कैश बाण्ड जमा करने में असमर्थ हैं इसलिये वे चुनाव नहीं लडऩा चाहते हैैं।
इन्होंने लिये गरीबी के कारण नाम बापस
पंचायत चुनावों में कैश बाण्ड जमा नहीं कर पाने के कारण कई लोगों ने तो अपने नाम नामांकन बापसी की विहित अवधि में ही बापस ले लिये थे। लेकिन हाल ही में चुनाव लड़ रहे अभ्यर्थियों ने अपने आपको चुनावों से सिर्फ इसलिये बिरत कर लिया क्योंकि उनके पास प्रशासनिक अधिकारियों की मांग के अनुसार कैश बाण्ड जमा करने के लिये हजारों रूपये की ब्यवस्था नहीं थी।
इनमें ममता पत्नी बृजराज सिंह श्रीमती गोलेे पत्नि भीमा मल्लाह निवासी भेदपुरा ग्राम पंचायत सिंगरोली, श्रीमती विद्यादेवी पत्नि मेघसिंह सिरकवार निवासी ग्राम मोहनपुर, श्रीमती रेखा पत्नि शिवकुमार शर्मा निवासी ग्राम रजौधा, श्रीमती ममता देवी पत्नि बृजराज सिंह निवासी ग्राम रंछोरपुरा आदि ने अपने नाम बापस लिये हैं। इनमें से कुछ ने तो बाकायदा कैश बाण्ड जमा कराने में असमर्थ होने के सम्बंध में शपथपत्र भी दिया है। उपरोक्त के अलावा कई अन्य लोगों ने भी अपने नामांकन पत्र इसी कारण बापस लिये हैं।
कई लोगों ने पहले ही नहीं भरे नामांकन
कैश बाण्ड जमा नहीं करा पाने के भय से पंचायत चुनावों में अपना नामांकन नहीं भरने बालों की संख्या इसमें शामिल नहीं है। आदिवासी अंचल पहाडग़ढ़ में जहां आगामी 22 फरवरी को त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के लिये मतदान होना है,वहां हाल ही में एसे कई उम्मीदवारों ने नामांकन भरने के बाद भी गरीबी के कारण चुनाव नहीं लडऩे का शपथपत्र दिया है।
पंच के सैकड़ों पद भी रहे रिक्त
जिले में पंच पद के लिये कई ग्राम पंचायतों में किसी ने भी अपना नामांकन पत्र नहीं भरा है। इसकी एक बजह भी उम्मीदवारों से कैश बाण्ड जमा कराने के अधिकारियों के स्वघोषित कानून को भी माना जा रहा है। जानकारी के अनुसार द्वितीय चरण के लिये सम्पन्न हुए निर्वाचन में सत्तर ग्राम पंचायतों में पंच पद के 342 पदों क लिये किसी उम्मीदवार ने अपना नामांकन पत्र नहीं भरा है।