राकेश दुबे@प्रतिदिन। जासूसी का यह गोरखधंधा वर्षों से जारी था, पर आश्चर्य किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी। साफ है कि देश की बड़ी कंपनियां सरकारी फैसलों पर कड़ी नजर रख रही हैं। पेट्रोलियम मंत्रालय के निर्णय देश की पूरी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं। ऐसे में इनकी अंदरूनी सूचनाओं के आधार पर कुछ कंपनियां निश्चय ही अपना कारोबारी हित साध रही होंगी।
हालांकि, जासूसी का यह कोई पहला मामला नहीं है। पिछले साल जुलाई में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के घर पर जासूसी उपकरण मिलने की खबर आई थी। वर्ष 2013 में वित्त मंत्री अरुण जेटली के फोन टैपिंग का मामला सामने आया था। इसी तरह 2012 में यूपीए-2 सरकार में रक्षा मंत्री एके एंटनी के कार्यालय में जासूसी से सनसनी फैली थी।
अमेरिका द्वारा हमारे राजनेताओं की जासूसी का मामला भी उठाया जा चुका है। यूपीए सरकार ने कोयला घोटाले से संबंधित फाइल के गुम होने की बात कही थी। यह हमारे विडंबना ही है कि जनता को तो मामूली जानकारी भी नहीं मिल पाती, लेकिन बड़े-बड़े स्वार्थी तत्व किसी न किसी तरह संवेदनशील सूचनाएं भी हासिल कर लेते हैं। उन सूचनाओं के जरिए वे अपनी रणनीति तैयार करते हैं या सरकार के निर्णय को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं, जिसका नुकसान अंतत: जनता को ही होता है।
इस मामले की गहराई से जांच जरूरी है। यह पता करना जरूरी है कि इसके पीछे असली खिलाड़ी कौन हैं। अभी तक देश में जो भी जासूसी कांड हुए, उनमें शायद ही कभी जांच अंजाम तक पहुंच पाई। जनता को जानने का पूरा हक है कि आखिर कौन सरकारी दस्तावेजों से खिलवाड़ कर रहा है। आज आधुनिक तकनीक के इस दौर में सुरक्षा के लिए नई टेक्नॉलजी को अपनाने की जरूरत है। अभी कुछ दिनों पहले कहा गया था कि अधिकारी कोई भी नोट या टिपप्णी टैबलेट पर ही दर्ज करें और उसे ऑफिस में छोड़कर जाएं।
पर ऑफिस में भी चीजें सुरक्षित नहीं हैं। दफ्तरों की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करनी होगी। कामकाज के तौर-तरीके इस तरह बनाने होंगे कि कोई किसी कर्मचारी का आसानी से इस्तेमाल न कर पाए। सूचना प्रौद्योगिकी के इस दौर में साइबर हमले की आशंका भी बनी रहती है। कब, कौन और किसकी साइट हैक कर ले और गोपनीय सूचनाएं उड़ा ले जाए, कहना कठिन है। इसलिए इस पहलू पर भी ध्यान देना होगा।
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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