छतरपुर। डायरी में दोस्त का पता और फोटो लिए अपने मित्र को खोजते घूम रहे यूनाइटेड किंगडम (मैनचैस्टर शहर) के रहने वाले जॉन ब्राडशो को देखकर हर कोई अचरज में पड़ जाता था। लेकिन उनके हौसले ने आखिरकार सात समुंदर पार आकर छतरपुर के छोटे-से गांव में रहने वाले अपने दोस्त को गौरव को खोज ही लिया।
दोस्त को देखने के बाद जॉन की आंखें भर आईं और उसे गले लगा लिया। दोस्त को खोजने में जॉन को काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा, लेकिन बाधाओं के बाद भी वे गौरव को खोजने के अपने निश्चय पर अडिग रहे। आखिरकार, बनगांय गांव जाकर गौरव से मुलाकात की।
मेडिटेशन सेंटर में हुई थी दोस्ती
जॉन ब्राडशो ने बताया कि पिछली बार जब वह फरवरी 2014 में भारत आया था तो इंदौर में उसने मेडिटेशन के 10 दिवसीय शिविर में भाग लिया था। इस शिविर के दौरान उसकी मुलाकात गौरव मिश्रा से हुई। 10 दिन में दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई। इसके बाद जॉन की डायरी में गौरव ने अपने गांव का नाम बनगांय छतरपुर लिख दिया था। इस वर्ष जब जान इंडिया आए तो उन्होंने खजुराहो जाने का निश्चय किया। खजुराहो आकर उन्होंने गौरव को खोजने का निश्चय किया।
अजनबी की मदद से पहुंचे गांव
उन्होंने खजुराहो में अनेक लोगों से बनगांय के बारे में पूछताछ की, लेकिन कोई उनको नहीं बता सका। इसके बाद जॉन ने छतरपुर जाने का निर्णय लिया। छतरपुर के बसस्टैंड पर उन्होंने कई लोगों से बनगांय के बारे में जानकारी ली, लेकिन अंग्रेजी के कम ज्ञान के कारण लोग उनको बता नहीं सके। तभी एक अजनबी ने जॉन की मदद की। जॉन ने बताया कि वह उसको बनगॉय तक ले गया और गौरव से मुलाकात कराई। जॉन को अपने घर पर देखकर गौरव भी अचंभित हो गया।
अनोखा है भारत
कम्युनिटी इश्यू, सोशल जस्टिस और शांति पर देश का अध्ययन कर रहे जॉन कहते हैं कि पहले उनकी भारत के लोगों के बारे में धारणा सही नहीं थी। लेकिन खजुराहो और इस क्षेत्र में जिस तरह लोगों ने दयालु भाव से उनकी मदद की उससे उनकी धारण पूरी तरह बदल गई है। वे कहते हैं कि भारत अनोखा देश है। बनगांय जाकर पता चला कि ग्रामीण भारत का जनजीवन उसकी आत्मा है। जॉन ने बनगॉय में बेर खाए और खेतों की हरियाली का आनंद लिया।