राकेश दुबे@प्रतिदिन। दिल्ली चुनाव के नतीजों का पूर्वानुमान ऐसे या वैसे कैसे भी नतीजों में बदले, भारतीय जनता पार्टी को आत्ममुग्धता से बाहर आ जाना चाहिए अभी भाजपा इस बात से पूरी तरह आश्वस्त है कि उसने बड़ी संख्या में जो अध्यादेश लाए हैं, उसे लोगों ने सहजता से लिया है, क्योंकि वे मोदी को एक निर्णायक नेता मानते हैं तथा उन्हें भरोसा है कि मोदी 'प्रगति' की राह में किसी तरह का रोड़ा आने नहीं देंगे।
भाजपा का अहंकार तब दिखता है, जब वह कानून के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर बहस के विकल्प के तौर पर खुलेआम संसद का संयुक्त सत्र बुलाने की बात करती है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को दृढ़ यकीन है कि कुछ ही समय बाद राज्यसभा में भी उनका बहुमत हो जाएगा। उनकी अंतर्निहित धारणा है कि भारतीय जनता पार्टी और मोदी की लोकप्रियता न केवल बरकरार है, बल्कि बढ़ रही है,जबकि ऐसा नहीं है । भाजपा के आत्म-संतुष्ट प्रवक्ता कहते हैं कि चूंकि मोदी के प्रति लोगों की उम्मीदें अब भी बनी हुई हैं, इसलिए परेशान होने की जरूरत नहीं है। दिल्ली के चुनाव में इस धारणा को भारी झटका लगा है, चाहे अंतिम नतीजा कुछ भी क्यों न हो।
भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर विपक्षी दलों ने उन्हें घेरने की तैयारी कर ली है। यह उद्योग के लिए किसानों की जमीन जबरन छीनने की बात करता है। सहमति का अनुबंध हमारी लोकतांत्रिक परंपरा का मूल है और इसे पूरी तरह से खत्म करना गैर-गांधीवादी काम है। यह अध्यादेश यही गैर-गांधीवादी काम कर रहा है।
भाजपा और मोदी ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि उनकी आर्थिक नीति को एक शब्द में प्रकट किया जा सकता है-ट्रस्टीशिप । ट्रस्टीशिप की मूल धारणा की तभी हत्याहो गई , जब 'विकास' के बड़े उद्देश्य के नाम पर आपने साधारण लोगों की जमीन जबरन छीन ली। कोई आश्चर्य नहीं कि आज व्यावसायिक समुदाय और शेयर बाजार के बड़े निवेशक आगे बढ़कर चीख-चीखकर भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का समर्थन कर रहे हैं। विकल्पहीनता और राज्यों में मैनेज किये गये प्रतिपक्ष के आधार पर पूरे देश पर एक छत्र राज्य का सपना आत्ममुग्धता है | इससे बाहर आने पर भी भाजपा कुछ बन सकेगी, कुछ कर सकेगी|
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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