भोपाल। प्राईवेट सीबीएसई स्कूल पूरी तरह से बेलगाम हो चुके हैं। वो ना केवल स्टेशनरी में 200 प्रतिशत तक कमीशन कमाते हैं बल्कि मोटी फीस के अलावा दूसरे तमाम खर्चों के नाम पर एक छात्र के पालक से सवा लाख रुपए तक वसूल लेते हैं। आश्चर्यजनक तो यह है कि सरकार ने पेरेंट्स को लुटने के लिए लावारिस छोड़ रखा है। कोई रेग्यूलेटर ही नहीं जो इन स्कूलों को रोके।
2012 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री अर्चना चिटनीस ने फीस रेगुलरिटी कमेटी बनाने की घोषणा की थी, लेकिन कोई प्लान तैयार नहीं किया। कमेटी के बारे में खुद स्कूली शिक्षा राज्य मंत्री दीपक जोशी स्वीकारते हैं कि पिछली सरकारों ने कार्रवाई नहीं की।
तमिलनाडु और दिल्ली में है कमेटी
तमिलनाडु और दिल्ली सरकारों ने निजी सीबीएसई स्कूलों पर अंकुश लगाने के लिए बोर्ड बनाया है। वहां फीस नियामक कमेटी ये देखती है कि फीस ज्यादा न ली जाए लेकिन हमारी सरकार को फीस निर्धारण के लिए कमेटी बनाने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई। इससे पैरेंट्स मजबूरन स्कूली को मनमानी फीस देता आ रहा है।
बिल्डिंग फंड भी पैरेंट्स से वसूल रहे
स्कूलों एडमिशन फीस से लेकर प्रोसेसिंग फीस, रजिस्ट्रेशन फीस, एलुमिनि फंड, एक्टिविटी, कम्प्यूटर फीस, बिल्डिंग फंड, कॉशन मनी, एनुअल तथा बस फीस के नाम पर 30 हजार से लेकर डेढ़ लाख स्र्पए तक पैरेंट्स से लिए जा रहे हैं।
1975 से नहीं बदले नियम
1975 में निजी विद्यालयों के लिए अधिनियम बना था। सीबीएसई स्कूल 1962 में पूरी तरह अस्तित्व में आ गए थे लेकिन उस समय सीबीएसई बोर्ड के निजी स्कूलों का अस्तित्व नहीं था। लेकिन 1990 के बाद सीबीएसई स्कूलों की संख्या बढ़ती गई, लेकिन किसी भी सरकार ने फीस पर अंकुश नहीं लगाया। इससे स्कूल संचालकों के हौंसले बढ़ते गए और हर साल तमाम तरह की फीसों में इजाफा होता गया।
CBSE के कानूनी खाके में ही खोट
प्रदेश के सीबीएसई स्कूलों की धांधली और लूट में केवल प्राइवेट स्कूल ही शामिल हैं। धांधली की जड़ में सीबीएसई के कानूनी खाके में ही खोट है जिसके अनुसार निजी स्कूलों में एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम लागू करना तो अनिवार्य है लेकिन पाठ्यपुस्तकों के चयन के लिए छूट है।
सैद्धांतिक रूप से यह छूट सही भी है चूंकि एक ही पाठ्यक्रम को अलग-अलग पुस्तकों से पढ़ाया जा सकता है बशर्ते कि स्कूल संचालकों की नियत में खोट न हो लेकिन जब अधिकांश निजी स्कूलों का मकसद ही मुनाफा कमाना हो गया है (जिसके लिए सरकार ने भी अपनी मौन सहमति दे रखी है) तो फिर निजी प्रकाशकों की पुस्तकें एनसीईआरटी जैसी उम्दा व सस्ती कैसे हो सकती हैं। प्रदेश सरकार यह कहकर बरी नहीं हो सकती कि यह तो केंद्र का मसला है। प्रदेश सरकार की जवाबदेही है कि वह धांधली में शामिल स्कूलों के अनापत्ति प्रमाणपत्र खारिज करने के लिए एक समिति का गठन करे।