भोपाल। यह लाखों करोड़ का कमीशन घोटाला है। यह भी उतना ही गंभीर है जितना कि 2जी स्पैक्ट्रम या दूसरा कोई घोटाला। यह पूरे देश में चल रहा है और खुलेआम चल रहा है। इस घोटाले का सीधा प्रभाव आम नागरिकों पर पड़ रहा है। इसे आप CBSE कमीशन घोटाला कह सकते हैं।
सीबीएसई पैटर्न का सिलेबस एक समान है, लेकिन निजी स्कूलों में पब्लिशर्स राइटर्स की संख्या सैंकड़ों में है। यानी जितने स्कूल, उतने प्रकाशकों की किताबें। एक ही कक्षा, लेकिन स्कूल अलग तो किताब भी अलग।
केंद्रीय विद्यालय में सीबीएसई पैटर्न का एनसीईआरटी का पहली क्लास का कोर्स 217 रु. का तो प्रायवेट स्कूल का 1500 रुपए का। बुक डीलर्स के अनुसार स्कूल निजी प्रकाशकों की किताबें इसलिए लेते हैं, क्योंकि उन्हें डीलर्स से 40-50 फीसदी कमीशन मिलता है।
इसमें स्कूल प्रबंधन बीच में कहीं नहीं आता और डीलर पूरी कमीशन का खेल सेट कर देते हैं। सत्र शुरू होने से पहले यानी दिसंबर से फरवरी के बीच डीलर के एजेंट सब तय कर चुके होते हैं। इतना ही नहीं, जब स्कूल की मोनो वाली डायरी, ड्रेस, ब्लेजर, स्वेटर, प्रोजेक्ट, टाई बेल्ट का वास्तविक दाम जाना तो इनमें भी स्कूल की कमाई औसत 50 फीसदी से ज्यादा है। यह स्थिति पूरे देश में है।
कुछ पुराने और कुछ नए पब्लिशर्स
गणित का पब्लिकेशन गोयल होगा तो इंग्लिश का लॉगमन और हिंदी का ऑक्सफोर्ड। इस तरह स्कूल और डीलर्स मिलकर सेट बनाते हैं। इसमें कुछ बुक्स फेमस पब्लिशर्स की तो कुछ नए पब्लिशर्स की ली जाती हैं। कारण, नए पब्लिशर्स की बुक में सीबीएसई से रिलेटेड कुछ नहीं होता। उनमें जीके, मोरल साइंस, करंट अफेयर्स, कम्प्यूटर जैसी बुक्स होती हैं। इनकी कीमत बहुत ज्यादा और कमीशन भी 50 फीसदी से ज्यादा होती है। हर बुक स्टोर्स के पास दर्जनों स्कूलों का ठेका होता है। इसी तरह मोनो लगी ड्रेस, प्रोजेक्ट वर्क का सामान, जूते-मोजे, मोनो सहित ब्लेजर या स्वेटर अन्य दुकान पर नहीं मिलेगा।
एनसीईआरटी तय करती है सिलेबस
एक केंद्रीय विद्यालय के पीआरओ मो. जलालुद्दीन अंसारी बताते हैं कि सिलेबस डिसाइड करना एनसीईआरटी का काम है और एक्जॉम लेना सीबीएसई का। एनसीईआरटी खुद भी बुक पब्लिश करती है लेकिन निजी स्कूल को इनकी बुक लेने की बाध्यता नहीं होती। शिक्षाविद् घनश्याम सोनी बताते हैं कि वास्तव में सीबीएसई का सिलेबस 10वीं बोर्ड से शुरू होता है। क्योंकि सीबीएसई निर्धारित प्रोफार्मा में सबसे पहली परीक्षा 10वीं की ही लेता है। ऐसे में पहली से लेकर 9वीं क्लास तक स्कूल इस व्यवस्था का फायदा उठाते हैं।
न हो एक्स्ट्रा बुक तो दाम होंगे आधे
अगर बुक सेट से बिना काम की किताबों को हटा दिया जाए तो इनके दाम आधे हो जाएंगे। और अगर स्कूल सिर्फ कमीशन लेना बंद कर दें तो दो हजार रुपए वाला सेट 1200 स्र्पए में आएगा। सहोदय के डिप्टी सेक्रेटरी मनोज बाजपेयी भी मानते हैं कि जीके, मोरल वैल्यू, करंट अफेयर्स जैसी किताबें नहीं लेना चाहिए, बल्कि स्कूल को इनकी नोट बुक्स बनवाना चाहिए।
निर्धारित दुकान से नहीं खरीदेंगे तब..
स्कूल, एडमिशन के समय पैरेंट्स को बुक स्टोर्स और ड्रेस की दुकान का विजीटिंग कार्ड देता है। बुक डीलर्स और स्कूल मिलकर हर क्लास का ऐसा सेट तैयार करते हैं जो केवल निर्धारित बुक स्टोर्स पर मिल सके। डीलर्स भी शहर की दुकानों में सप्लाई करने में ये ध्यान रखते हैं कि जिस दुकान से कमीशन सेटिंग नहीं है, उसे किताब न मिल सके।
हर साल क्यों बदलते हैं प्रकाशक
सीबीएसई हर साल सिलेबस नहीं बदलती, लेकिन स्कूल संचालक एक ही क्लास की किताब हर साल बदलते हैं। प्रकाशक भी एक-दूसरे का बखूबी साथ देते हैं। सिलेबस वही रहता है लेकिन एक प्रकाशक की किताब में जो चेप्टर आगे रहता है, दूसरा उसे बीच में कर देता है। सवाल यह है कि क्या एक साल में ही प्रकाशक और किताबों का स्तर निम्न हो जाता है?
प्रिंसिपल अपने हिसाब से चुनते हैं किताबें
हम केवल एनसीईआरटी की किताबें प्रमोट और रिकमंड करते हैं। ये प्रिंसिपल का नजरिया है कि वो किन किताबों का इस्तेमाल करते हैं। किताब प्रकाशक से स्कूल प्रबंधन कमीशन लेता है या नहीं, इस बारे में कुछ नहीं कह सकते। हमने किताबों की लिस्ट एनसीईआरटी की बेबसाइट पर दे रखी है।
संदीप सेठी, एजुकेशन ऑफिसर, सीबीएसई, नई दिल्ली
फालतू किताबों से बढ़ती है कीमत
अच्छे स्कूल क्वालिटी से समझौता नहीं करते। मेरी नजर में कमीशन जैसी बात नहीं आई है। हर स्कूल को जीके, मोरल साइंस, करंट अफेयर्स जैसी किताबें बंद कर देना चाहिए। केवल मैथ्स, हिंदी और अंग्रेजी की किताब सहित पांच किताबों में सिलेबस पूरा हो जाता है। एक्स्ट्रा बुक्स हटाने से कोर्स 800 रु. में मिल जाएगा।
मनोज बाजपेयी, डिप्टी, सेक्रेटरी, सहोदय ग्रुप, इंदौर
अब हिसाब लगा लीजिए
देश भर में कुल कितने स्कूल
स्कूलों में कुल कितने स्टूडेंट
एक स्टूडेंट से 1500 की कमीशन वसूली
एक स्कूल में कुल कितनी काली कमाई
एक शहर में कुल कितनी काली कमाई
एक राज्य में कुल कितनी काली कमाई
और पूरे देश में कुल कितने करोड़ का कमीशन घोटाला
क्या है समाधान
सीधा समाधान है NCERT की ओर से सिलेबस घोषित किया जाए। देशभर के तमाम पब्लिशर उसी के अनुसार किताबें छापें। पब्लिशर कोई भी हो, पाठ संख्या, भाषा और शेष सबकुछ सामान्य होना चाहिए। पब्लिशर बदलने का अर्थ केवल कागज की क्वालिटी और कवर से होना चाहिए। शहर के हर स्टेशनरी स्टोर पर उपलब्ध करा दीजिए।
सारा टंटा ही खतम हो जाएगा।
क्या कदम उठाएंगे जिम्मेदार
सामान्यत: इस काले कारोबार में वो भी शामिल हैं जिन पर इस तरह की व्यवस्थाएं बनाने की जिम्मेदारी है। इस खबर का लाभ उठाते हुए वरिष्ठ स्तर से दवाब बनाया जाएगा, इस तरह हर साल मिलने वाली मोटी कमाई थोड़ी सी बढ़ जाएगी।
अब क्या करें
भारत के न्यायालयों में इस तरह के मामलों की संवेदनशील सुनवाई होती है। एक याचिका पूरी की पूरी व्यवस्था ही बदल सकती है परंतु किसी एक का इंतजार ना करें। हर शहर के पेरेंट्स एक संगठन बनाएं। थोड़ा थोड़ा योगदान करें और अपने क्षेत्र के हाईकोर्ट में याचिका फाइल करें। व्यक्ति बिक जाते हैं परंतु संगठनों पर दवाब बनाना या उन्हें खरीदना थोड़ा मुश्किल होता है।