इंदौर। मप्र राज्यसेवा परीक्षा-2013 के मामले में दायर याचिका पर सोमवार को हाई कोर्ट में सुनवाई हुई। छात्र विश्वनाथ तिवारी, विनी शर्मा और अन्य की याचिका पर जारी नोटिस का पीएससी ने जवाब पेश किया। इस पर याचिकाकर्ताओं के वकील ने आपत्ति लेते हुए कहा कि पीएससी अपने केस में खुद ही जज बना बैठा है, जो न्याय के प्राकृतिक सिद्धांत के विपरीत है।
जुलाई में हुई राज्यसेवा प्रारंभिक परीक्षा में आयोग ने 16 सवालों को गलत माना था। पीएससी ने इन सवालों को रद्द किया। इनके 32 अंक घटाकर मूल्यांकन किया और रिजल्ट जारी किया। इसके खिलाफ उम्मीदवारों ने हाई कोर्ट की शरण ली है। परीक्षार्थियों की ओर से पैरवी कर रहे वकील आकाश शर्मा के अनुसार परीक्षा के नोटिफिकेशन में साफ लिखा गया था कि परीक्षा में कुल 200 प्रश्न पूछे जाएंगे। पीएससी ने प्रश्नों को घटाकर परीक्षा योजना का उल्लंघन किया है। एक ही गाइड से कई प्रश्न पूछे गए और सिलेबस का उल्लंघन हुआ। इससे मेधावी छात्रों का परिणाम प्रभावित हो रहा है। छात्रों ने परीक्षा निरस्त करने की मांग की है।
जवाब पर सवाल
वकील शर्मा के मुताबिक पीएससी ने जवाब में कहा है कि आयोग द्वारा गठित समिति के निर्णय के आधार पर सवालों को निरस्त कर मूल्यांकन का निर्णय लिया गया है। पीएससी के इस जवाब पर हमने कोर्ट के समक्ष अपनी आपत्ति भी दायर की है। पीएससी ने विवादित सवालों पर निर्णय के लिए न तो विषय विशेषज्ञों को बुलाया और न ही निष्पक्ष प्रक्रिया अपनाई। आयोग ने अपनी ही एक कमेटी बना ली, जिसमें पीएससी अध्यक्ष चेयरमैन और पीएससी के सदस्य ही सदस्य बन गए। इस कमेटी ने बैठक की और अपने स्तर पर निर्णय ले लिया। कोर्ट ने उम्मीदवारों की याचिका पर शासन को भी नोटिस जारी किया है। दरअसल राज्यसेवा परीक्षा की योजना का नोटिफिकेशन शासन जारी करता है। इस आधार पर अब शासन को भी चार सप्ताह में याचिका के बिंदुओं पर अपना जवाब पेश करने का आदेश दिया गया है।