नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का कहना है कि पिछले दिनों ईसाइयों के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो कुछ कहा उसे वह हमेशा से कहते आ रहे हैं। मोदी ने अपने उन्हीं विश्वासों और धारणाओं को दोबारा व्यक्त किया, जो वह गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए भी व्यक्त करते थे। संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर के संपादकीय लेख में यह बात कही गई है।
लेख में कहा गया कि सायरो-मालाबार कैथोलिक चर्च द्वारा आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री मोदी ने स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण को आधार बनाकर अपने विचार व्यक्त किए थे। इसको लेकर "धर्मनिरपेक्ष मानसिकता" के बुद्धिजीवियों और मीडिया ने तुरंत इसे बढ़ा-चढ़ाकर इस तरह से पेश किया कि प्रधानमंत्री ने हिदुत्ववादी संगठनों को यह संदेश दिया है।
मोदी के आलोचकों ने इसे इस तरह से पेश करने का भी प्रयास किया कि मोदी स्वयं को "धर्मनिरपेक्ष" नेता दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। यदि हम प्रधानमंत्री के भाषण को बारीकी से पढ़ें तो पता चलता है कि उन्होंने कुछ भी नया नहीं कहा है, बल्कि हमारे देश और समाज के सभी तबकों को लेकर अपने विश्वासों और धारणाओं को दोहराया है।
उन्होंने इस बात को दोहराया कि "सबकी स्वीकार्यता लेकिन तुष्टिकरण किसी का नहीं।" यह बाद मोदी तभी से कहते आ रहे हैं जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे। ऑर्गनाइजर ने लिखा कि "अंग्रेजी चश्मे" वाले कुछ लोगों को यह महसूस करने की जरूरत है कि हमारे देश में धार्मिक आजादी तब भी मौजूद थी जब भारत के राजनीतिक परिदृश्य में "धर्मनिरपेक्ष" शब्द का आगमन नहीं हुआ था।