नईदिल्ली। शिक्षा के अधिकार कानून के तहत प्राइवेट स्कूलों में गरीब बच्चों के दाखिले को लेकर संसाधनों का रोना अब नहीं चल सकेगा। वजह यह है कि प्राइवेट स्कूलों में गरीब बच्चों के दाखिले और उनकी पढ़ाई पर आने वाले खर्च के लिए अब केंद्र सरकार धनराशि देगी। केंद्र सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान के तहत राज्य के लिए मंजूर की जाने वाली वार्षिक कार्ययोजना की कुल धनराशि का 20 फीसद तक इस मद में मंजूर करने का निर्णय किया है।
गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाने पर आने वाले खर्च को वहन करने की जिम्मेदारी अब तक राज्य सरकार पर है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत गरीब बच्चों को पड़ोस के निजी विद्यालयों में प्रवेश दिलाने की व्यवस्था वर्ष 2012-13 से लागू है लेकिन इस मामले में बेसिक शिक्षा विभाग का रिकार्ड अच्छा नहीं है। बीते दो वर्षो में सूबे के 200 बच्चों को भी निजी विद्यालय में दाखिला नहीं दिलाया जा सका है। राज्य सरकार की लगातार यह मांग रही है कि निजी स्कूलों में गरीब बच्चों की पढ़ाई पर आने वाला खर्च केंद्र वहन करे। केंद्र सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान के तहत अब इसके लिए हामी भरी है। सर्व शिक्षा अभियान की वार्षिक कार्ययोजना की कुल धनराशि में केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 65:35 के अनुपात में होती है। लिहाजा इस मद में खर्च होने वाली धनराशि का 65 फीसद केंद्र से मिल सकेगा।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम में कहा गया है कि छह से 14 वर्ष तक के प्रत्येक बच्चे को पड़ोस के विद्यालय में नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा हासिल करने का हक होगा जब तक कि वह प्रारंभिक शिक्षा पूरी न कर ले। यह भी कहा गया है कि निजी स्कूलों को कक्षा एक की न्यूनतम 25 प्रतिशत सीटों पर पड़ोस में रहने वाले समाज के दुर्बल व वंचित वर्ग के बच्चों को प्रवेश देना होगा और उन्हें कक्षा आठ तक नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा देनी होगी। ऐसे बच्चों की पढ़ाई पर आने वाले खर्च की प्रतिपूर्ति सरकार करेगी|