व्यापमं घोटाला: बेलगाम STF ने तोड़ा कानून

shailendra gupta
भोपाल। व्यापमं घोटाले की जांच ऐजेंसी एसटीएफ परीक्षार्थियों की गिरफ्तारी के वक्त इस कदर बेलगाम हुई कि सारे नियम तोड़ डाले। छात्राओं को छात्रों के साथ हिरासत में रखा गया, हिरासत में ली गईं छात्राओं को रात में वापस जाने नहीं दिया गया। कई कई दिनों तक गिरफ्तारी नहीं दिखाई गई और अब पता चला है कि नाबालिगों के खिलाफ चालान सीजेएम कोर्ट में पेश कर दिया गया, जबकि उनके लिए विशेष न्यायालय बनाए गए हैं।

व्यापम महाघोटाले की जांच कर रही जांच एजेंसी एसटीएफ की कार्यप्रणाली पर कांग्रेस ने एक बार फिर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि पीएमटी-2012 फर्जीवाडे़ के नाबालिग अभ्यार्थियों की गिरफ्तारी के बाद कानून से अनभिज्ञ अधिकारियों ने उनके विरूद्व चालान किशोर न्यायालय की अपेक्षा सीजेएम न्यायालय में प्रस्तुत कर दिये, जो किशोर न्याय अधिनियम-2000 का खुला उल्लंघन है।

आज यहां जारी अपने बयान में प्रदेश कांगे्रस के मुख्य प्रवक्ता केके मिश्रा ने एसटीएफ जांच और इस दौरान हो रही नियम विरूद्व कार्यवाही पर फिर नया हमला बोलते हुए कहा कि इससे स्पष्ट हो रहा है कि एसटीएफ द्वारा किये जा रहे अनुसंधान का तरीका क्या है? उन्होंने अपने इस आरोप को स्पष्ट करते हुए कहा कि किशोर न्याय अधिनियम-2000 The Juvenile Justice (Care And Protection of Children) Act. 2000 में स्पष्टतः उल्लेखित है कि अपराध दिनांक को आरोपी की उम्र यदि नाबालिग श्रेणी के अंतर्गत है तो उसके विरूद्ध चालान किशोर न्यायालय में ही न केवल प्रस्तुत किया जाएगा, बल्कि उन किशोरों/किशोरियों के नाम/फोटो भी सार्वजनिक नहीं किये जायेंगे। इसका उल्लंघन करने वालों के विरूद्व 25 हजार रूपये तक जुर्माने का प्रावधान भी नियत है।

इसके बावजूद भी एसटीएफ ने पीएमटी-2012 फर्जीवाड़े में कई अभ्यार्थियों की गिरफ्तारी कर उनके विरूद्ध चालान भी सीजेएम न्यायालय में प्रस्तुत कर दिये। उनके नाम व फोटो भी नियम विरूद्व सार्वजनिक कर दिए। उनकी गिरफ्तारी के दौरान भी जिस जन्म दिनांक का उल्लेख किया गया है, उसमें भी उनकी उम्र नाबालिग श्रेणी में ही थी। चालान प्रस्तुत हो जाने के बाद कई जगह सीजेएम न्यायालय ने ऐसे प्रकरणों को किशोर न्यायालय में भेज दिया है।

मिश्रा ने कहा कि ये स्थितियां स्पष्ट कर रही हैं कि एसटीएफ द्वारा की जा रही जांच के तौर-तरीके क्या हैं? यही नहीं एसटीएफ द्वारा की जा रही जांच की मानिटरिंग कर रही  मप्र उच्च न्यायालय के संज्ञान में भी यह बात नहीं आयी है।

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