भोपाल। किसान हितों के लिए प्राणों की आहुति दे देने की प्रतिज्ञा लेकर विधानसभा में भूख हड़ताल पर बैठे कांग्रेसी विधायकों का सब्र 2 दिन में ही टूट गया। वो भूख सहन नहीं कर पाए और हड़ताल तोड़ने का निर्णय ले डाला। पहले कहा था नतीजे तक हड़ताल जारी रहेगी, अब कह रहे हैं यह तो पहला चरण था।
विधानसभा के मुख्य प्रवेश द्वार पर सत्यदेव कटारे ने पत्रकारों से चर्चा के दौरान कहा कि किसानों को उनके नुकसान की भरपाई कराने के लिए कांग्रेस का यह आंदोलन का पहला चरण था। अब दूसरे चरण में जो विधायक विधानसभा में धरना और भूख हड़ताल कर आंदोलन कर रहे थे वे अपने क्षेत्रों में किसानों को साथ लेकर आंदोलन करेंगे।
यही स्ट्रेटजी थी सरकार की
इस आंदोलन के मामले में शिवराज सरकार की भी यही स्ट्रेटजी थी। हड़ताल के पहले दिन तो सरकार ने कांग्रेसी विधायकों से बात की थी लेकिन जब वो नहीं माने तो सरकार ने तय किया कि उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया जाए। वो अपने आप टूट जाएंगे और हुआ भी यही। कांग्रेसी किसान हितों के लिए 3 दिन भी भूखे नहीं रह पाए, जबकि नवरात्र चल रहे हैं और ज्यादातर धर्मावलम्बी बिना हड़ताल के 9 दिन के लिए अन्नजल त्याग चुके हैं।
दुर्गा माता की तस्वीर ले जाने से रोका
इसके पहले आज सुबह विधानसभा में प्रवेश को लेकर नेता प्रतिपक्ष और कुछ विधायकों के साथ सुरक्षाकर्मियों का टकराव हुआ था। एक बार नेता प्रतिपक्ष की गाड़ी को रोक लिया गया। इसमें मीडिया से जुड़े कुछ लोग थे तो पहले उन्हें उतरवाया गया। एक बार विधायक तरुण भनोत को रोका गया। आज विधानसभा में विधायकों द्वारा किए जाने वाले अष्टमी यज्ञ के लिए ले जा रही दुर्गा की तस्वीर को भी भीतर ले जाने से रोका दिया गया।
यदि एक सप्ताह चल जाती हड़ताल
यदि यह हड़ताल एक सप्ताह चल जाती तो सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ सकतीं थीं। शिवराज के मैनेजर्स को भी यह मालूम था। सरकार प्रेशर में थी। वो जानती थी कि इस बार पब्लिक सपोर्ट कांग्रेस के साथ जा रहा है लेकिन फिर भी उन्होंने एक सप्ताह तक हड़तालियों को उनके हाल पर छोड़ने का निर्णय लिया। कांग्रेस के लिए यह गोल्डन चांस था, लेकिन एक बार फिर सत्ता की आदी हो चुकी कांग्रेस जनहित में आंदोलन नहीं कर पाई। बड़ी किरकिरी हो गई भाई।