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प्राईवेट स्कूलों में चल रहा है काला कारोबार: संचालकों ने स्वीकारा

भोपाल। प्राइवेट स्कूलों की फीस पर नियंत्रण के लिए गुरुवार को राजधानी में बैठक बुलाई गई। बैठक में संचालक और प्राचार्यों ने स्वीकार किया है कि ज्यादातर स्कूलों में पेरेंट्स को लूटने का काला कारोबार चल रहा है। फीस जरूरत से ज्यादा है और अलग अलग नामों पर साल भर उनसे पैसे वसूले जाते हैं। इसके अलावा काली कमाई के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम के अतिरिक्त भी कई पुस्तकें बेची जातीं हैं और यह धंधा सालभर चलता रहता है।

स्कूल शिक्षा विभाग ने यह बैठक निजी स्कूलों की फीस पर नियंत्रण के लिए तैयार किए जा रहे मार्गदर्शी सिद्घांतों पर चर्चा करने बुलाई थी। बैठक में हर जिले से सीबीएसई और मप्र माध्यमिक शिक्षा मंडल से संबद्घ स्कूलों के एक-एक प्रतिनिधि को बुलाया गया था। बैठक में अपने विचार रखते हुए स्कूल संचालकों का दर्द झलक रहा था। उन्होंने केपीटेशन फीस और डोनेशन लेने को गलत ठहराया, तो कुछ स्कूल संचालकों ने हर साल बढ़ने वाली फीस पर भी ऐतराज जताया। स्कूल संचालकों ने कहा कि 60 से 70 हजार रुपए फीस लेने का उद्देश्य समझ से परे है।

उन्होंने स्कूलों की ग्रेडिंग करने का भी सुझाव दिया। उन्होंने कलेक्टर, जिला शिक्षा अधिकारी और जिला परियोजना समन्वयक की शिकायतें भी कीं और समस्याएं भी गिनाईं। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार अब 'प्रवेश एवं फीस निर्धारण कमेटी' नहीं बना रही है। बल्कि उसके स्थान पर फीस नियंत्रण के मार्गदर्शी सिद्घांत तय कर रही है।

मिशनरी स्कूलों के प्रतिनिधि नहीं आए
बैठक में मिशनरी स्कूलों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति बहुत कम रही। इन स्कूलों के महज 15 प्रतिनिधि आए थे। वह भी पूरी बैठक में नहीं बोले। जबकि प्रदेश में मिशनरी स्कूलों का अपना क्रेज है। अधिकारियों के पास आने वाले 10 शिकायतों में 8 मिशनरी स्कूलों की होती हैं और ज्यादा डोनेशन और केपीटेशन फीस लेने वालों में भी इन्हीं स्कूलों का नाम सामने आता है।

फीस एक बार तय करें : मोहंती
बैठक में स्कूल शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव एसआर मोहंती ने कहा कि फीस एक बार तय करें और साल की शुरूआत में ही अभिभावकों को बता दें। ताकि वे पहले से इंतजाम कर सकें। उन्होंने कहा कि गैर शैक्षणिक कार्य के लिए बीच-बीच में फीस नहीं ली जानी चाहिए। बिल्डिंग चार्ज हर साल घटते क्रम में तय होना चाहिए। क्योंकि आप हर साल नया भवन नहीं बनाते हैं। आप उतना ही चार्ज करें, जितने में आपको लॉस न हो। सिलेबस के मामले में उन्होंने कहा कि आप सिलेबस तय कर लीजिए और अभिभावक को फ्री हैंड छोड़ दीजिए। यदि वह दो पैसे बचा लेगा, तो क्या चला जाएगा। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि सभी स्कूल गलती नहीं कर रहे। कुछ स्कूलों की वजह से सभी की बदनामी हो रही है। उन्होंने कहा शैक्षणिक गुणवत्ता में हमें प्रदेश की स्थिति बेहतर करना है। इससे पहले लोक शिक्षण संचालनालय के आयुक्त डीडी अग्रवाल ने अभिभावकों द्वारा आमतौर पर की जाने वाली शिकायतें स्कूल संचालकों के सामने रखीं।

स्कूल अधिक फीस ले रहे
विदिशा के सतेन्द्र दीक्षित ने कहा स्कूल अधिक फीस ले रहे हैं। शासन की इस बात से मैं सहमत हूं। रिजल्ट, सुविधाएं और स्पोर्ट्स के आधार पर स्कूलों की ग्रेडिंग की जाए और उसी के हिसाब से फीस तय हो। हर साल 5 से 7 फीसद फीस बढ़ाना गलत नहीं है। 60-70 हजार फीस लेने का उद्देश्य समझ नहीं आता है। क्लास में शिक्षक-छात्र अनुपात 1ः30 का रहना चाहिए।

क्षेत्र की स्थिति के आधार पर हो ग्रेडिंग
उमरिया के राजमणि सिंह ने कहा कि क्षेत्र की स्थिति के आधार पर स्कूलों की ग्रेडिंग की जानी चाहिए। कर्मचारियों को पीएफ सहित अन्य कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए।

खर्च की भरपाई अभिभावकों से न करें
रमाशंकर अग्रवाल ने कहा कि बिजली, टैक्स, जमीन का लगान और सीबीएसई की मांगें पूरी करने पर होने वाले खर्च की भरपाई अभिभावकों से न करें, तो कहां से करें। शिकायतें करने वाले फर्जी अभिभावक होते हैं।

केपीटेशन फीस और डोनेशन बंद हो
छतरपुर के सीके शर्मा ने कहा कि केपीटेशन फीस और डोनेशन बंद होना चाहिए। स्कूलों में अच्छी फैकल्टी होनी चाहिए। हमें बेहतर और अच्छी शिक्षा देनी है।

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