वाट्स एप और मोबाईल क्या यहाँ जायज हैं ?

राकेश दुबे@प्रतिदिन। परीक्षाओं में धांधली के लिए टेक्नॉलजी का इस्तेमाल जिस तेजी से बढ़ रहा है, वह चिंताजनक है। बिहार में भले नकल के लिए दीवार फांदते और तीन-तीन मंजिला इमारतों में खिड़की से लटकते लोगों की तस्वीरें चौंकाती हों और अक्सर परीक्षा व्यवस्था की सबसे बड़ी विडंबना के तौर पर रेखांकित की जाती हों, सचाई यह है कि हमारी परीक्षा प्रणाली को सबसे बड़ा खतरा टेक्नॉलजी से मिलता दिख रहा है।

उत्तर प्रदेश में तो वाट्स एप के जरिये राज्य सेवा परीक्षा में पलीता लगाने के मामला उजागर हुआ है| इसके पहले भी 'मुन्ना भाइयों' ने परीक्षा में मोबाइल फोन के मौलिक उपयोगों के काफी उदाहरण पेश कर रखे हैं। साफ है कि समाज का एक अपेक्षाकृत ताकतवर हिस्सा टेक्नॉलजी तक अपनी पहुंच के जरिए पूरी परीक्षा व्यवस्था को ही अप्रासंगिक बना देने की जुगत में है। चिंता की बात यह है कि हमारी व्यवस्था के संचालक इस चुनौती से निपटना तो दूर इसे ठीक से समझने की भी स्थिति में नहीं दिखते। उनकी कोशिशें आज भी ऐसे तत्वों पर कड़ी नजर रखने और निगरानी बढ़ाने जैसे उपायों तक सीमित है।

हमें उम्मीदवारों के मूल्यांकन की पद्धति को लेकर हम अपनी परंपरागत सोच की सीमाओं से बाहर निकलना होगा। मगर, इसी चुनौती का एक और पहलू है। पुलिस द्वारा पर्चा लीक होने की खबर आम कर देने, संबंधित कई आरोपियों को गिरफ्तार कर लिए जाने के बावजूद यूपीपीएससी यानी उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग इस खबर की पुष्टि नहीं कर पाया। इन खबरों को अफवाह मात्र बताया जाता रहा। बाद में मुख्यमंत्री के निर्देश पर परीक्षा रद्द करने का फैसला हुआ। फिर भी यह सवाल बचा रहा कि क्या यूपीपीएससी तक सही सूचनाएं पहुंचने में सचमुच इतनी देर हुई या इसका एक हिस्सा आखिरी पल तक इस मामले को जैसे-तैसे दबाने की कोशिशों में था?

मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला यह बताने के लिए काफी है कि सरकारी नियुक्तियों में मनचाहे लोगों को भरने के लिए किस हद तक और किस स्तर तक साजिशें चलाई जा सकती हैं। हरियाणा के एक पूर्व मुख्यमंत्री ऐसे ही नियुक्ति घोटाले में जेल की सजा काट रहे हैं। अन्य राज्यों से भी छिटपुट ऐसी गड़बड़ियों की खबरें आती रहती हैं। ऐसे में अहम सवाल यह है कि हम नकल और लीक जैसी गड़बड़ियों से बचने के लिए परीक्षा प्रणाली में जरूरी सुधार कर भी लें, मगर उसे उसके संचालकों से कैसे बचाएंगे? साफ है कि चुनौती उससे कहीं ज्यादा बड़ी है जितनी पहली नजर में लगती है।

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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