पंचायतों में भ्रष्टाचार का एक और साझोदार !

भोपाल। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के एक फैसले से पंचायतों में भ्रष्टाचार का नया रास्ता खुलने के आसार पैदा हो गए हैं। जो सीए (चार्टर्ड एकाउंटेंट) फर्म साधारण-सा आयकर विवरण भरकर जमा करने के ऐवज में 500 से 700 रुपए लेती हैं, वे 25 से 50 लाख के सालाना बजट वाली पंचायतों के ऑडिट की निगरानी मात्र 225 से 90 रुपए प्रतिमाह में करने को तैयार हैं। इतनी कम दर पर काम करने तैयार होने वाली फर्मों को लेकर शिकवा-शिकायत का दौर शुरू हो गया है लेकिन विभाग इसे नियमानुसार कवायद ठहराकर पल्ला झाड़ रहा है।

21 योजनाओं की ऑडिट
विभाग ने 23 जनवरी को विज्ञापन निकालकर 2014-15 के सालाना और 2015 के ऑडिट के लिए सीए फर्मों से आवेदन मांगे थे। 
फर्म को पंचायतों में चलने वाली 21 योजनाओं का मासिक ऑडिट करके रिपोर्ट विभाग को सौंपनी है। 
फर्म को हर 15 पंचायत पर एक ऑडिटर या एकाउंटेंट रखना है, जिसे विभाग 10 हजार रुपए मानदेय देगा। 
फर्म को ऑडिट के मासिक पर्यवेक्षक के लिए अलग से राशि मिलेगी। 

चौंकाने वाली दरें प्रस्तावित कीं
एमपी स्टेट टेक ई पंचायत सोसाइटी द्वारा जारी टेंडर में सीए फर्मों ने चौकाने वाली दरें प्रस्तावित की हैं। सर्वाधिक 225 रुपए प्रति 15 पंचायत प्रति माह की दर शहडोल और उज्जैन संभाग की आई है। भोपाल में फर्म 120, इंदौर में 90, नर्मदापुरम् में 195, जबलपुर में 195, रीवा और सागर में 150, चंबल और ग्वालियर संभाग में 30 रुपए या इससे कम दर आई है। 

सांठगांठ की आशंका
कुछ सीए फर्म संचालकों का कहना है कि टेंडर नियमानुसार हुए हैं, लेकिन व्यवहारिक नहीं। इतने कम शुल्क पर कैसे काम हो सकता है। उनका तर्क है कि कहीं भी जाने-आने, रहने, खाने आदि पर न्यूनतम 300-400 रुपए खर्च होंगे। 15 पंचायतों के ऑडिट में कम से कम दो दिन लगेगा। क्या इसके लिए मिलने वाली रकम में ये सब कुछ करने के बाद फर्म को कुछ हाथ लगेगा? ऐसे में पंचायत पदाध्ािकारियों से सांठगांठ से कैसे इंकार कर सकते हैं। 

फर्म तो तैयार है
विभागीय अधिकारियों का कहना है कि पर्यवेक्षण शुल्क कम जरूर है लेकिन फर्म खुद इसके लिए तैयार हैं। फर्म कई प्रोजेक्ट पर एक साथ काम करती हैं इसलिए भरपाई आसानी से हो सकती है। गड़बड़ी कैसे होगी, ऑडिटर के ऊपर वित्त अधिकारी हैं, जो नजर रखते ही हैं। 

विपक्ष को आपत्ति
पंचायत स्तर पर भ्रष्टाचार को न्यौता दिया जा रहा है। कोई भी फर्म इतनी कम दर में काम कर ही नहीं सकती है। यदि कोई काम लेता भी है ते वो अपने घाटे की भरपाई किसी और माध्यम से करेगा। मैंने दोबारा टेंडर के लिए सीएम को पत्र लिख दिया है।
सत्यदेव कटारे, नेता प्रतिपक्ष

तकनीकी रूप से सही:-
जो निविदा तकनीकी रूप से सही पाई गईं उनके रेट खोले गए। कम दर आने की वजह से हम उन्हें मना नहीं कर सकते हैं। ये फर्म का लुक आउट है कि वो कितने रुपए में निगरानी का काम कर सकती है। 
अरुणा शर्मा, अपर मुख्य सचिव, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग

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