अरुण तिवारी। बधाई! यह विश्व जल दिवस, भारत की नदियों के लिए कुछ खास आस लेकर आया है। अच्छी खबरें कई हैं, लेकिन इससे अच्छी और अतुलनीय.. कोई नहीं।
कुछ वर्ष पूर्व खनन में संलग्न होने पर जलबिरादरी के एक प्रदेश संयोजक की पदमुक्ति के निर्णय का बखान करते मैंने कई को सुना किंतु एक मार्च, 2015 से पहले मैने यह कभी नहीं सुना कि नदी प्रदूषित करने के दोषी पदाधिकारी को किसी राजनैतिक दल ने पार्टी से ही निकाल दिया हो। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने ऐसा किया।
अपनी फैक्टरी के जहरीले रसायन पदार्थ से औरंगाबाद की खाम नदी को प्रदूषित करने के लिए पांच लोगों को चिन्हित किया गया। जिसमें तीन अन्य के अलावा, स्थानीय भाजपा पार्षद और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसा) की औरंगाबाद इकाई के प्रमुख सुमित खाम्बेकर भी दोषी पाये गये। दोष की पुष्टि की गई। पुष्टि होते ही मनसा प्रमुख ने सुमित को न सिर्फ सभी पदों से बर्खास्त किया, बल्कि पार्टी से ही निकाल बाहर किया।
मनसा प्रमुख ने नदी में जहर मिलाने के इस कृत्य को पूरी तरह अमानवीय और भयंकर बताते हुए संकल्प जताया कि कोई कैसे लोगों की जिंदगी से खिलवाङ कर सकता है ?
हर विश्व जल दिवस पर संयुक्त राष्ट्र संघ कम से कम इतनी उम्मीद तो करता ही होगा कि लोग जागें। मेरे जैसे पानी के कलमकार सिर्फ पानी बचाने के बारे में लिखें नहीं, खुद भी बचायें। अपनी संस्कृति का सिर्फ गुणगान न करें, उस संस्कृति में पानी और प्रकृति के साथ अनुशासन के साथ जीने के सिद्धांतों को अपनी आदत भी बनायें।
दिलचस्प है कि खाम्बेकर नामकरण का अपने आप में खाम नदी से गहरा रिश्ता है। किंतु न सुमित खाम्बेकर ने इस रिश्ते की लाज नहीं रखी; न भाजपा पार्षद ने जनप्रतिनिधि के दायित्व की और न ही अन्य तीन उद्योगपति होने के नाते औद्योगिक कानूनों की। सिर्फ मनसा प्रमुख ने संकल्प दिखाया। बयान और व्यवहार की खाई पाटी। एक नजीर पेश की। ऐसी नजीर कोई और हो, तो बताइये।
इस विश्व जल दिवस का विषय है: पानी और टिकाऊ विकास। यदि हमें सतत् विकास चाहिए कि ऐसी नजीरों को आगे रखकर सरकारों और विकास के पैरोंकारों को याद दिलाते होगा कि न तो नदी, विकास की दुश्मन है और न ही नदी की सेहत की वकालत करने वाले। शुक्र है किसी-किसी सरकार ने कुछ-कुछ समझना शुरु कर दिया है।
संसद से सङक तक भूमि बचाने की कवायदः एक दिन नदी की ज़मीन भी बचायेगी। यह आस भी है और नदी की दृष्टि से खास भी। आप खुश हो सकते हैं कि इस बाबत्झारखण्ड से आई खबर अच्छी है। झारखण्ड मुख्यमंत्री रघुवरदास ने स्पष्ट ऐलान कर दिया है कि नदी और तालाबों की ज़मीन बेचने वाले बख्शे नहीं जायेंगे। ज़मीनों के रिकाॅर्ड अगले छह महीनों के भीतर खबर यह भी है कि रांची शहर के बीच से गुजरने वाली नदी हरमू के दिन लौटेंगे। 17.04 किलोमीटर नदी साफ होगी। नदी तट सुधरेगा; सुंदर होगा। सीवेज हेतु 55 किलोमीटर लंबी भूमिगत व्यवस्था की जायेगी।
भोपाल की कलियासोत नदी की ज़मीन पर बने बिल्डरों द्वारा निर्मित मकानों को हालांकि मुख्यमंत्री जी का आश्वासन है, लेकिन नदी के चहेते जाग गये हैं। कलेक्टर महोदय ने सुनवाई के लिए 27 मार्च की तारीख तय कर दी है।
गंगा में औद्योगिक प्रदूषण को लेकर को लेकर केन्द्र सरकार के कुछ संजीदा होने के संकेत हैं। संकेत है कि गंगा किनारें की फैक्टरियां सुधरें अथवा ताला मारकर घर बैठ जायें। आई आई टी कन्सोटोरियम ने भी गंगा नदी बेसिन प्रबंधन योजना-2015 को लेकर अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है। मैली यमुना को निर्मल बनाने हेतुएकीकृत योजना तैयार कर ली गई है। सिंचाई, उद्योग और घरेलु जलोपयोग को अनुशासित और सक्षम बनाने हेतु जल ब्यूरो के गठन का प्रस्ताव भी आ ही गया है।
गोदावरी में प्रदूषण को लेकर नदी कार्यकर्ता, राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण और महाराष्ट्र हाईकोर्ट की नाराजगी रंग लाई है। ’’गोदावरी का पानी पीने योग्य नहीं है।’’-नासिक नगरपालिका द्वारा गोदावरी किनारे लगाये गये ऐसे बोर्ड तो अब पुराने पङ चुके हैं। नया समाचार यह है कि इलाहाबाद में हुए ’ग्रीन कुंभ’की तर्ज पर नासिक नगर निगम ने भी कुंभार्थियों द्वारा लाये कचरे से नदी को बचाने के लिए तयय प्रावधानों के साथ ’हरित कुभ’ मनाने की तैयारी शुरु कर दी है। सुखद है कि जिला प्रशासन ने भी कम से कम कुंभ के दौरान गोदावरी साफ दिखे; ऐसा निर्णय ले लिया है।
सांगली जिले के कलेक्टर ने जलयुक्त गांव अभियान के तहत् जल संरक्षण-संर्वद्धन गतिविधियांे के सामाजिक अध्ययन का काम शुरु करने का निर्णय लिया है। कर्नाटक के मांड्या में चैतन्य कदमों की आहट शुरु हो गई है। बंुदेलखण्ड,हिमाचल, पंजाब, दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में जल संकट से उबरने के विचार को व्यवहार में उतारने की भिन्न स्तरीय योजनायंे बनने लगी हैं। अच्छा है। और अच्छा हो यदि मेरे जैसे पानी के कलमकार, पानी की बचत के नुस्खे सिर्फ लिखें नहीं, खुद अपनी आदत में पूरी तरह उतारें भी।