भोपाल। राज्य सरकार ने प्रदेश में लोकपाल के गठन से साफ इंकार कर दिया है। सरकार का तर्क है भ्रष्टाचार की जांच करने और अंकुश लगाने के प्रदेश में 33 साल से लोकायुक्त संगठन काम कर रहा है। दरअसल केन्द्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण (डीओपीटी) मंत्रालय ने राज्य सरकार को लोकपाल अधिनियम के तहत लोकपाल का गठन करने पत्र लिखा था। इसके जवाब में सामान्य प्रशासन विभाग ने लिखा लोकपाल अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार लोकायुक्त संगठन भी मुख्यमंत्री, मंत्री और नौकरशाहों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में सुनवाई कर अनुशंसा दे सकती है।
ऐसे में नए अधिनियम के तहत लोकपाल का गठन करना उचित नहीं है। लोकायुक्त संगठन को विधायकों और एनजीओ को लेकर कई शिकायतें मिलती हैं पर कानून के दायरे में नहीं आने के कारण कार्रवाई नहीं हो पाती है। यही हाल विश्वविद्यालयों का है। प्रदेश में कुल 12 में से 5 विवि लोकायुक्त के दायरे में आते हैं। शेष 7 विवि आज भी लोकायुक्त की पहुंच से दूर हैं।
इनमें भोज विश्वविद्यालय भोपाल, महर्षि पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय उज्जैन, राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर, राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय भोपाल, राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय ग्वालियर, नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी भोपाल एवं महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय शामिल हैं। लोकायुक्त ने सरकार को डेढ़ साल पहले अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव दिया था, लेकिन इस पर कार्रवाई नहीं हुई।