भोपाल। भोपाल गैस कांड में बड़ा खुलासा हो रहा है। गैसकांड के दोषी को राजकीय सम्मान के साथ फरार कराने वाला कोई और नहीं बल्कि भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। उन्ही के आदेश पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री एवं प्रशासनिक अधिकारियों ने एंडरसन को रिहा कर दिल्ली भेजा था, जहां से वो आसानी से विदेश चला गया। इसकी पुष्टि 'यूका जहरीली गैस कांड जांच आयोग' ने अपनी रिपोर्ट में की है।
जस्टिस एसएल कोचर की अध्यक्षता में अगस्त 2010 में गठित आयोग पांच साल की गहन जांच, बयानों और सबूतों के आधार पर तैयार अपनी रिपोर्ट 24 फरवरी को प्रदेश के मुख्य सचिव अंटोनी जेसी डिसा को सौंप चुका है। हालांकि शासन ने अब तक रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया है।
इसका खुलासा नवदुनिया ने किया है। नवदुनिया का दावा है कि उसके पास इस रिपोर्ट के कुछ खास अंश मौजूद हैं जिसमें कई अह्म बातें सामने आई हैं। सूत्रों का मानना है कि जांच आयोग की रिपोर्ट अगर सरकार सार्वजनिक कर इसकी अनुशंसाओं का पालन करे तो गैस पीड़ितों को लाभ मिल सकता है।
आयोग ने तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह और तत्कालीन एसपी स्वराज पुरी को रिपोर्ट में क्लीन चिट दी है। सिंह व पुरी पर भी एंडरसन को भोपाल से भगाने का आरोप था। जिसे लेकर आयोग का मानना है कि दोनों अधिकारियों ने केवल अपने उच्च अधिकारियों के निर्देशों का पालन किया है। इसमें उनका कोई दोष नहीं है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि राजीव गांधी व नरसिम्हा राव के मौखिक आदेश पर तत्कालीन केन्द्रीय कैबिनेट सचिव ने मप्र शासन के मुख्य सचिव ब्रह्मस्वरूप को फोन पर एंडरसन को छोड़ने के आदेश दिए।
तत्कालीन मुख्य सचिव ने थाना हनुमानगंज फोन करके उस समय के टीआई सुरेन्द्र सिंह को मौखिक निर्देश दिए कि वारेन एंडरसन को जमानत दे दी जाए। जमानत के बाद ही मुख्य सचिव के निर्देश पर एसपी स्वराज पुरी एंडरसन को एयरपोर्ट लेकर गए।
सिंह आयोग की जांच भी खोलती कई राज
आयोग की रिपोर्ट में यह बताया गया कि तत्कालीन केन्द्र सरकार के निर्देश पर ही गैस कांड की जांच के लिए बने जस्टिस एनके सिंह कमीशन की जांच बंद करा दी गई थी। राज्य सरकार ने गैस कांड के तीसरे दिन इसका गठन किया था, लेकिन बाद में इसको एक्सटेंशन नहीं दिया गया, जिससे आयोग अपनी जांच पूरी नहीं कर सका। अगर यह जांच पूरी होती तो उस समय कई राज खुल सकते थे।