अरुण यादव/भोपाल। बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से पीड़ित किसानों के कथित तौर पर आंसू पौंछने और ओला पर्यटन कर रहे मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की जिस सरकार को शासकीय कर्मचारियों/ अधिकारियों को वेतन बांटने के लिए लोन लेना पड़ रहा हो, वह किसानों के आसूं पौछने के लिए धन कहां से जुटाएंगी ?
दुर्भाग्य तो इस बात का है कि ओलावृष्टि को लेकर महाराष्ट्र के सांसद किसानों को मुआवजा दिये जाने के लिए प्रधानमंत्री से मिल सकते हैं और प्रधानमंत्री भी कृषि मंत्री को वहां भेजने के लिए तैयार हो जाते हैं, किंतु मप्र के निर्वाचित सांसद किसानों की हुई बर्बादी पर प्रधानमंत्री से मिलना तो दूर इस विषयक आज तक अपनी जुबान भी नहीं खोल पाये हैं।
कांग्रेस की जानकारी के अनुसार केंद्र ने राज्य सरकार को यह कहा है कि वह किसानों को राहत प्रदान करने हेतु राज्य आपदा राहत कोष से ही धन मुहैया करायें, किंतु राष्ट्रीय आपदा राहत कोष से धन प्राप्त करने के लिए स्वयं मुख्यमंत्री ने भी प्रधानमंत्री को आज तक कोई पत्र नहीं भेजा है और न ही मानक प्रक्रिया के तहत केंद्र को ज्ञापन प्रस्तुत किया है। यही नहीं केंद्रीय दल भी आज तक सर्वेक्षण के लिए मप्र नहीं आया है।
मैं मुख्यमंत्री महोदय से आग्रह करता हूं कि जितना पैसा राज्य सरकार विज्ञापनों में खर्च कर रही है, उतनी ही राशि यदि किसानों के आंसू पौंछने पर खर्च करती तो उन्हें आंशिक राहत तो मिल ही सकती थी। इन स्थितियों के बावजूद जो अधिकार राज्य सरकार के अंतर्गत समाहित हैं, मसलन किसानों की कर्जमाफी और ऋण वसूली जैसे महत्वूपर्ण मुद्दे पर वह तत्काल प्रभाव से निर्णय लेकर किसानों के बहते आंसू को तात्कालिक तौर पर तो सरकार रोक ही सकती है, किंतु मुख्यमंत्री ऐसे कड़े निर्णय लेने की अपेक्षा सिर्फ शाब्दिक जुगालियों से ही किसानों के जख्मों का उपचार करना चाहते हैं, जो असंभव ही नहीं राज्य सरकार की किसान विरोधी नीतियों को भी प्रमाणित कर रहा है।