ग्वालियर। कोई एक दशक पहले एनकाउंटर में ढेर कर दिए गए गडरिया गिरोह की दहशत और सक्रियता आज भी जंगलों में जिंदा है। इसका जीता जागता सबूत लखेश्वरी माता के मंदिर में दिखाई दिया, जहां गिरोह के सरगना के नाम का घंटा समर्पित किया गया है।
इस घंटे पर 4 जनवरी 2015 तारीख खुदी हुई है अत: यह इस तारीख को बनाया गया और स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है 'दयाराम रामबाबू', ये दोनों ही गड़रिया गिरोह के मुखिया रहे हैं। नवरात्रि के शुरूआती दिनों में ही इसे लखेश्वरी माता को समर्पित कर दिया गया। पीतल का यह भारी भरकर घंटा अब पुलिस के तमाम थानों सहित पुलिस मुख्यालय में भी गूंज रहा है। पुलिस परेशान है कि आखिर कौन है वो जो आज भी गड़रिया गिरोह को जिंदा बनाए हुए है।
यह भी बता दें कि लखेश्वरी माता का मंदिर ग्वालियर जोन के पुलिस थाना बेलगढ़ा के अंतर्गत आता है। थाना प्रभारी महेश शर्मा हैं जिन्हे अखबारों में खबर छपने के बाद पता चला कि उनके इलाके में डाकुओं की धमचक हुई थी। अब पुलिस पूछताछ कर रही है। बेलगढ़ा पुलिस बीते रोज दोपहर को लखेश्वरी मंदिर पहुंची। यहां घंटे को लेकर मंदिर के पुजारी से भी बात की गई। जबकि पुजारी ने भी इस मामले में अनभिज्ञता जाहिर की। अब पुलिस यह जानने में लगी है कि आखिर मंदिर पर पुलिस रिकॉर्ड में मारे गए डकैतों के नाम पर घंटा कौन चढ़ा गया। फिलहाल पुलिस रामबाबू और दयाराम के परिवार के लोगो से भी इसका राज जानने में जुटी है।
कौन था गड़रिया गिरोह
एक प्रेम प्रसंग में पुलिस की प्रताड़ना के खिलाफ आवाज उठाने के बाद यह गिरोह जंगलों में सक्रिय हुआ था। खदानों में 50 रुपए रोज की मजदूरी करने वाले दयाराम गड़रिया ने सबसे पहले हथियार उठाए और उसे पकड़ने के लिए पुलिस ने जिस जिस परिजन को अवैध रूप से सलाखों में कैद रखा, वो मुक्त होते ही गिरोह में शामिल होता चला गया।
अनपढ़ मजदूरों को इस गिरोह ने पुलिस को खूब छकाया, चुनौतियां दीं। इसका इंफार्मेशन नेटवर्क पुलिस के इंफार्मेशन नेटवर्क से बहुत मजबूत था और आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह गिरोह अपहृत किए गए कर्मचारियों के पीएफ अकाउंट की डीटेल्स तक पता कर लेता था। इस जब तक इस गिरोह के डाकुओं में ताकत रही तब तक वो पुलिस को चुनौतियां देते रहे और पुलिस कभी गिरोह तक नहीं पहुंच पाई। एक बार रामबाबू गड़रिया के एनकाउंटर का दावा किया गया, पुरुस्कार भी बंटे लेकिन बाद में पता चला कि रामबाबू तो जिंदा है। इस तरह यह गिरोह प्रदेश भर में दहशत का दूसरा नाम बनता चला गया।
बाद में दयाराम बीमार हो वो समर्पण करना चाहता था। ग्रामीणों का कहना है कि उसे टीबी थी और वो समर्पण करना चाहता था लेकिन पुलिस ने उसे पेड़ से बांधकर मार डाला। धीरे धीरे गिरोह के बाकी सदस्य भी मार दिए गए। गड़रिया परिवार के लोग कहते हैं कि एक भी डाकू मुठभेड़ में नहीं मारा गया, बल्कि धोखे से मारा गया है।
पुलिस रिकार्ड में यह फाइल बंद हो गई, लेकिन गड़रिया परिवार के रिकार्ड में शायद अब भी जिंदा है। कोई है जो इस गिरोह को जिंदा बनाए रखे हुए है और इसीलिए लखेश्वरी माता के मंदिर पर घंटा चढ़ाया गया। यहां बता दें कि गड़रिया गिरोह लखेश्वरी माता का बड़ा भक्त रहा है। उन दिनों जब गिरोह जंगलों में छिपा हुआ था, तब भी वो पुलिस को चकमा देकर घंटा चढ़ा जाया करता था।