फिट अटक गया मप्र का सप्लीमेंट्री बजट: बढ़ा सरकार का संकट

भोपाल। राज्य सरकार ने वित्तीय वर्ष 2014-15 समाप्त होने से 7 दिन पहले विधानसभा में सेकंड सप्लीमेंट्री बजट तो पारित करवा लिया, लेकिन राज्यपाल रामनरेश यादव की अस्वस्थता के चलते बजट पर हस्ताक्षर न हो पाने के कारण इसे एक्ट का रूप नहीं दिया जा सका। इसके चलते संबंधित विभागों को जरूरी खर्च के लिए पैसा नहीं मिल पा रहा है।

इधर राज्यपाल के बेटे शैलेष यादव का निधन होने पर उन्हें लखनऊ के मेडिकल कॉलेज में शिफ्ट किए जाने से सरकार का टेंशन ओर बढ़ गया है। दरअसल उक्त सप्लीमेंट्री बजट पर 31 मार्च से पहले हर हाल में राज्यपाल के हस्ताक्षर होना जरूरी हैं।

यदि ऐसा नहीं हो पाता है तो उक्त सप्लीमेंट्री बजट अस्तित्व में आने के पहले ही निरस्त हो जाएगा। ऐसे में सबसे ज्यादा परेशानी ऊर्जा विभाग को उठानी पड़ेगी। दरअसल अप्रैल 2011 से मार्च 2014 तक वर्किंग कैपिटल और इन्फ्रास्ट्रक्चर (बिजली लाइन, खंबे एवं ट्रांसफार्मर सहित अन्य) काम के लिए ऊर्जा विभाग को सेंकड सप्लीमेंट्री में 7728.45 करोड़ आवंटित किए थे।

इसके अतिरिक्त प्रदेश में अतिवृष्टि और ओले से बर्बाद हुई फसल के लिए भी बजट में 500 करोड़ का प्रावधान भी खटाई में चला जाएगा। ऐसे में इन सभी जरूरी खर्चों का भुगतान राज्य सरकार को नए वित्तीय वर्ष के मुख्य बजट की राशि में समायोजन कर करना होगा। इसमें विभागों को आवंटित राशि का हिसाब किताब तो गड़बड़ाएगा ही साथ ही में पूरी प्रक्रिया करने में लंबा समय भी लग सकता है।

लखनऊ जाएंगे वित्त अधिकारी
वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सप्लीमेंट्री बजट पर राज्यपाल के हस्ताक्षर लेने के लिए एक अधिकारी को लखनऊ भेजा जा रहा है। उनका कहना यह भी है कि राज्यपाल के अस्पताल में भर्ती होने और उनके परिवार में गमी का माहौल को देखते हुए बजट पर हस्ताक्षर करवाने मशक्कत करनी पड़ सकती है। हालांकि इस परेशानी से बचने के लिए वित्त विभाग के अफसरों ने राजभवन के प्रमुख सचिव विनोद सेमवाल से चर्चा की है। संभावना जताई जा रही है कि 31 मार्च से पहले उक्त प्रस्ताव पर हस्ताक्षर हो जाएंगे।

राजकोषीय घाटा बढ़ने की चिंता
सरकार की सबसे बड़ी चिंता राजकोषीय घाटा बढ़ने की है। यही वजह है कि वह वित्तीय वर्ष समाप्त होने से चंद दिन पहले 10852 करोड़ का अनुपूरक बजट पारित करवाया। अब यदि उक्त खर्च को अगले वित्तीय वर्ष में ले जाया जाता है तो इसका सीधा असर राजकोषीय सीमा पर पड़ेगा। दरअसल केन्द्रीय वित्त आयोग के अनुसार राज्य का फिजिकल रिस्पांसबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट (एफआरबीएम) कुल राजस्व आय के 3 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। जिस राज्य का एफआरबीएम 3 प्रतिशत से ज्यादा होता है उसका वित्तीय प्रबंधन अच्छा नहीं माना जाता है।

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