असहमतों के साथ न्यायपालिका है

Bhopal Samachar
राकेश दुबे@प्रतिदिन। चाहे उत्तरप्रदेश हो या पश्चिम बंगाल या केरल हर जगह हर किसी को सरकार से असहमत होने का हक है| अपनी आलोचना और असहमति पर आग बबूला होने वाले नेताओं को यह सीख मुम्बई उच्च न्यायालय ने दी है| जब भी लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचलने की कोशिश हुई, हमारी न्यायपालिका ने नागरिकों का पक्ष लिया है। युवा कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को जनलोकपाल आंदोलन के दौरान वर्ष 2011 में देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किए जाने के मामले में यह फैसला आया है|

न्यायालय ने कहा कि हर नागरिक को सरकार से असहमत होने, उसकी नीतियों और फैसलों की आलोचना करने का हक है, जब तक उसका इरादा हिंसा भड़काना या सार्वजनिक शांति भंग करना न हो। त्रिवेदी को जिन सात कार्टूनों के कारण मुंबई पुलिस ने उस वक्त गिरफ्तार किया था, उन पर कुछ सत्तारूढ़ नेताओं ने एतराज जताया था।  लेकिन मात्र एतराज़ से कोई गुनाह नहीं हो जाता।

जनलोकपाल आंदोलन के दौरान केंद्र में भी कांग्रेस की अगुआई वाली सरकार थी और महाराष्ट्र में भी। लेकिन भारतीय जनता पार्टी का रवैया भी उससे अलग नहीं है। जनवरी में ग्रीनपीस की कार्यकर्ता प्रिया पिल्लई को दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर यह कह कर रोक दिया था कि उनके विरुद्ध ‘लुकआउट सर्कुलर’ जारी है।

प्रिया पिल्लई को इसलिए रोका गया कि वे मध्यप्रदेश में एक खनन परियोजना से स्थानीय लोगों पर पड़ने वाले कुप्रभाव के बारे में ब्रिटेन के कुछ सांसदों को बताने के लिए लंदन जा रही थीं। मोदी सरकार की निगाह में यह राष्ट्र-विरोधी कृत्य था। क्या सरकार की किसी नीति या फैसले से असहमत होना और दुनिया को उससे अवगत कराना देश के खिलाफ काम करना है? फिर हमारे लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों का क्या मतलब रह जाता है? इमरजेंसी के विरुद्ध कई भारतीयों ने विदेश में मुहिम चलाई थी। उसके बारे में भाजपा क्या कहेगी?

असीम त्रिवेदी के मामले में जैसा फैसला मुंबई उच्च न्यायालय ने सुनाया है वैसा ही प्रिया पिल्लई के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने। पिल्लई के मामले में भी अदालत ने यही कहा कि असहमति जाहिर करना कोई गुनाह नहीं है, यह अभिव्यक्ति की आजादी का हिस्सा है।

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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