उपदेश अवस्थी/भोपाल। व्यापमं घोटाले में घिरे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मध्यप्रदेश से विदाई की चर्चाएं एक बार फिर शुरू हो गईं हैं। कांग्रेस के पीएम को ज्ञापन के बाद आज दिल्ली की पूरी मीडिया शिवराज के केन्द्र में ट्रांसफर की बात कर रही है। कहा जा रहा है कि जो काम रुका हुआ है उसके पूरे होने का समय आ गया है। शिवराज अब भोपाल में नहीं दिल्ली में मिला करेंगे।
अजीब संयोग आ पड़ा है। यहां शिवराज ओलापीड़ित किसानों के आंसू पौंछ रहे हैं और वहां शिवराज के आंसू निकालने की तैयारियां चल रहीं हैं। माना जा रहा है कि उन्हें भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति में काम दिया जाएगा। वो मोदी सरकार में मंत्री नहीं होंगे बल्कि संगठन के लिए काम करेंगे और ऐसे इलाकों में संगठन को मजबूत करेंगे जहां भाजपा अभी कमजोर है।
शिवराज की रणनीति
हर आदमी की तरह शिवराज सिंह में भी कुछ खुबियां तो कुछ खामियां हैं.
- वे जितना हैं, उतना दिखते नहीं हैं, यह उनकी खामी है.
- और वे जो हैं, वे दिखते नहीं, यह उनकी खूबी है.
राजनाथ सिंह का पिछला कार्यकाल समाप्त होने के बाद संघ परिवार भाजपा के अगले अध्यक्ष की तत्परता से तलाश कर रहा था, तब शिवराज सिंह चौहान का नाम प्रमुख रूप से विचार किया गया था. पर, शिवराज उस समय राज्य को छोड भाजपा अध्यक्ष बनना नहीं चाहते थे. उसके कारण भी थे. भाजपा की उस समय की स्थिति आज के कांग्रेस जैसी ही बहुत हद तक थी. 2009 लोकसभा में हार के बाद पार्टी में कलह चरम पर था. एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी था. ऐसे में शिवराज नहीं चाहते थे कि वे एक बडे राज्य के मजबूत जननेता व मजबूत सीएम की हैसियत छोड गृह कलह में फंसी पार्टी का प्रमुख बनें. राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि शायद उन्होंने उस समय इसलिए अपनी राष्ट्रीय स्वीकार्यता को कम करने और उस पर खुद ही अंकुश लगाने के लिए बिहारियों के खिलाफ एक टिप्पणी की थी, ताकि उन्हें संघ परिवार द्वारा अध्यक्ष नहीं बनाया जाये. जानकार तो यह भी कहते हैं कि उस समय शिवराज की यह रणनीति काम कर गयी थी और वे अध्यक्ष के रूप में कांटों का ताज पहनने से बच गये थे.
अब क्या करेंगे शिवराज
शिवराज सिंह राष्ट्रीय व घरेलू दोनों मोर्चो पर मुश्किलों का सामना करते रहे हैं और बडी कुशलता से उससे बच कर निकलते रहे हैं. अब जब व्यापंम घोटाले मामले में उनके खिलाफ पीएम नरेंद्र मोदी से कांग्रेस ने शिकायत कर दी है, तो फिर वह अपनी आगामी रणनीति तय करने में एक कुशल राजनेता व रणनीतिकार की तरह लग गये हैं. उन्होंने पीएम मोदी को खुद का रोड मॉडल बता दिया है. वे कहते हैं कि उनसे उन्हें मध्यप्रदेश का विकास करने की प्रेरणा मिलती है. वे मोदी के खास रणनीतिकार अमित शाह के तारीफों की भी पुल बांधते हैं. वे साफ कहते हैं कि उन्हें राष्ट्रीय राजनीति की महत्वाकांक्षा नहीं है. पर, चर्चा है कि भाजपा हाइकमान उन्हें केंद्र में लाना चाहता है. अब यह उनकी प्रोन्नति होगी या पदोन्नति यह विेषकों का विषय है.