मण्डला। शिक्षा के निजीकरण के विरोध में बड़ी संख्या में जिले के अध्यापक और संविदा शिक्षक इकठ्ठे हुये और मुख्यमंत्री के नाम कलेक्टर मण्डला को ज्ञापन सौंपा। तदुपरांत अध्यापकों ने मण्डला प्रवास में आये स्वास्थ्य राज्य मंत्री एवं मण्डला जिले के प्रभारी मंत्री को ज्ञापन सौंपने के साथ ही शिक्षा के निजीकरण का विरोध दर्ज कराया ज्ञापन सौंपते समय जिले के सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते, जिला पंचायत उपाध्यक्ष शैलेष मिश्रा भी उपस्थित थे।
अध्यापकों ने मण्डला विधायक श्री संजीव उइके को भी ज्ञापन सौंपकर शिक्षा के निजीकरण का विरोध करने की अपील की। ज्ञापन सौंपने के पूर्व अध्यापकों नें बंजर क्लब चैराहें में दो घण्टे का धरना दिया एवं शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। ज्ञापन के द्वौरान अध्यापकों में शिक्षा के निजीकरण को लेकर गहरा आक्रोश देखा गया। संघ ने अपने ज्ञापन में कहा है कि एक कल्याण राज्य की कल्याणकारी सरकार द्वारा प्रदेश में शिक्षा को निजी हाथों में दिये जाने का निर्णय लेना दुर्भाग्यपूर्ण हैं।
राज्य अध्यापक संघ म.प्र. आपकी सरकार के इस निर्णय पर खेद व्यक्त करता है। प्रदेश में कार्यरत लाखों अध्यापक व संविदा शिक्षक जहां पिछले 20 वर्षो से शोषित एवं उपेक्षित रहे हैं आपके शासन काल में जब इस पीड़ा से उबरने की आस जगी है तो एक बार फिर हमें उसी संघर्ष के राह में धकेला जा रहा है।
यदि सरकारी स्कूलों में बदहाली है तो उसका कारण शिक्षकों से बडे़ पैमाने पर गैर शिक्षकीय कार्य कराया जाना है। सरकारी शिक्षकों का अधिकांश समय बैंक में छात्र छात्राओं के खाता खुलाने में,छात्रवृत्ति गणवेश और साईकिल वितरण में, जाति प्रमाण पत्र बनवाने में, बीएलओ के रूप में निर्वाचन कार्य में,गैर जरूरी डाक तैयार करने में, जाया होता है। सरकारी वि़द्यालयों में बड़ी संख्या में शिक्षकों के पद रिक्त है अधिकांश शालाएं प्राचार्य और प्रधान पाठक विहीन हैं। विद्यालयों में गणित विज्ञान और अंगे्रजी जैसें विषयों के शिक्षक नहीं हैं। एक शिक्षक को 4-4 शिक्षकों का काम करना पड़ रहा है। सरकारी स्कूल बदहाल इस बात पर हैं कि शिक्षक और अध्यापकों को प्राचार्य, बाबू और भृत्य का काम भी करना पड़ रहा है। अध्यापकों का वेतन न तो सम्मानजनक हैं और न ही समय पर वेतन दिया जाता है।
सरकार द्वारा शिक्षा के निजीकरण का निर्णय ‘‘जन जन तक शिक्षा का अधिकार’’ देने के सरकार के नारे के उलट है। इस निर्णय से अमीर तबका जरूर खुश होगा पर शिक्षा गरीबों से दूर होगी। शिक्षा का निजीकरण सीधे शिक्षा का बजारीकरण है इससे पूंजीपतियों और उद्योगपतियों को ही लाभ पहंुचेगा। सरकार शिक्षकों से अपने सारे राष्ट्रीय कार्यक्रमों का संचालन कराती है और उसकी उपलब्धि में शिक्षकों को कभी भी भागीदार नहीं बनाती है। सरकार यदि शिक्षा के निजीकरण के निर्णय को निरस्त नहीं करती है तो अध्यापक सड़को पर आकर आंदोलन करने के लिये बाध्य होंगें। ज्ञापन सौंपने वाले अध्यापकों में डी.के.सिंगौर, रवीन्द्र चैरसिया, संजीव सोनी, अमर सिंह चन्देला, तुलसी राम वंदेवार, उमेश यादव, अजय मरावी, विनोद कार्तिकेय, श्रीमती संगीता साहु, श्रीमती आभा दुबे, श्रीमती सरिता सिंह, सतीश शुक्ला, मनोज पटैल, सुनील नामदेव, संजीव दुबे, कैलाश सोनी, अनिल श्रीवास्तव, नरेश सैयाम सहित सैंकड़ो अध्यापक उपस्थित थे।