भोपाल। मप्र की आंगनवाड़ियों में डब्बाबंद खाना सप्लाई करने की जुगत लगाई जा रही है। शासन के अधिकारी और पैकेट बंद खाना सप्लाई करने वाले कार्पोरेट अच्छी तरह से जानते हैं कि इस प्रक्रिया में सबसे बड़ी अड़चन आंचलित मीडिया होगी, जिसे खरीदा नहीं जा सकता अत: मीडिया को मुगालते में लाने का प्रयास किया जा रहा है।
इसके लिए इंदौर में बाद भोपाल के लक्झरी होटल नूर उस सबाह में मीडिया को आमंत्रित किया गया और फोर्टिफाइड को कुपोषण के खिलाफ लड़ने के लिए सबसे अच्छा हथियार प्रमाणित करने का प्रयास किया गया।
प्रोफेसर एस रघाव चार्री जो आईआईएमसी में कार्यरत हैं होटल नूर उस सबाह में अंतरराष्ट्रीय संस्था ग्लोबल अलायंस फॉर इम्प्रूव्ड न्यूट्रीशन (गेन) तथा रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन ऑफ इण्डिया के द्वारा आयोजित मीडिया कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में मीडिया को गाइड करने का प्रयास कर रहे थे। कार्यशाला में मीडिया और देश भर से आए विशेषज्ञों ने फोर्टिफाइट आटे के प्रयोग से कुपोषण खत्म करने के विषय में चर्चो की।
क्या होता है फोर्टिफाइड
फोर्टिफाइड को सरल शब्दों में समझ जाए तो एक डब्बा बंद भोजन की प्रक्रिया। यह एक समान गुणों के साथ मप्र की सभी आंगनवाड़ियों में सप्लाई की जाएगी। इससे भोजन में एकरूपता आएगी और आंगनवाड़ी स्तर पर होने वाला भ्रष्टाचार रोका जा सकेगा।
इन्हें इतनी चिंता क्यों है
लेबर क्लास क्या मिडल क्लास के बूझे से बाहर रहने वाले होटल नूर उस सबाह में कुपोषण की कार्यशाला की जरूरत क्या थी। ग्लोबल अलायंस फॉर इम्प्रूव्ड न्यूट्रीशन (गेन) तथा रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन ऑफ इण्डिया को आखिर क्या पड़ी है जो अचानक वो मप्र के कुपोषित बच्चों की फिक्र करने लग गए। क्या इससे पहले इन संस्थाओं और मुख्य वक्ता महोदय प्रोफेसर एस रघाव चार्री ने कुपोषित बच्चों के हित में कोई काम किया है, कोई अभियान चलाया है। यह जानना बहुत जरूरी है, जो कार्यशाला में कतई नहीं बताया गया।
धंधे की बात
इसके पीछे मूल टारगेट यह है कि पूरे मप्र की आंगनवाड़ियों में यदि थोकबंद सप्लाई का आर्डर मिला तो यह करोड़ों का कारोबार होगा। एक अनुमान के अनुसार पूरे प्रदेश में 600 करोड़ रुपए सालाना की सप्लाई की जा सकती है। बस इसी थोकबंद सप्लाई का आर्डर प्राप्त करने के लिए इस रास्ते में आने वाला एक रोड़ा जिसे मीडिया कहते हैं, को पहले से अपने पक्ष में रखने का प्रयास किया जा रहा है और केवल इसीलिए मीडिया के प्रतिनिधियों को नूर उस सबाह जैसे लक्झरी होटल में कुपोषण पर कार्यशाला आयोजित की गई जिसमें उच्च केलोस्ट्रॉल वाला भोजन परोसा गया।
ये आंचलिक पत्रकारिता क्या है
मप्र में मीडिया को मैनेज करना बड़ा ही आसान है। कुल 10 बड़े और 50 के आसपास छोटे घराने हैं। एक मीटिंग में सेटिंग हो जाती है, लेकिन आंचलिक पत्रकारिता बड़ी बिखरी हुई है और अनआर्गेनाज्ड भी। ये किसी की नहीं सुनती। दस बीस को समझा भी लो तब भी कोई ना कोई तो उबल ही पड़ता है। मप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सबसे पहले मप्र की आंचलिक मीडिया की रीड़ तोड़ने का काम किया। क्षेत्रीय अखबारों को सरकारी विज्ञापन बहुत कम कर दिए और साप्ताहिक अखबारों को पूरी तरह से बंद कर दिए। नतीजा पूरे प्रदेश में ज्यादातर साप्ताहिक बंद हो गए परंतु कुछ हैं जो आज भी जिंदा है। शिवराज सरकार भी दिग्विजय सिंह के नक्शेकदम पर ही आगे बढ़ी। आंचलिक पत्रकारिता को कुचलने के लिए हर वो कदम उठाया गया जो भले ही अनीतिगत हो परंतु परिणाम मूलक रहे। फिर भी आंचलिक पत्रकारिता जिंदा है। वो अभी तक पूरी तरह से मरी नहीं है। व्यापमं घोटाले की आग यदि अब तक जल रही है तो आंचलिक पत्रकारिता के कारण, वरना बड़े मीडिया घराने तो कब के मैनेज हो गए होते।