कहना क्या चाहते हैं विधायक महोदय @ शिवराज का सामंती कानून

Bhopal Samachar
उपदेश अवस्थी@लावारिस शहर। मध्यप्रदेश तंग करने वाला मुकदमेबाजी (निवारण) विधेयक 2015 के संदर्भ में भाजपा के प्रदेशप्रवक्ता एवं विधायक रामेश्वर शर्मा ने एक बयान जारी किया है। भाजपा के हैं इसलिए समर्थन करना शर्माजी का धर्म भी है और कर्तव्य भी परंतु उन्होंने समर्थन में कुछ ऐसा बयान जारी कर डाला, जो चौंकाने वाला है। 

पहले कृपया ध्यान से पढ़िए शर्माजी का बयान 

विधेयक का विरोध कांग्रेस की ओछी मानसिकता का सबूत, श्री कटारे इंदिरा गांधी के आपातकाल को शायद भूल गये हैं: श्री रामेश्वर शर्मा

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता, विधायक श्री रामेश्वर शर्मा ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष श्री सत्यदेव कटारे ने प्रदेश सरकार द्वारा कैविनेट में पारित ’’मध्यप्रदेश तंग करने वाला मुकदमेबाजी (निवारण) विधेयक 2015’’ का विरोध कर कांग्रेस की ओछी मानसिकता का सबुत दिया है। उन्होने कहा कि इस विधेयक से न्यायालय प्रक्रिया को दुरूपयोग करने वालों पर अंकुश लगेगा। उन्होंने नेता प्रतिपक्ष के बयान पर कटाक्ष करते हुए कहा कि कांग्रेस आपातकाल की जननी है। श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल थोपकर लोकतंत्र की हत्या करने का कार्य किया था। कटारे शायद इंदिरा गांधी के आपातकाल को भूल गये हैं।

अब शुरू करते हैं अपनी बात 
अव्वल तो यह कि 'मध्यप्रदेश तंग करने वाला मुकदमेबाजी (निवारण) विधेयक 2015'  के मामले में कांग्रेस का विरोध इतना मायने नहीं रखता जितना कि मध्यप्रदेश के वकीलों और आरटीआई कार्यकर्ताओं का। 

दूसरी बात यह कि शर्माजी आखिर कहना क्या चाहते हैं। कांग्रेस की नेता ने 'आपातकाल' लगाया था इसलिए शिवराज सरकार को भी 'आपातकाल' लगाने का लाइसेंस मिल जाना चाहिए, या कांग्रेस सिर्फ इसलिए शिवराज के सामंती विधेयक का विरोध नहीं कर सकती क्योंकि उसकी नेता ने 'आपातकाल' लगाया था। 
सवाल यह है कि यदि किसी का पिता हत्यारा है तो क्या बेटे को जुर्म के खिलाफ आवाज उठाने का अधिकार नहीं रह जाता। क्या उसके अपने संवैधानिक अधिकार समाप्त हो जाते हैं। 
यदि ऐसा ही है तो इसी कांग्रेस के महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के कई कानूनों का विरोध किया था, अत: कांग्रेस के पास तो पुराना लाइसेंस है। अभी तक रद्द नहीं हुआ है क्योंकि गांधी को तो भाजपा के मोदी भी मानते हैं। 

यहां विषय यह नहीं है कि कटारे कौन हैं और उन पर कितने आरोप हैं, या कांग्रेस कितनी जनविरोधी रही है। विषय यह है कि जिस आपातकाल लगाने वाली कांग्रेस के खिलाफ भाजपा को वोट दिया गया। यदि वो भी कांग्रेस की ही तरह सामंती विधेयक लाने लग जाए तो फिर अंतर क्या रह जाएगा कांग्रेस और भाजपा में। 

आखिर क्या है शिवराज का सामंती कानून
मध्यप्रदेश तंग करने वाला मुकदमेबाजी (निवारण) विधेयक 2015 को मैं 'शिवराज का सामंती कानून' के नाम से पुकारना चाहता हूं। वो इसलिए क्योंकि इस विधेयक के लागू हो जाने के बाद आम नागरिकों के सरकार के खिलाफ आवाज उठाने के ​अधिकारों पर अतिक्रमण हो जाएगा। 

सरकार द्वारा नियुक्त एक वकील तय करेगा कि सरकार के खिलाफ उठाई जा रही आवाज, सही है या नहीं है। वो तय करेगा कि हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगाई जानी चाहिए या नहीं। 

अलोकतांत्रिक बात तो यह है कि सरकार से उपकृत होने वाला वकील यदि एक बार आपकी आवाज को 'तंग करने वाली' करार दे देगा तो आप उसके खिलाफ अपील भी नहीं कर पाएंगे। 

किसान मुआवजे के लिए याचिका नहीं लगा पाएंगे। 
कर्मचारी संगठन वेतनमान के लिए याचिका नहीं लगा पाएंगे। 
भ्रष्टाचार के खिलाफ आरटीआई कार्यकर्ता याचिका नहीं लगा पाएंगे। 
समाज को सुधारने के लिए समाजसेवी याचिका नहीं लगा पाएंगे। 

इसलिए नहीं लगा पाएंगे क्योंकि सरकार द्वारा नियुक्त वकील उन्हें 'तंग करने वाली' याचिका करार दे देगा और वो ऐसा ही करेगा क्योंकि ऐसा करने के लिए ही सरकार उसे नियुक्त करेगी। कोई भी कर्मचारी अपने नियोक्ता के खिलाफ कैसे जा सकता है। 

सवाल यह है कि जब न्यायालय के पास याचिकाओं को निरस्त करने का अधिकार है और न्यायालयों में आए दिन याचिकाएं निरस्त भी की जा रहीं हैं तो इस नए फिल्टर की जरूरत ही क्या है। 

यदि ऐसे ही कानून लागू होने लगे तो लोकतंत्र का अर्थ क्या रह जाएगा। राजशाही या सामंतवाद में भी तो ऐसा ही हुआ करता था। राजा/महाराजा के खिलाफ आवाज उठाने का अधिकार प्रजा को नहीं था। वो विरोध नहीं कर सकती थी। प्रदर्शन नहीं कर सकती थी। सामंतवाद का अर्थ ही केवल इतना सा था। 

और लोकतंत्र के मायने केवल इतने हैं कि सरकार आम नागरिकों के प्रति जवाबदेह रहे। लोग सवाल पूछ सकें, शिकायत कर सकें, विरोध कर सकें और गलत व्यवस्था को बदलने के लिए बाध्य कर सकें। सेंसरशिप लागू हो गई तो लोकतंत्र ही बंधक बन जाएगा। आजादी का अर्थ खत्म हो जाएगा। 

सरकार को चाहिए कि वो आम नागरिकों की चिंता करे, उनकी परेशानियों को दूर करे, न्यायालयों की परेशानियों को दूर करने के लिए पर्याप्त न्यायाधीश हैं, यदि कम पढ़ रहे हैं तो सीट बढ़ा दें, नई भर्तियां कर लें, लेकिन न्याय को सुलभ ही रहने दें। उसमें फिल्टर ना लगाए। 


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