भोपाल। मप्र में इन दिनों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह साउथ इंडियन पॉलिटिक्स के तहत काम कर रहे हैं। सारे अफसरों को ताकीद कर दिया गया है कि दिग्विजय सिंह के खिलाफ जो भी मसाला हो फाइलों से बाहर निकालें, इसके तहत अफसर ना केवल दिग्विजय सिंह के खिलाफ आने वाली आरटीआई का जवाब सारे काम छोड़छाड़ के दे रहे हैं बल्कि मीडिया को भी लाइव अपडेट दे रहे हैं। ताकि दिग्विजय सिंह पर प्रेशर बना रहे।
पढ़िए आज भोपाल के एक अखबार में छपी यह खबर:-
कांग्रेस महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में पुलिस भर्तियों में गड़बड़ियों की रिपोर्ट पीएचक्यू ने तैयार की है। पीएचक्यू चयन शाखा ने शिकायतकर्ता को बुधवार को दोबारा तलब किया है। इस दौरान शिकायतकर्ता को आरटीआई में मांगी गई भर्ती के दस्तावेज और जानकारी सुपुर्द की जाएगी। इससे पहले शिकायतकर्ता ने डीजीपी सुरेंद्र सिंह से 1993 से 03 के बीच हुई पुलिस भर्तियाें में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए एसटीएफ से जांच की मांग की थी। 1996 से 2003 के बीच हुई पुलिस भर्ती में चुने गए शिवपुरी, गुना और राजगढ़ के युवकाें का ब्यौरा सूचना के अधिकार के तहत मांगा गया था। शिकायतकर्ता ने मंगलवार को मामले में डीजीपी से मिलकर पूर्व मुख्यमंत्री के निज स्टाफ की कॉल डिटेल मुहैया कराने की पेशकश भी की। शिकायकर्ता को मामले से जुड़े सभी साक्ष्य एसआईटी के समक्ष प्रस्तुत करने की हिदायत दी गई है।
अफसरों की आश्चर्यजनक सक्रियता
महज 1 सप्ताह में जुटा ली गई पूरी जानकारी। जबकि ऐसी ही जानकारी दिग्विजय सिंह के बजाए शिवराज सिंह के कार्यकाल की मांग लीजिए, 7 महीने इंतजार के बाद राज्य आयोग में अपील करनी पड़ेगी।
शायद मप्र के इतिहास में पहली बार है जब जानकारी जुटाने की खबर भी प्रकाशित करवाई गई है। जैसे विभाग ने कोई नया अचीवमेंट कर लिया हो।
इतना ही नहीं शिकायतकर्ता को यह भी बताया गया है कि वो दिग्विजय सिंह के खिलाफ कहां कहां शिकायत कर सकता है। कितने अधिकारी हैं जो उसकी हर शिकायत का इंतजार कर रहे हैं, बशर्ते वो दिग्विजय सिंह के खिलाफ हो।
आमजन की प्रतिक्रियाएं
दिग्विजय सिंह को दण्डित होते देखना तो पूरा मध्यप्रदेश चाहता था। चुनावों में दण्डित किया भी था परंतु जिस तरीके से शिवराज कार्रवाई कर रहे हैं वो लोगों को कतई समझ नहीं आ रहा। उल्टा इससे दिग्विजय सिंह के प्रति सदभावनाएं बढ़ रहीं हैं और शिवराज की छवि खराब हो रही है। ज्यादातर लोगों का सिर्फ एक सवाल है कि शिवराज सिंह चौहान से इस तरह की कार्रवाईयों की उम्मीद कतई नहीं थी। मुद्दों को दबाने और खुद को बचाने के लिए विरोधियों के खिलाफ कानून का इस्तेमाल कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता।