हड़ताल के नाम पर पिज्जा पार्टी कर रहे हैं जूडा

ना दर्द ना आक्रोश, मस्ती का मूड
भोपाल। डॉक्टर्स प्रोटेक्शन एक्ट के तहत प्रकरण की मांग कर रहे हड़ताली जूनियर डॉक्टर मीडिया के सामने तो समाजसेवी और पीड़ित दिखाई देते हैं परंतु जैसे ही मीडिया मुंह फैरती है जूडा की पिज्जा पार्टी शुरू हो जाती है। यह कहना है उन मरीजों का जो इस हड़ताल के कारण इलाज से वंचित हो रहे हैं।

गांधी मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. बीपी दुबे तीन बार जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल खत्म कराने की खातिर उनके साथ बैठक कर चुके हैं। जो बेनतीजा रही। वहीं, पुलिस डॉक्टर्स प्रोटेक्शन एक्ट के तहत मामला दर्ज करने को तैयार नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि पुलिस अपनी जगह सही है और उसके अपने तर्क हैं जो न्यायोचित प्रतीत होते हैं।

जूडा द्वारा पुलिस पर प्रेशर का यह पहला मामला नहीं है। करीब ढ़ाई महीने पहले भी जूनियर डॉक्टरों को मारपीट के आरोपी के खिलाफ इस एक्ट के तहत मामला दर्ज कराने पांच दिन हड़ताल पर चले गए थे। हड़ताल अब जूडा का शगल बन गया है। वो एक शार्टनोटिस पर एकजुट हो जाते हैं और अपने पेशे की गंभीरता को समझे बिना हड़ताल पर चले जाते हैं।

बेनतीजा रही वार्ता
जीएमसी डीन डॉ. बीपी दुबे ने बताया कि जूडा को हड़ताल वापस लेने की समझाइश दी थी लेकिन वह आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद हड़ताल खत्म करने की जिद पर अड़े हुए हैं।

डॉक्टरों को चाहिए सिक्योरिटी
एसोसिएशन के उपाध्यक्ष डॉ. आदित्य लूनावत ने बताया कि हमीदिया व सुल्तानिया जनाना अस्पताल में जूनियर डॉक्टरों और मरीजों के बीच झगड़ा सुरक्षा गार्डों की लापरवाही के कारण होता है। सुरक्षा गार्ड ओपीडी, आईपीडी और वार्डों में मरीज के साथ आने वालों को बाहर नहीं रोकते। इससे न सिर्फ मरीज के इलाज में समय लगता है, बल्कि कुछ मरीजों के परिजन मारपीट भी करते हैं। इस कारण कॉलेज प्रबंधन को अस्पताल की सुरक्षा एजेंसी का ठेका दूसरी सिक्युरिटी एजेंसी को देना चाहिए।

समस्या की जड़ में क्या है
यहां विचार करने योग्य तथ्य यह है कि आखिर इस समस्या की जड़ में क्या है। क्या बात है कि डॉक्टर को भगवान मानने वाले लोग अब डॉक्टरों पर हमला करने लगे हैं। क्या ऐसा कोई कानून बनाया जा सकता है जो लोगों की भावनाएं पहले जैसी कर दे, या फिर कुछ ऐसा करना होगा कि लोग फिर से डॉक्टरों का सम्मान करने लगें। बहुत जरूरी है कि इस बिन्दु पर विचार किया जाए। नारेबाजी और पिज्जापार्टी से कहीं ज्यादा जरूरी है कि जूडा मरीज को ग्राहक और सब्जेक्ट समझने की भूल ना करें।

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