प्रद्युत बोरा। बीजेपी अब दूसरी पार्टियों से अलग नहीं रही। बीजेपी में एक किस्म का पागलपन समा गया है। किसी भी कीमत पर जीतने की सनक ने पार्टी के बुनियादी मूल्यों को नष्ट कर दिया है। शाह बहुत ही सेंट्रलाइज्ड तरीके से फैसले करते हैं। इससे कई पार्टी अधिकारियों को यह लगता है कि उनके पास कोई अधिकार ही नहीं रह गए हैं। किसी भी संगठन में नेता की शैली को उसके नीचे के लोग तुरंत कॉपी करते हैं। कम से कम अपने प्रदेश में तो मैं कई जूनियर अमित शाहों को देख रहा हूं, जिनमें आम कार्यकर्ताओं के मुकाबले क्षमता भले ही 10 गुनी कम हो, लेकिन उनका अहंकार 10 गुना ज्यादा है।
क्या देश में कैबिनेट सिस्टम बचा है?
सरकार में भी लोकतंत्र नहीं रह गया है। मोदी ने इस देश की बेहतरीन लोकतांत्रिक परंपरा को डैमेज कर दिया है । विदेश मंत्री तक को पता नहीं होता कि विदेश सचिव को हटाया जाने वाला है। कैबिनेट मिनिस्टर अपने ओएसडी तक नियुक्त नहीं कर सकते। सारे अधिकार पीएमओ के पास सुरक्षित और आरक्षित हो गए हैं। क्या देश में कैबिनेट सिस्टम बचा है? मोदी ने इस देश की बेहतरीन लोकतांत्रिक परंपरा को डैमेज कर दिया है। कोई भी राष्ट्रीय पदाधिकारी और सांसद इस बारे में मोदी जी से सवाल करने का साहस नहीं कर सकता है।
मैंने 2004 में बीजेपी जॉइन की थी। अटल बिहारी वाजपेयी ने जिस तरह 24 दलों का गठबंधन चलाया, उससे मैं प्रभावित था। देश को एक अलग तरह के राजनीतिक विकल्प की जरूरत है। या तो बीजेपी वैसी बने या लोग विकल्प तलाश लेंगे। मुझे आप, कांग्रेस और असम गण परिषद की असम ईकाइयों से ऑफर मिले थे, लेकिन मैं उनके साथ नहीं जाना चाहता।
- लेखक असम के युवा नेता हैं एवं बीजेपी की नैशनल एग्ज़ेक्युटिव कमिटी और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे चुके हैं। आईआईएम- अहमदाबाद से पढ़कर निकले हैं।