नईदिल्ली। पहली बार पेश किए जाने के सात साल बाद तमाम वाद व विरोध के बीच अंतत: संसद ने बीमा विधेयक पारित कर दिया है। बीमा उद्योग के लिए यह ऐतिहासिक घटना है। विधेयक से इस क्षेत्र के विकास को खासी रफ्तार मिलने की उम्मीद है। इससे क्षेत्र में प्रगतिशील नियामक ढांचा तैयार होने के साथ-साथ बुनियादी ढांचे के विकास के लिए आवश्यक पूंजी प्राप्त होगी।
पिछले कुछ महीनों के दौरान बीमा कानून (संशोधन) विधेयक के बारे में काफी कुछ कहा जा चुका है। ऊपरी तौर पर विधेयक का उद्देश्य नियामक इरडा को सशक्त बनाना है। मगर इसकी मुख्य विशेषता विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआइ) की सीमा को 26 से बढ़ाकर 49 फीसद किया जाना है। संशोधित नियम-कायदे अंतिम पॉलिसीधारकों के लिए भी कई प्रकार से फायदेमंद साबित होंगे। इनमें से कुछ की चर्चा हम यहां करेंगे।
बीमा कंपनियों को पूंजी बढ़ाने की छूट
विदेशी इक्विटी के अलावा संशोधित कानून बीमा कंपनियों को नए इंस्ट्रूमेंट्स के जरिये पूंजी बढ़ाने की सहूलियत प्रदान करता है। इस संबंध में विस्तृत नियम बीमा नियामक इरडा द्वारा जारी किए जाने हैं। लेकिन पूंजी की उपलब्धता से बीमा की पहुंच व वितरण उन क्षेत्रों में बढ़ाने में मदद मिलेगी, जहां इसकी कमी है। वहीं, नए-नए किस्म के उत्पाद आने, तकनीक का प्रयोग बढ़ने, ऊंचे दर्जे की सेवाएं मिलने व बीमा कंपनियों की जवाबदेही बढ़ने से अंतत: हर प्रकार के ग्राहकों की जरूरतें पूरी होंगी। नतीजतन, ग्राहक संतुष्टि का स्तर बढ़ेगा। नए कानून में बीमा की पहुंच को मौजूदा 3.9 फीसद से आगे बढ़ाने की अत्यधिक क्षमता है। इससे जनसंख्या के बड़े स्तर तक बीमा सुविधाओं का लाभ पहुंचाने में मदद मिलेगी, जो नि:संदेह वक्त की मांग है।
ग्राहक के हितों की रक्षा
नए नियमों का मकसद ग्राहकों के हितों की रक्षा करना है। कदाचार का दोषी पाए जाने वाले एजेंटों व बीमा कंपनियों पर जुर्माने काफी बढ़ा दिए गए हैं। ग्राहकों को गलत जानकारी देकर बीमा उत्पाद बेचने पर सख्त पाबंदी लगाई गई है। जवाबदेही व जिम्मेदारी सुनिश्चित करने के लिए नियम उल्लंघन की प्रकृति के अनुसार जुर्माने की राशि एजेंटों के मामले में दस हजार रुपये, जबकि बीमा कंपनियों के मामले में एक करोड़ रुपये तक है। अब तीन साल पूरा होने के बाद बीमा कंपनी द्वारा किसी भी बीमा पॉलिसी को किसी भी बहाने से रद नहीं किया जा सकेगा। इससे पहले ऐसा नहीं था। बीमा कंपनियां दो साल के भीतर किसी पॉलिसी को गलतबयानी या धोखाधड़ी के आधार पर रद कर सकती थीं।
नए नियमों से बीमा कंपनियां जवाबदेही व भुगतान मानकों में सुधार के लिए विवश होंगी, जबकि भरोसा बढ़ने से पालिसीधारक के हितों की रक्षा हो सकेगी। हालांकि अल्पकाल में बीमा कंपनियों की लागत में अवश्य कुछ इजाफा हो सकता है। दीर्घकाल में इससे बीमा क्षेत्र पर सकारात्मक असर पड़ेगा, क्योंकि बीमा कंपनियां वादाखिलाफी से बचने की कोशिश करेंगी। अपने भुगतान संबंधी व्यवहारों में सुधार करेंगी। इससे अंतत: बीमा पर ग्राहकों का भरोसा बढ़ेगा। पॉलिसीधारक द्वारा नामित व्यक्ति (नामिनी) को भुगतान की प्रक्रिया भी सरल होगी। भुगतान होते ही बीमा कंपनी पर कानूनी जिम्मेदारी का बोझ कम हो जाएगा।
कमीशन और अन्य भुगतान
संशोधित कानून में कमीशन व अन्य खर्चों की राशि का निर्धारण करने की जिम्मेदारी इरडा को हस्तांतरित कर दी गई है। इससे नियामक ज्यादा बेहतर व पारदर्शी उत्पाद लाने व अंतिम ग्राहक को लाभ पहुंचाने के लिए काम करेगा, जबकि पॉलिसी खरीदार योजनाओं में ज्यादा पारदर्शिता व खरीद में आसानी की अपेक्षा करेंगे।
इरडा के अधिकारों में इजाफा
बीमा कानून में एक विशेषता बीमा संबंधी नियम-कायदे बनाने में नियामक के अधिकार बढ़ाए गए हैं। इस कदम से इरडा को बदलते वातावरण के साथ खुद को परिवर्तित करने में सहूलियत होगी। वहीं, वह पॉलिसीधारकों के हितों की रक्षा भी बेहतर ढंग से कर सकेगा। इरडा को अब साल्वेंसी, निवेश, खर्च व कमीशन जैसी बीमा कार्य-व्यापार से जुड़ी महत्वपूर्ण चीजों को नियमित करने का अधिकार होगा। वह सर्वेयर्स व असेसर्स के कार्यकलापों और आचार-व्यवहार की भी बेहतर निगरानी कर सकेगा।
हेल्थ इंश्योरेंस को बढ़ावा
पुनरीक्षित नियमों के तहत बीमा कंपनी में न्यूनतम पूंजी निवेश की सीमा को बढ़ाकर 100 करोड़ कर दिया गया है, ताकि केवल गंभीर कंपनियां ही इस व्यवसाय में रहें। हेल्थ इंश्योरेंस व्यवसाय की परिभाषा का विस्तार करते हुए इसमें ट्रैवल व पर्सनल एक्सीडेंट कवर को भी शामिल कर दिया गया है। इससे हेल्थ बीमा क्षेत्र का और विस्तार होगा, जिसकी पहुंच भारत में अभी बहुत कम है।
कुल मिलाकर बीमा विधेयक भारत में बीमा क्षेत्र के विकास में मील का पत्थर है। इससे देश में बीमा के वैश्विक मानक स्थापित होंगे। इससे लोगों को किफायती मूल्यों व विश्वस्तरीय सेवाओं के साथ नए व ग्राहक अनुकूल उत्पाद पारदर्शी, सहज व सुविधाजनक ढंग से उपलब्ध होंगे। इससे बीमा क्षेत्र का तो विस्तार होगा ही, अर्थव्यवस्था का विकास होने से रोजगार के भी नए अवसर सृजित होंगे।
अमिताभ चौधरी
एमडी व सीईओ,
एचडीएफसी लाइफ