साक्षात मौत का हाईवे: इंदौर-भोपाल एक्सप्रेस-वे

सीहोर। सरकार ने प्राइवेट पार्टनरशिपिंग में इंदौर-भोपाल एक्सप्रेस-वे तो बनवा दिया, इस पर चलने के लिए आप मोटा टैक्स भी चुकाते हैं लेकिन सरकार ने इस बात का ध्यान नहीं दिया कि पैसे बचाने के लिए ठेकेदार क्या क्या लापरवाहियां कर रहा है और इसका नतीजा इंदौर-भोपाल एक्सप्रेस-वे अब एक मौत का हाईवे बन गया है।

यहां औसतन हर दिन चार सड़क हादसे होते हैं। वहीं हर दूसरे दिन एक मौत होती है। यह हम नहीं कर कह रहे। यह आंकडे इस सड़क पर एक साल हुए हादसे बयां कर रहे हैं। बीते एक साल में एक्सप्रेस-वे पर छोटे-बड़े हादसों में 700 सौ से अधिक लोग घायल हो चुके हैं। और करीब 125 लोग अपनी जान से हाथ धोने पड़े हैं।

भोपाल इंदौर बीच चमचमाते हाईवे पर सड़क दुर्घटनाओं का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है। जिला मुख्यालय से आष्टा तक के 40 किमी के हाईवे पर बात सहीं साबित हो रही है। पिछले कुछ वर्षो से यह मार्ग हादसों के कारण बदनाम सा हो गया है। औसतन हर दिन इस मार्ग पर चार हादसे दर्ज किए जाते है, हर दूसरे दिन यह हाईवे एक जान लेता है। नवदुनिया ने जब रविवार को इंदौर-भोपाल हाईवे का जायजा लिया तो इस मार्ग के निर्माण में तकनीकी खामियां सामने आई। वहीं परिवहन विभाग, लोक निर्माण विभाग, मप्र रोड डेवलपमेंट के साथ ही स्थानीय शासन की खामियां भी उजागर हुई।

40 किमी में है डेंजर पाइंट
इंदौर से भोपाल तक के 180 किलोमीटर के सफर में सीहोर से आष्टा के बीच के 40 किलोमीटर लंबे मार्ग पर ही आधा दर्जन दुर्घटना संभावित क्षेत्र हैं। इन डेंजर प्वाइंट में सीहोर का बिलकिसगंज चौराहा, क्रिसेंट रिसोर्ट चौराहा, जताखेड़ा जोड़, सौंडा चौराहा, अमलाहा ग्रामीण क्षेत्र, कोठरी नगर का पूरा क्षेत्र से लेकर 12 किलोमीटर आष्टा तक के मार्ग पर हर रोज औसतन चार हादसें सामने आते हैं।

  • हाईवे पर इस कारण होते हैं हादसे
  • इस एक्सप्रेस-वे पर संकेतकों का अभाव है।
  • ढाबे और दुकानें हाईवे से सट कर बनी हुई हैं।
  • ट्रक चालक हाईवे पर मनमर्जी से ट्रक पार्क कर देते हैं।
  • ग्रामीण और रहवासी क्षेत्रों से गुजरने वाले हाईवे पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं है।
  • अमलाहा, कोठरी, जताखेड़ा में हाईवे के किनारे दुकानें लगती है।
  • हाईवे से जुड़े ग्रामीण मागोर् पर स्पीड ब्रेकरों का निर्माण तकनीकी तौर पर सहीं नहीं किया गया है।

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  • हादसों पर विराम लगाने के लिए यह होना चाहिए
  • सीहोर से आष्टा के बीच स्वचालित ट्रेफिक सिग्लन सिस्टम होना चाहिए।
  • हाईवे किनारे बने ढाबों और दुकानों का अतिक्रमण हटना चाहिए।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में हाईवे पर होने वाली गतिविधियों पर लगाम लगानी चाहिए।
  • हाईवे से सीधे जुड़े ग्रामीण मार्गो को समानांतर तरीके से जोड़ा जाना चाहिए।
  • मार्ग पर ट्रेफिक नियमों, ओवर लौडिंग, पर सख्ती से लगाम लगना चाहिए।
  • रात में हाईवे पर खड़े ट्रकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होना चाहिए।

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यह प्वाइंट बन चुके हैं हादसों के डेंजर जोन

लसूडिया परिहार चौराहा
इंदौर-भोपाल हाईवे पर फंदा टोल टैक्स के पास और लसूड़िया परिहार चौराहे के पास आए दिन भीषण सड़क हादसे होते हैं। यहां अधिकतर हादसे वाहनों को ओवर टेक करने और क्रसिंग के दौरान होते हैं।

सैकड़ा खेड़ी और बिलकिसगंज जोड़ चौराहा
सैकड़ाखेड़ी और बिलकिसगंज जोड़ सड़क हादसों के लिए बदनाम है। एक्सप्रेस-वे से इन दोनों जोड़ से होते अंधी रफ्तार में वाहन निकलते हैं। वहीं दूसरी ओर बिलकिसगंज व सीहोर की ओर भी वाहन चालक तेजी से हाईवे को क्रास करते हैं। यहां डिवाइडरों के बीच पेड़ लगे होने के कारण क्रासिंग करने वाले वाहन चालकों को हाईवे पर आ रहे वाहन दूर से दिखाई नहीं देते हैं। इन दोनों जोड़ों के सीहोर और भोपाल से आने-जाने वाले वाहन क्रसिंग करते है। इस कारण यहां होने वाले अधिकांश हादसे दर्दनाक होते हैं।

क्रिसेंट और चौपाल सागर चौराहा
भोपाल इंदौर एक्सप्रेस वे पर क्रिसेंट चौराहे पर आए दिन हादसे होते हैं। इछावर और सीहोर रोड को क्रास कर निकले हाईवे के कारण यहां वाहन चालक तेज रफ्तार वाहनों की चपेट में आ जाते हैं। वहीं इसके आगे चौपाल सागर के पास भी चौराहे की बनावट तकनीकी तौर ठीक नहीं होने के कारण भी दर्दनाक हादसे होते हैं। यहां पर संकेतक बोर्ड नहीं होने के कारण यहां वाहन चालक भटक जाते हैं। यहां पर भी हादसों में कई लोगों की जान जा चुकी है।

जताखेड़ा जोड़
एक्सप्रेस-वे पर जताखेड़ा गांव कई छोटे-छोटे रास्ते आकर मिलते हैं। यहां पर अधिकतर हादसे ग्रमाीण क्षेत्रों की ओर से आने वाले दोपहिया वाहन चालकों और हाइवे से निकलने वाले चार पहिया वाहनों के बीच होते है। जिसमें दो पलिया वाहन चालक या तो गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं या फिर उनकी घटना स्थल पर ही मौत हो जाती है। एक अनुमान के मुताबिक यहां साल में करीब एक दर्जन लोगों की मौत सड़क हादसे में होती है।

सौंडा- कोठरी जोड़
यहां पर ग्रामीण दिनभर ग्रामीण हाईवे से को पैदल और दो पलिया वाहनों से क्रास करते देखे जाते हैं। आबादी वाले क्षेत्र होने के बाद भी यहां वाहनों की स्पीड़ 120 से ऊपर ही होती है। यही कारण है यहां साल में कई बड़े हादसे होते हैं।

कई जगह सड़क में भी तकनीकी खामियां
इंदौर- भोपाल एक्सप्रेस-वे पर जहां एक ओर संकेत बोर्ड और यातायात नियमों का पालन नहीं होने के कारण हादसे होते हैं। वहीं दूसरी ओर सड़क में भी तकनीकी खामियां है। कई जगह सड़क जहां ऊंची और नीची है। वहीं कुछ स्पॉट ऐसे भी जहां पर वाहन अचानक ही अनियंत्रित होकर दुर्घटना ग्रस्त हो जाते हैं। बीते एक साल ऐसे में कई मामले सामने आए हैं। जिसमें अचानक वाहन अनियंत्रित होकर सड़क से नीचे गिर गए। हाईवे पर ऐसे प्वाइंटों की भी जांच अभी तक नहीं हुई है।

एक साल में 125 मौते, 700 घायल
आंकड़ो में देखा जाए तो आष्टा से सीहोर के बीच बीते एक साल में 125 लोग सड़क हादसों में अपनी जान गवां चुके है। इतना ही नहीं सात सौ से अधिक लोगों को गंभीर चोटों से भी गुजरना पड़ा है। इस मार्ग पर अधिकांश हादसों का कारण हाईवे किनारे, ढाबों पर बेतरतीब खड़े वाहन, हाईवे पर आ पहुंची ग्रामीण बस्तियां और चौराहों पर संकेतकों का अभाव मुख्य कारण रहा है।

एक्सपर्ट व्यू
इंदौर-भोपाल एक्सप्रेस-वे पर बीते कुछ सालों से यातायात का दबाव बढ़ गया है। यहां पर वाहनों की स्पीड पर लगाम लगाया जाना चाहिए। साथ ही हाईवे को जोड़ने वाली सड़कों पर स्पीड ब्रेकेर के साथ संकेतक बोर्ड लगाए जाने चाहिए। साथ यातायात विभाग आबादी वाले क्षेत्रों में पहुंच कर लोगों को हाईवे पर पार करने नियमों के बारे में बता जागरूक करना चाहिए। डेंजर जाने वाले स्थानों पर ऑटोमेटिक ट्रैफिक सिस्टम लगाया जाना चाहिए और संकेतक बोर्ड लगाना चाहिए। इससे काफी हद तक दुर्घटनाओं पर काबू पाया जा सकता है।
मूलचंद्र राठौर, रिटायर एसडीओ, पीडल्यूडी, सीहोर

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