डायबिटीज-मोटापा पेशेंट के लिए गेहूं की नई वैरायटी

अतुल शुक्ला/जबलपुर। गेहूं की नई वैरायटी अब रोटी को ध्यान में रखकर नहीं, बल्कि ब्रेड, बर्गर और बिस्किट बनाने के लिए तैयार की जा रही हैं। जबलपुर का जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय और इंटरनेशनल ब्रीड रिसर्च सेंटर मैक्सिको (बीसा इंस्टीट्यूट) भी इसी को ध्यान में रखकर नई वैरायटी पर रिसर्च कर रहे हैं। मार्केट में इनकी मांग और दाम दोनों ज्यादा हैं और उत्पादन भी ज्यादा होता है। कुछ वैरायटी तैयार भी हो गई हैं, जिनकी टेस्टिंग वैज्ञानिकों ने खेतों में शुरू कर दी है। दरअसल, रोटी बनाने के लिए उपयोग में आने वाली किस्मों की उत्पादन लागत पिछले कुछ सालों में बढ़ी है। इसे खेत में पैदा करने से लेकर मंडी में बेचने तक का सफर भी आसान नहीं रहा। इससे किसान और वैज्ञानिकों ने इनसे मुंह मोड़ लिया है।

बड़े मार्केट को पसंद नहीं शरबती, सुजाता
प्रदेश कि पुरानी किस्म शरबती, लोकवन और सुजाता का मुख्य उपयोग रोटी के लिए होता है, लेकिन अब तक इन किस्मों का न तो उत्पादन स्तर बढ़ा है और न ही इनकी लागत कम हुई। लोकवन और शरबती में बीमारी और मौसम से लड़ने की ताकत भी पर्याप्त नहीं है। इसके अलावा बड़े मार्केट में इनके खरीददार भी नहीं हैं। यह मार्केट उन किस्मों को चाहता है, जो ब्रेड, बर्गर, बिस्किट बनाने के काम आ सकें, पौष्टिक भी हों। अधिक उत्पादन और ज्यादा दाम मिलने के कारण किसान भी इनका उत्पादन करने में रुचि दिखाएं।

ऐसे समझें रोटी और ब्रेड की वैरायटी को

1. किस्में
रोटीः शरबती, लोकवन, सुजाता। प्रदेश में रोटी के लिए प्रचलित
ब्रेड,बर्गरः एमपी 3566, एचडी 2967, एचडी 2864, एमपी 1203, एमपी 1202

2. सिंचाई
5 से 6 बार पानी देना जरूरी। गेरुआ, घुन और चूहों से नुकसान
3 से 4 बार सिंचाई। मौसम और बीमारियों से लड़ने में सक्षम

3. उत्पादन
28 से 32 क्विटंल प्रति हेक्टेयर तक
52 से 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक

4.बाजार
दाम 1400 से 2400 रुपए प्रति क्विटंल तक। बेचने के लिए किसान को मंडी जाना पड़ता है।
दाम 1600 से 3500 रुपए प्रति क्विंटल तक। कंपनियां सीधे खेत से खरीदने को तैयार।

नई वैरायटी की क्वालिटी
डायबिटीज, मोटापा के मरीजों के लिए उपयोगी
मल्टीविटामिन की मात्रा ज्यादा

मार्केट की मांग पर ही रिसर्च
इंटरनेशनल ब्रीड रिसर्च सेंटर मैक्सिको के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. एके जोशी बताते हैं कि बाजार में जिस किस्म के गेहूं की मांग होती है, अच्छा दाम मिलता है और ज्यादा उत्पादन होता है, किसान उसकी ही खेती करना चाहते हैं। हमारी रिसर्च का आधार भी यही मार्केट और किसान है।

MAS तकनीक पर जोर
जवाहरलाल नेहरू कृषि विवि के डॉ. आरएस शुक्ला के बताते हैं कि नई वैरायटी तैयार करने में 8 से 10 साल का वक्त लगता था, लेकिन बाजार की जरूरत को देखते हुए अब मार्कर असिस्टेड सेलेक्शन पद्घति से यह समय आधा हो गया है। इसमें कम पानी में उपज देने वाली वैरायटी को कम बीमारी वाली किस्में से क्रास कर उनके जींस ट्रांसफर करते हैं। ये पूरी तरह से डीएनए तकनीक पर काम करती है। इसमें 3 से 4 साल का वक्त लगता है।

ऐसे तैयार होती है नई वैरायटी
बीसा इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक निखिल सिंह बताते हैं कि नई किस्म ईजाद करने के लिए क्रास पॉलिनेशन का तरीका अपनाते हैं। इसमें जब गेहूं का पौधा एक निश्चित सीमा तक बढ़ जाता है, तब उसकी बाली के निचले हिस्से में दूसरी वैरायटी से निकाले गए पॉलिनेशन तत्व डालते हैं। इससे तीसरी वैरायटी तैयार होती है। इसके बाद चौथी वैरायटी के साथ तीसरी वैरायटी को क्रास करते हैं। यह तरीका एक साथ 500 से 2000 पौधों पर अपनाया जाता है, जिनमें से 5 से 10 में ही सफलता मिलती है।

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