भोपाल। देश के सबसे चर्चित व्यापमं घोटाले में एक अदद बड़ा जनआंदोलन करने में बिफल रही कांग्रेस राज्यपाल महोदय की गिरफ्तारी पर हाईकोर्ट के स्टे के बाद उनसे नैतिकता के नाम पर इस्तीफा मांग रही है।
प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता केके मिश्रा ने आज मप्र उच्च न्यायालय की जबलपुर खंडपीठ द्वारा राज्यपाल रामनरेश यादव के विरूद्व एसटीएफ द्वारा दर्ज एफआईआर को यथावत रखने के दिये गये अंतरिम आदेश के बाद राज्यपाल से नैतिकता के आधार पर इस्तीफे की मांग की है।
आज यहां जारी अपने बयान में मिश्रा ने कहा कि राज्यपाल द्वारा उनके विरूद्ध दर्ज एफआईआर रद्द किये जाने के अनुरोध को अस्वीकार कर उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि व्यापमं द्वारा आयोजित वनरक्षक भर्ती परीक्षा में एसआईटी की पहल पर जांच एजेंसी एसटीएफ द्वारा राज्यपाल के विरूद्ध दर्ज एफआईआर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत ही दर्ज की गई थी। हालाकि संविधान के परिपालन में जब तक वे राज्यपाल पद पर आसीन हैं, तब तक उनके विरूद्व अभियोजन और उनकी गिरफ्तारी नहीं की जा सकती है, परन्तु क्या भ्रष्टाचार से जुड़े इस महाघोटाले में आरोपित व्यक्ति संवैधानिक पद पर काबिज रह सकता है, विचारणीय प्रश्न है?
मिश्रा ने कहा कि चूंकि, राज्यपाल के विरूद्ध दर्ज एफआईआर अब उच्च न्यायालय के फैसले के बाद यथावत रखी गई है और आरोपित राज्यपाल प्रदेश के संवैधानिक प्रमुख और प्रथम व्यक्ति के रूप में काबिज हैं, पद पर काबिज रहते हुए जांच एजेंसी एसटीएफ उनसे पूछताछ करने की हिम्मत भी नहीं जुटा सकेगी। यही नहीं उनके पद पर बने रहते हुए साक्ष्य/ दस्तावेजों में भी छेड़छाड़ की पर्याप्त संभावनाएं हैं।
जैसा कि इससे जुड़े अन्य प्रकरणों में सीडीआर और एक्सल सीट में प्रभावी लोगों को बचाने के प्रमाण खुलेतौर पर सामने आ चुके हैं। इस लिहाज से राज्यपाल को नैतिकता के नाते अपना इस्तीफा दे देना चाहिए, यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो केंद्र सरकार को उन्हें इस्तीफा देने के निर्देश देना चाहिए और यदि केंद्र सरकार भी उन्हें संरक्षित करते हुए ऐसा नहीं करती है तो महामहिम राष्ट्रपति को संवैधानिक मूल्यों के परिपालन और उनकी रक्षा के लिए तत्काल प्रभाव से राज्यपाल को बर्खास्त कर देना चाहिए।