लो फिर आ गये हम यूँ ही झगड़ते झगड़ते

Bhopal Samachar

राकेश दुबे@प्रतिदिन। अगर जनता दल का कुनबा जुड़ गया  तो विलय के बाद भी लोकसभा में नई पार्टी की सदस्य संख्या सिर्फ पंद्रह होगी, पर राज्यसभा में तीस सदस्यों के साथ वह एक बड़ी ताकत होगी, और इस सदन में भाजपा के अल्पमत में होने के कारण इस तथ्य की अहमियत और बढ़ जाती है। फिर नई पार्टी बीजू जनता दल और तृणमूल कांग्रेस जैसी पार्टियों को अपने साथ एक मोर्चे में लाने में कामयाब हो गये तो भी इस नई पार्टी की अपनी सीमाएं भी अभी से उजागर हैं।

मुलायम सिंह, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, शरद यादव और देवगौड़ा मिल कर भी कोई नया आकर्षण पैदा कर पाएंगे, कहना मुश्किल है। फिर बिहार को छोड़ दें, तो अपने प्रभाव वाले राज्यों में नए दल की ताकत में कोई इजाफा नहीं होगा, यानी विलय के बाद भी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक में स्थिति पहले जैसी ही रहने वाली है। इन नेताओं ने संकेत दिया है कि नई पार्टी संघीय ढांचे पर गठित होगी, यानी राज्यों में केंद्रीय नेतृत्व का हस्तक्षेप नहीं होगा।

ऐसा लगता है कि केंद्र में अधिक प्रभावी भूमिका निभाने की मंशा विलय के फैसले के पीछे ज्यादा बड़ी वजह रही है। मोदी और भाजपा की बढ़ी हुई ताकत का भय भी एक प्रमुख कारण रहा होगा। नए दल का पहला बड़ा इम्तहान बिहार में होगा, जहां कुछ महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। उपचुनावों में दस में से छह सीटें जीत कर राजद और जद (एकी) के मेल-मिलाप ने पहले ही अपना असर दिखा दिया है।

पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के बीच मजबूत आधार के बल पर नई पार्टी बिहार में भाजपा के लिए कड़ी चुनौती साबित हो सकती है और अगर उसने बिहार की बाजी जीत ली तो यह भाजपा के लिए बहुत बड़ा झटका होगा, जो एक के बाद एक कई राज्यों को फतह करने के बाद दिल्ली में बुरी तरह मात खा चुकी है। बहरहाल, प्रस्तावित पार्टी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में मुलायम सिंह का चुनाव कर नेतृत्व की गुत्थी मोटे तौर पर सुलझा ली है।साथ ही लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की और उनकी नजरे जमी है|

फिर भी उसके सामने दोहरी चुनौतियां होंगी, बाहरी भी और आंतरिक भी। उसे ऐसी कार्यप्रणाली विकसित करनी होगी जिसमें निजी अहं और स्वार्थ हावी न हो पाएं। फिर नीतियों, कार्यक्रमों और आचरण के लिहाज से उसे अधिक विश्वसनीय होना होगा। सांप्रदायिकता-विरोध और आर्थिक नीतियों को जनपक्षधर बनाने की मांग इस वक्त प्रतिपक्ष की राजनीति के दो बड़े तकाजे हैं। इन तकाजों को पूरा करते हुए ही बनने वाली पार्टी  को अपनी प्रासंगिकता साबित करना होगी।

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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