सरस्वती नदी का प्रादुर्भाव और इनके दर्द

राकेश दुबे प्रतिदिन। सरस्वती नदी भी ऐसा मुद्दा है, जिसके बारे में वामपंथियों का मानना है कि यह हिंदुत्ववादियों का षड्यंत्र है। इसके विपरीत दक्षिणपंथी यह मानते हैं कि सरस्वती को वे फिर से बहाकर ही दम लेंगे। इस लड़ाई में वह रचनात्मक और निष्पक्ष ज्ञान की दृष्टि खो जाती है,  जिसकी देवी स्वयं सरस्वती हैं।

यमुना नगर जिले के मुगलवाली गांव में जमीन में आठ फीट नीचे ही मीठे पानी की धारा मिली है। भूगर्भ विज्ञानी मानते हैं कि जहां खोदा गया है, वहां जमीन के अंदर मिट्टी-पानी इन इलाकों के मिट्टी-पानी से अलग है, इसलिए बहुत मुमकिन है कि यह प्राचीन सरस्वती की ही धारा हो।

सरस्वती का इस इलाके में होना ऐतिहासिक रूप से एक बेहद महत्वपूर्ण घटना है और इस खोज से भारतीय इतिहास की कई महत्वपूर्ण खोई हुई कड़ियां फिर से जुड़ सकती हैं। लेकिन हरियाणा सरकार जो कर रही है, वह अलग है। वह प्राचीन सरस्वती का पुनरुद्धार करके उसकी धारा कुरुक्षेत्र तक ले जाना चाहती है।

जाहिर है, बिना किसी बड़े व स्थायी स्रोत के यह संभव नहीं है, इसलिए यह योजना बहुत सफल होती नहीं दिखती, लेकिन इससे यह हो सकता है कि जो पानी 4,000 साल या इससे भी ज्यादा वक्त से जमीन के नीचे सुरक्षित है, वह हम इस्तेमाल कर लें। इसलिए जरूरी है कि ऐसा काम विशुद्ध ऐतिहासिक और पुरातात्विक नजरिये से किया जाए, ताकि इसका फायदा ज्ञान और समझ के विस्तार के रूप में हो।

जिस तरह के ऐतिहासिक, पुरातात्विक और भूगर्भशास्त्रीय प्रमाण मिले हैं, उनसे यह बात तो काफी हद तक संभव लगती है कि वैदिक सरस्वती इसी क्षेत्र की विशाल नदी रही हो, जो भूगर्भीय हलचलों की वजह से विलुप्त-प्राय हो गई हो। यह विचार एक शताब्दी से भी ज्यादा पुराना है कि हाकरा घघ्घर नदी ही पुरानी सरस्वती है, जो कभी विशाल नदी थी और हिमालय से शुरू होकर राजस्थान में समुद्र में मिल जाती थी। किसी दौर में राजस्थान और गुजरात का रेगिस्तानी इलाका हरा-भरा था। भूगर्भीय हलचलों से यह इलाका धरती के नीचे आ गया और बाद में रेगिस्तान हो गया। भूकंपों की वजह से सरस्वती का अपने उद्गम से संबंध कट गया और वह सूख गई।

दूसरी ओर, सरस्वती के जल स्रोतों की वजह से यमुना ज्यादा बड़ी नदी बन गई। इसमें कई सवाल अब भी अनसुलझे हैं। इस बारे में कई अवधारणाएं मौजूद हैं। लेकिन यह सच है कि राजस्थान और हरियाणा में कई भूगर्भीय जल धाराएं मौजूद हैं, जो किसी विशाल नदी के वहां होने की ओर इशारा करती हैं। पिछली राजग सरकार ने सरस्वती पर शोध करने के लिए एक परियोजना पर काम शुरू किया था, लेकिन सन 2004 में जब संप्रग सरकार आई, तो उसने यह परियोजना बंद कर दी। जाहिर है, तब सरस्वती की खोज विचारधारा की लड़ाई की शिकार हो गई। यह खोज हो सके, इसके लिए जरूरी है कि वैज्ञानिक तरीके से यह काम हो और विचारधारा इसमें आड़े न आए। सरस्वती तो मौजूद है, लेकिन अगर हम उसे अपने-अपने रंग की पट्टी आंखों पर बांधकर खोजेंगे, तो वह कैसे मिलेगी?

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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