राकेश दुबे@प्रतिदिन। लगभग 80 प्रतिशत व्यपारियों का मानना है कि भ्रष्टाचार अभी भी फैला हुआ है, जबकि 52 प्रतिशत का मानना है कि कारोबार में टिके रहना है तो बिजनस डील पाने के लिए तोहफे देने ही होंगे। 27 प्रतिशत कारोबारियों ने अफसरों की हथेली गरम करने के लिए कैश पेमेंट को भी सही माना। 35 प्रतिशत लोगों का तो यह मानना है कि भ्रष्टाचार रोकने को लेकर लागू की जा रही नीतियों से मार्केट में होड़ कर पाने की उनकी क्षमता पर बुरा असर पड़ेगा। 57 प्रतिशत ने कहा कि रेग्युलेशन बढ़ने से उनके बिजनस के विस्तार और सफलता के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं। इस सर्वे में यूरोप, मिडल ईस्ट, भारत और अफ्रीका की कंपनियों से जुड़े करीब 3800 लोगों के साक्षत्कार लिए गये |
व्यपारियों को लगता है कि सही रास्ते से चलने पर उनका काम देर से होगा, वे अपने प्रतिद्वंद्वी से पिछड़ जाएंगे। लिहाजा वे संबद्ध अधिकारी को तोहफा या रिश्वत देकर जल्दी काम करा लेना चाहते हैं। उनकी मजबूरी का फायदा अफसर-कर्मचारी वर्ग उठाता है। दोनों में एक मौन सहमति बनी हुई है। कारोबारी रिश्वत को निवेश का हिस्सा मानते हैं। लेकिन इस खर्च को वे अपने प्रॉडक्ट की कीमत बढ़ाकर उपभोक्ता पर लाद देते हैं। कारोबार से जुड़ी प्रक्रियाएं सरल और पारदर्शी हों, उनमें सरकारी कर्मचारियों की भूमिका सीमित हो, सिंगल विंडो क्लीयरेंस हों, तो रिश्वत देने की नौबत नहीं आएगी।
अनुभव बताते हैं कि तकनीक के इस्तेमाल से भी चीजें बदलती हैं। मोदी सरकार द्वारा वित्तीय गड़बड़ी को गंभीर अपराध की श्रेणी में डालना एक अहम कदम है। लेकिन इसने अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की प्रक्रिया को और जटिल बना दिया है। इससे लोगों में यह संदेह पैदा हो रहा है कि सरकार किसी भी कीमत पर अपने अफसरों को बचाना चाहती है। मुश्किल यह है कि लोगों के भीतर अबतक यह विश्वास ही नहीं पैदा हो सका है कि हमारे देश से भ्रष्टाचार दूर भी हो सकता है। यह यकीन तभी पैदा होगा जब राजनीतिक नेतृत्व साफ नीयत और दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ भ्रष्टाचार से लड़ता हुआ दिखे।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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