अब प्रॉपर्टी डीलिंग में कैश लेनदेन प्रतिबंधित

भोपाल। एक जून से प्रॉपर्टी की खरीदी-बिक्री पर 20 हजार रुपए से ज्यादा का नकद लेन-देन नहीं हो पाएगा। केंद्र सरकार ने आम बजट में हुई घोषणा को अमल में लाते हुए आयकर अधिनियम 1961 में इसके लिए जरूरी बदलाव कर दिए हैं। ये बदलाव एक जून से प्रभावी होंगे। टैक्स विशेषज्ञों के अनुसार इन नियमों का उद्देश्य रियल एस्टेट सेक्टर में होने वाले तमाम अवैध लेन-देन को रोकना है। हालांकि यह बाध्यता केवल गैर कृषि भूमि के सौदों के लिए ही है। कृषि भूमि की खरीद-फरोख्त में इस तरह के बंधन नहीं हैं।

प्रॉपर्टी विशेषज्ञ मनोज सिंह मीक कहते हैं, जब भी कोई नया नियम बनता है उसके बारे में लोगों को जानकारी देर से होती है। इसके चलते उन्हें कई बार मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। प्रॉपर्टी रजिस्ट्री में टीडीएस काटने की बाध्यता वाले नियम के दौरान भी यही हुआ था। बेहतर हो इस बार लोग पहले से ही नए नियमों से अवगत हो जाएं। मीक का मानना है कि इस तरह के नियमों का व्यापक असर होगा। 

अधिनियम में ये हैं प्रमुख बदलाव
आयकर अधिनियम 1961 की धारा 269एसएस के तहत कोई भी व्यक्ति नकद में 20 हजार रुपए से ज्यादा का लोन और डिपॉजिट नहीं ले सकता। एक जून से इस सेक्शन में यह भी जोड़ दिया गया है कि प्रॉपर्टी सौदों में काेई भी व्यक्ति किसी से 20 हजार रुपए से अधिक की राशि नकद नहीं ले सकता।

अधिनियम की धारा 269टी के मौजूदा प्रावधानों के तहत कोई भी व्यक्ति लिए गए लोन पर 20 हजार रुपए से अधिक की राशि नकद में नहीं लौटा सकता। इस धारा में 1 जून से जोड़ा जा रहा है कि प्रॉपर्टी सौदे रद्द होने की स्थिति में 20 हजार रुपए से अधिक की राशि चेक, एनईएफटी और डिमांड ड्रॉफ्ट के जरिए ही लौटाई जा सकती है।

ऐसे रुकेगा अवैध लेन-देन 
30 लाख से अधिक की सभी रजिस्ट्री की जानकारी पंजीयन विभाग एनुअल इंफॉरमेशन रिटर्न एआईआर के जरिए इन्कम टैक्स विभाग को देता है। जहां ई-रजिस्ट्री शुरू हो गई हैं, वहां आयकर विभाग इंटेलीजेंट ब्यूरो स्वयं ही इस तरह की रजिस्ट्री पर नजर रखता है। जैसे ही सौदे के लेन-देन के सोर्स में गड़बड़ी नजर आएगी, आयकर विभाग तुरंत एक्शन लेगा।

कम कीमत पर रजिस्ट्री नहीं 
किसी प्रॉपर्टी की कीमत कलेक्टर गाइडलाइन से 20 लाख रुपए है और रजिस्ट्री 15 लाख रुपए कीमत मानकर हो रही है तो ऐसे में 5 लाख रुपए क्रेता और विक्रेता दोनों की आय में जोड़ दिए जाते हैं। टैक्स विशेषज्ञ सुनीता बाहेती कहती हैं लोग गाइडलाइन से कम कीमत पर रजिस्ट्री कराकर खुश होते हैं कि उन्होंने स्टाम्प शुल्क बचा लिया, लेकिन जब उनके कर निर्धारण में इसका उल्लेख नहीं होता तो आयकर विभाग उनके खिलाफ रिकवरी नोटिस निकाल देता है। 

कानूनों का कड़ाई से पालन करवाए सरकार
इस नियम का शहर के प्रॉपर्टी कारोबार पर असर पड़ेगा। हालांकि इससे प्रॉपर्टी में होने वाले अवैध लेन-देन पर रोक लगेगी, लेकिन इस रोकथाम के लिए पहले ही कानून बने हुए हैं। सरकार उन कानूनों का कड़ाई से पालन करवाए। इस तरह की आर्टिफिशन इंस्ट्रक्शन की जरूरत क्यों पड़ रही है‌‌?
-राजेश जैन, आयकर विशेषज्ञ

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