राकेश दुबे@प्रतिदिन। कोई कुछ भी दावा करे और आज भाजपा में सब एक ही दावा कर रहे हैं कि “मेरी कमीज़ उसकी कमीज़ से सफेद” दुर्भाग्य से ये आत्ममुग्ध नेता न तो अपनी कमीज़ देख रहे हैं और न पहले वाले की कमइज ही देखना चाहते हैं |अगर मोदी सरकार के पहले साल की तुलना मनमोहन सरकार के पहले साल (2009-10) से करेंगे तो दोनों की उपलब्धियों में ज्यादा अंतर नहीं दिखेगा। कहीं पर मनमोहन सरकार के अच्छे काम दिखेंगे तो कहीं पर मोदी सरकार के।
औद्योगिक उत्पादन, अक्षय ऊर्जा और जीडीपी की वृद्धि दर के मोर्चे पर मनमोहन सरकार मोदी सरकार की तुलना में बहुत बेहतर प्रदर्शन कर रही थी। अगर आज औद्योगिक उत्पादन की विकास 3.5 प्रतिशत है तो मनमोहन सरकार के समय में 10.4 प्रतिशत थी। इसी तरह जीडीपी की दर आज 7.56 प्रतिशत है तो उस समय 8.59 प्रतिशत थी। बिजली उत्पादन और कोयला उत्पादन में मनमोहन सरकार ने क्रमश 7.7 प्रतिशत और 8.1 प्रतिशत की दर हासिल की थी तो मोदी सरकार ने 10 प्रतिशत और 8.2 प्रतिशत की दर हासिल की है |
नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में मोदी ने मनमोहन सिंह के 10.6 प्रतिशत के मुकाबले बीस प्रतिशत अर्थात दोगुनी दर प्राप्त की है, जो कि मनमोहन सिंह की ही मेहनत और जोखिम के साथ में मोदी की मेहनत भी शामिल है, लेकिन उसकी नींव तो मनमोहन सिंह ने ही अपनी सरकार को दांव पर रख कर डाली थी। उस समय वैश्विक आर्थिक मंदी से देश को संभाल ले जाने वाले मनमोहन सिंह सिंग इज किंग थे।
यूपीए सरकार और मोदी सरकार का फर्क यही है कि पार्टी और सरकार के घालमेल के कारण मनमोहन सिंह उन उपलब्धियों का श्रेय नहीं ले पाए , और मोदी श्रेय किसी और को लेने नहीं दे रहे हैं । वे देश, दुनिया, कॉरपोरेट, किसान, मजदूर और मध्यवर्ग सभी को यही आभास दे रहे हैं कि सारा काम वही कर रहे हैं। हालांकि भाजपा समर्थक बौद्धिक और राजनेता अरुण शौरी ने इसका श्रेय उनके साथ अमित शाह और अरुण जेटली को भी देने की कोशिश की थी |पर उनकी बात सबको नागवार गुजरी । विदेश नीति से लेकर किसान नीति तक हर चीज को अपने ढंग से चलाना मोदी की आदत है और पिछली सरकार से इस सरकार का यही फर्क उन्हें चर्चा में रखे हुए है और यही उनकी आलोचना का कारण है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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