पढ़िए मोदी के 'एक साल बेमिसाल' पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया

Bhopal Samachar
भोपाल। ‘‘साल 2014  में श्री नरेंद्र मोदी ‘अच्छे दिन’, सुशासन, आसान कारोबार, जीडीपी में 10 प्रतिशत बढ़ोत्तरी, 5 साल में 10 करोड़ रोजगार पैदा करना, डिजिटल इंडिया, किसान को फसल की कीमत में (लागत$50 प्रतिशत का मुनाफा), कालाधन वापस लाने व हर भारतीय के खाते में 15 लाख रु. जमा करवाने का निश्चय, महंगाई कम करने तथा एक नई अर्थव्यवस्था के गठन के सपने दिखाकर 2014 में सत्ता में आए थे। 

‘सुर्खियां समेटने वाली सरकार’ बनाम ‘निवेश समेटने वाली सरकार’
श्री नरेंद्र मोदी ने अर्थशास्त्रियों और भारतीय उद्योग को नए ‘आर्थिक ब्लूप्रिंट’ का सपना दिखाया था। एक साल बीत चुका है। ‘आर्थिक ब्लूप्रिंट’ ‘सुर्खियां आकर्षित करने वाला’ प्रिंट बन गया है। ‘व्यक्तिगत प्रचार प्रसार’, ‘ईवेंट मैनेज़मेंट’ और ‘लुभावने नारों’ की कभी न मिटने वाली चाह ने मोदी सरकार को ‘सुर्खियां आकर्षित करने वाली’ सरकार बना दिया है, न कि ‘निवेश बढ़ाने वाली सरकार’।

एक मजबूत अर्थव्यवस्था का किया कांग्रेस ने निर्माण  
वैश्विक मंदी और भाजपा के नकारात्मक अभियान के बावजूद कांग्रेस की यूपीए सरकार के 10 सालों (2004 से 2014) के दौरान भारत में सर्वाधिक आर्थिक वृद्धि हुई। भारतीय अर्थव्यवस्था 7.6 प्रतिशत के औसत से बढ़ी। प्रतिव्यक्ति आय 2004 में 24,143 रु. से तीन गुना बढ़कर 2014 में 68,747 रु. हो गई। उद्योग में 7.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई। सेवा क्षेत्र 9.5 प्रतिशत की दर से बढ़ा और कृषि में 4.1 प्रतिशत की विकास दर दर्ज की गई। 

विदेशी मुद्रा भंडार 2003-04 में 113 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से बढ़कर 2013-14 में 300 बिलियन अमेरिकी डाॅलर हो गया। 2004-14 के बीच भारत में 318 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का विदेशी सीधा निवेश (एफडीआई) प्राप्त हुआ। भारतीय निर्यात प्रतिवर्ष 16 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से बढ़कर 31.5 बिलियन अमेरिकी डाॅलर हो गया। ग्रामीण इलाकों में औसत आय में प्रतिवर्ष 17.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। अनाज का उत्पादन 213 मिलियन टन से बढ़कर 263 मिलियन टन हो गया और कृषि निर्यात 2002-03 के 7.5 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से बढ़कर 2013-14 में 42.6 बिलियन अमेरिकी डाॅलर हो गया। विभिन्न अधिकार आधारित कानूनों और योजनाओं में सभी को सम्मिलित और समावेशी विकास करके सामाजिक सुरक्षा के घेरे में लाया गया। इसके परिणामस्वरूप पिछले 10 सालों में 14 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने में अभूतपूर्व सफलता मिली।   

अवसर गंवाए, मौके खोए- देश को वित्तीय दिशाहीनता की ओर धकेला 
देश को विकास के मार्ग पर ले जाने के लिए मोदी सरकार के पास न तो ‘आर्थिक दूरदृष्टि’ है, और न ही ‘राजस्व संबंधी दिशा’ और ‘वित्तीय समझदारी’। वरिष्ठ भाजपा नेता और श्री मोदी के सलाहकार श्री अरुण शौरी ने भी स्पष्ट रूप से कहा है, कि सरकार ‘आर्थिक तौर से दिशाहीन’ है। इसका वर्णन निम्न बिंदु करते हैं:-

(क) काॅर्पोरेट और उद्योग मोदी के जादू में विश्वास खो रहे हैं 
‘वाकपटुता’ के मुकाबले मोदी सरकार की ‘वास्तविक आपूर्ति’ में इंडिया इंक का विश्वास खो रहा है। इंडिया इंक चाहता है कि श्री नरेंद्र मोदी ‘भाषण’ देने की बजाए ‘ठोस काम’ करना प्रारंभ करें। 


2014-15 में आठ प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों (कोयले, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाईनरी, उर्वरक, बिजली, स्टील) में वृद्धि 3.5 रही, जो 2009 के बाद सबसे कम है। दिसंबर की तिमाही में सीमेंट उद्योग में शून्य वृद्धि दर्ज की गई और कुल लाभ 26 प्रतिशत घट गया। मार्च 2015 में सीमेंट उद्योग के उत्पादन में 4.2 प्रतिशत की कमी आई। इंजीनियरिंग कंपनियों में बिक्री में शून्य वृद्धि दर्ज की जा रही है। रियल इस्टेट सेक्टर में नकारात्मक विकास हो रहा है। इंडेक्स आॅफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (आईआईपी) मार्च में केवल 2.1 प्रतिशत बढ़ा। 
पिछले साल के मुकाबले 2015 में निर्यात में 11 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है। 
मार्च 2015 की तिमाही में 315 बड़ी कंपनियों की कुल बिक्री में 2014 के मुकाबले 7 प्रतिशत की कमी आई है। यहां तक कि ‘कच्चे माल और बिक्री का अनुपात’ भी मार्च 2015 में 40 प्रतिशत रहा, जो पिछले दो सालों में सबसे कम है। 
उद्योग गंभीर चिंता जाहिर कर रहे हैं। श्री दीपक पारिख, चेयरमैन, एचडीएफसी बैंक ने हाल ही में कहा, कारोबार आसान बनाने के लिए ‘‘जमीनी स्तर पर कोई बदलाव नहीं आया है’’। एक महत्वपूर्ण विदेशी निवेशक श्री जिम रोजर्स ने कहा, ‘‘मेरे पास अभी भी भारतीय शेयर हैं। मैं सोच रहा हूं, कि मैं इन्हें रखूं या नहीं, क्योंकि एक साल तक कोई कार्य नहीं हुआ है, और लगता है, कि अब आगे भी कुछ नहीं होगा।’’
उद्योग की दो नई चिंताएं सामने आई हैं। पहली है, पुरानी तारीखों पर टैक्स की मांग के रूप में ‘टैक्स आतंकवाद’। विदेशी संस्थागत निवेशकों के शोरगुल के कारण इसके लिए एक कमेटी का गठन कर दिया गया है। दूसरी चिंता है, भाजपा व संघ परिवार के अनियंत्रित व बेलगाम नेताओं की जो एक पूर्वनिर्धारित एजेंडा के तहत् सामाजिक भाईचारे को तोड़ने में लगे हैं, इसके कारण निवेशकों को गलत संदेश मिल रहा है। 

(ख) रोजगार का नाश
2014 के आखिर में ‘वेतन बढ़ोत्तरी’ गिरकर मात्र 3.8 प्रतिशत रह गई, जो जुलाई 2005 के बाद सबसे कम है। यह उपभोक्ता मुद्रास्फीति से काफी कम है। प्रमुख मजदूरी आधारित क्षेत्रों- टेक्सटाईल, लेदर, मेटल, आॅटोमोबाईल, जेम्स एवं ज्वेलरी, परिवहन, आईटी-बीपीओ, हैंडलूम और पाॅवरलूम में मंदी दिखने लगी है।
साल में दो करोड़ नौकरियां देने के वायदे के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार के पहले साल में केवल 17.5 लाख नौकरियां निर्मित हुईं। 
फैक्ट्रीज़ एक्ट, अपरेंटीसेस एक्ट और अन्य श्रम कानूनों़ को कमजोर बनाने के कारण मोदी सरकार के खिलाफ देशभर में प्रदर्शन किए जा रहे हैं। प्रदर्शन करने वाले विरोधी यूनियनों में भाजपा द्वारा स्पाॅन्सर्ड भारतीय मजदूर संघ भी है। 

(ग) मेक इन इंडिया का छलावा
मोदी सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ को एक राजनीतिक नारे के तौर पर लगातार इस्तेमाल किया है। परंतु मोदी सरकार ने उद्योगों को उत्पादन में अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में बराबरी का दर्जा दिलवाने, इनवर्टेड टैक्स संरचना को बदलने, कच्चे माल की लागत पर नियंत्रण करने एवं लाॅजिस्टिक्स की स्थिति सुधारने बारे एक भी कदम नहीं उठाया। इस कारण ‘मेक इन इंडिया’ एक नारा बनकर रह गया है। 
जनवरी 2015 में निर्यात 23.88 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक गिर गया है, जो कि एक वर्ष पहले के 26.89 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के निर्यात के आंकड़े से कम है। यहां तक कि कृषि क्षेत्र में गेंहूं, चावल और मक्का का निर्यात साल 2014-15 में 29 प्रतिशत या 135 लाख टन के बराबर घट गया है। दूसरी वस्तुओं जैसे चाय, काॅफी, तम्बाकू, मसाले आदि में भी नकारात्मक विकास हुआ है। यहां तक कि कुछ प्रमुख निर्यात की वस्तुएं जैसे मक्की, धागा, फार्मा, केमिकल्स और जेवरात सेक्टर का प्रदर्शन भी काफी खराब रहा है।
जीएसटी बिल में 1 प्रतिशत इंटर-स्टेट टैक्स का प्रस्ताव आर्थिक मुद्दों की जानकारी न होने को दर्शाता है। यह जीएसटी के मूलभाव के विरुद्ध है और यह ‘मेक इन इंडिया’ पर विपरीत प्रभाव डालेगा। 
मेक इन इंडिया की एक सबसे बड़ी असफलता मल्टी बिलियन डाॅलर राफेल फाईटर जेट सौदा है, जो श्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस की सरकार के बीच हाल में ही हुआ है। इससे पहले इसी सौदे को लेकर कांग्रेस सरकार ने एक पारदर्शी बिडिंग प्रक्रिया के द्वारा तीन साल से अधिक समय तक चर्चा की थी। इसके तहत फ्रांस से केवल 18 राफेल फाईटर विमान खरीदे जाने थे और बाकी के 108 विमानों का निर्माण ‘तकनीक के हस्तांतरण’ समझौते के द्वारा हिंदुस्तान एयरोनाॅटिक्स लिमिटेड में किया जाना था। मोदी सरकार ने स्थापित ‘डिफेंस खरीदी प्रक्रिया’ और ‘रक्षा अधिग्रहण काउंसिल’ को नकार कर एकतरफा निर्णय लेते हुए फ्रांस से 36 राफेल फाईटर विमानों को खरीदने का निर्णय किया है। इसमें तकनीक के हस्तांतरण या एचएएल के द्वारा भारत में उनके निमार्ण का कोई उल्लेख नहीं किया गया। मोदी सरकार ने करोड़ों डाॅलर की इस सबसे बड़ी फाईटर विमान निर्माण डील को ‘मेक इन इंडिया’ से ‘मेक इन फ्रांस’ में तब्दील कर दिया। 

(घ) ग्रामीण अर्थव्यवस्था संकट में और जनता निराश
भारत की जनसंख्या का 62.5 हिस्सा ग्रामीण क्षेत्र में है, जिसमें कुल 49 प्रतिशत लोग कार्य करते हैं। यह जीडीपी में 17 प्रतिशत का योगदान देता है। ‘ग्रामीण खपत’ विकास का एक सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो देश की अर्थव्यवस्था में 35 प्रतिशत का योगदान देता है। मोदी सरकार के द्वारा नीतियों को पलट देने से खेत खलिहान में भारी निराशा छाई है। कांग्रेस शासन के समय ग्रामीण वेतन की दर 17.5 प्रतिशत से बढ़ी, जो अब घटकर मात्र 3 प्रतिशत रह गई है। कृषि क्षेत्र का विकास भी 2013-14 में 4.7 प्रतिशत के मुकाबले 2014-15 में मात्र 1.1 प्रतिशत रह गया है (आर्थिक सर्वे 2015)। कुल अनाज उत्पादन साल 2013-14 में 2650 लाख मीट्रिक टन के मुकाबले 2014-15 में 2500 लाख मीट्रिक टन तक रह गया है। कृषिजगत में कुल कैपिटल फाॅर्मेशन 2012-13 में कृषि जीडीपी का 18.3 प्रतिशत था, जो साल 2014-15 में घटकर 14.5 प्रतिशत हो गया।
श्री नरेंद्र मोदी ने लागत$50 प्रतिशत पर न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने का वायदा किया था। मोदी सरकार द्वारा अक्टूबर 2014 में निर्धारित एमएसपी में (-) 0.3 प्रतिशत का परिवर्तन कर दिया। यह 38 सालों में नीचे से सबसे अधिक कमी के सातवें पायदान पर था। गैर-एमएसपी फसलों की कीमतें भी 100 प्रतिशत तक औंधे मुंह गिरी हैं। इसके अलावा बारिश/ओलावृष्टि के कारण 200 लाख हेक्टेयर से अधिक रबी फसलों को 40,000 करोड़ रु. से अधिक का नुकसान हुआ है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था भारी संकट में हैं। 
सबसे दुखद बात यह है, कि सरकार का कृषि क्षेत्र में निवेश कम हुआ है। राष्ट्रीय कृषि योजना में 7426 करोड़ रु. की कटौती की गई है। इसी तरह ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना’ में 8156 करोड़ रु. की कटौती की गई है। 

(य) रेलभाड़े में वृद्धि - रेलवे, उद्योग व ग्रामीण अर्थव्यवस्था को चुनौती
पिछले 12 महीनों में मोदी सरकार ने रेलभाड़े में दो बार वृद्धि की है। 21 जून 2014 को 6.5 प्रतिशत वृद्धि और 1 अप्रैल 2015 को सीमेंट, कोयला, अनाज/दाल, यूरिया, केरोसीन, एलपीजी भाड़े में 10 प्रतिशत की वृद्धि और आॅयरन एवं स्टील में 6.3 प्रतिशत (0.8 प्रतिशत से बढ़ाकर) की वृद्धि की गई। इसके कारण कच्चे माल की कीमत में बढ़ोत्तरी होगी, जो रेलवे, उद्योगों अैर किसानों को बुरी तरह से प्रभावित करेगी।
मोदी सरकार ने नवबंर 2014 से ‘पोर्ट गूड्स’ के लिए 10 प्रतिशत काॅन्जेसशन सरचार्ज लागू किया है।’ माल ढ़ुलाई दरें भी 27 प्रतिशत तक बढ़ा दीं। इन सब बढ़ोत्तरियों के चलते निर्यात लगातार घट रहा है। 

(र) सर्विस टैक्स (सेवा कर) में वृद्धि- महंगाई में इजाफा 
मोदी सरकार ने 1 जून 2015 से सर्विस टैक्स 12.36 प्रतिशत से बढ़ाकर 14 प्रतिशत कर दिया है। इसके अतिरिक्त 2 प्रतिशत ‘स्वच्छ भारत अभियान कर’ भी लिया जाएगा। इसके कारण सेवाकर की कुल राशि 166 प्रतिशत का हो जाएगी। इससे पूरा सर्विस सेक्टर प्रभावित होगा। इसके अलावा यह कर मध्यम वर्ग और निम्नमध्यम वर्ग पर बुरा प्रभाव डालेगा, जिसके चलते उनकी खरीद की क्षमता और कम हो जाएगी।

(ल) आहार की कीमतें आसमान को छू रही हैं
श्री नरेंद्र मोदी ने ‘प्रोटीन रिवाॅल्यूशन’ का नारा दिया था। इसके मुताबिक दालें हर भारतीय को उपलब्ध कराई जाएंगी। लेकिन दालों, फलों और सब्जियों की कीमतें काफी अधिक हो रही हैं और इन्हें आम आदमी की पहुंच से बाहर ले जा रही हैं। बढ़ी कीमतों के कारण खरीदी की क्षमता कम हो गई है और अर्थव्यवस्था का संकुचन हुआ है। कीमतों में वृद्धि का चार्ट यहां संलग्न है। 

(व) पेट्रोल की कीमतों में बार बार वृद्धि- आम आदमी भ्रमित है
1 मई और 15 मई 2015 को दो क्रमानुगत वृद्धि के बाद मोदी सरकार ने पेट्रोल की कीमतों में 7.09 रु. प्रति लीटर और डीजल में 5.08 रु. प्रतिलीटर की वृद्धि कर दी है। मोदी सरकार के द्वारा 12 महीनों में कच्चे तेल पर एक्साईज़ चार बार बढ़ाकर व आयात शुल्क में 2.5 प्रतिशत से 7.5 प्रतिशत तक बढ़ने के कारण अर्थव्यवस्था पर इस महंगाई का दबाव स्पष्ट दिखाई देता है। 
सच्चाई यह है, कि 26 मई 2014 (http://pib.nic/newsite/) को जिस दिन मोदी सरकार बनी, भारतीय कच्चे तेल की कीमत 6318.76 प्रति बैरल थी। 16 मई 2015 (http://pib.nic/newsite/) को यह मात्र 4141.94 रु. प्रति बैरल रह गई। इसका अर्थ है, कि कच्चे तेल की कीमत में 34 प्रतिशत की कमी हुई है। इसके विपरीत सरकार ने पेट्रोल की कीमतों में 7 प्रतिशत और डीज़ल की कीमतों में 7.8 प्रतिशत की कमी की है। इसके अलावा एक्साईज़ ड्यूटी और कस्टम्स ड्यूटी में चार बार वृद्धि के फलस्वरूप 90,000 करोड़ रु. प्रतिवर्ष की अतिरिक्त आय हुई है, अतः यह स्पष्ट है, कि मोदी सरकार आम आदमियों से फायदा कमा रही है और पेट्रोल/डीज़ल की कीमतों में गिरावट का फायदा आम नागरिकों तक नहीं पहुंचा रही। दूसरी तरफ यह उन पर परोक्ष टैक्स लाद रही है। इस सब कारणों से अर्थव्यवस्था छोटी होती जा रही है। अर्थव्यवस्था की संकीर्णता किसी भी देश के लिए घातक है।’’

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