नई दिल्ली। भले ही भारत के प्रधानमंत्री सक्षम देशवासियों से रसोई गैस पर सब्सिडी छोड़ने की बात करते हों परंतु उनकी अपनी संसद में उनके अपने सांसद एक साल में 14 करोड़ की सब्सिडी खा गए और मोदी ने एक अपील तक नहीं की।
विकासशील भारत में जहां कई लोग रोजाना भूखे सो जाते हैं। वहीं संसद की कैंटीन में मिलने वाले खाने की कीमत बीपीएल परिवारों को मुहैया कराये जाने वाले अनाज से भी सस्ती है।
आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल द्वारा दी गई एक जानकारी के मुताबिक संसद की कैंटीन पर सरकार ने सालभर में करीब 14 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी जाती है। दोनों सदनों में मिलाकर कुल सांसदों की संख्या 790 है, यानी एक सांसद के खाने-पीने पर सरकार क़रीब पौने दो लाख रुपये हर साल खर्च करती है।
कैंटीन में खाने-पीने की कुछ चीजें तो असली कीमत के 10 फीसदी से भी कम पर बेची जाती है। कैंटीन में जो सब्जी सिर्फ चार रुपये की मिलती है, उसे बनाने में करीब 41 रुपये 25 पैसे खर्च आता है।
संसद में वेज थाली साढ़े 12 रुपये और नॉनवेज थाली 22 रुपये की मिलती है। इसके अलावा कैंटीन में डोसा चार रुपये और एक प्लेट चावल दो रुपये में मिलती है। संसद की कैंटीन चलाने का जिम्मा रेल मंत्रालय के पास है। यहां यह उल्लेख करना बेहद जरूरी है कि रेलवे स्टेशन पर मिलने वाला खाना इससे कई गुना ज्यादा कीमत पर और कई गुना खराब क्वालिटी का मिलता है।